श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में मस्जिद पक्ष की अर्जी पर अब 22 को होगी सुनवाई, न्यायमित्र ने कहा- 'अदालत अपने विवेक से...'
मथुरा स्थित भगवान श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशवदेव व सात अन्य की तरफ से दाखिल सिविल वाद की पोषणीयता पर अब इलाहाबाद हाई कोर्ट 22 फरवरी 2024 को सुनवाई करेगी। शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी तथा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से सीपीसी के आदेश सात नियम 11 में अर्जी दाखिल की गई है। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने मंगलवार को इस मामले में सुनवाई के बाद आदेश दिया।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। मथुरा स्थित भगवान श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशवदेव व सात अन्य की तरफ से दाखिल सिविल वाद की पोषणीयता पर अब इलाहाबाद हाई कोर्ट 22 फरवरी 2024 को सुनवाई करेगी। शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी तथा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से सीपीसी के आदेश सात नियम 11 में अर्जी दाखिल की गई है।
न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने मंगलवार को इस मामले में सुनवाई के बाद आदेश दिया। मंदिर पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए आदेश एक नियम 8 के तहत दाखिल अर्जी दोबारा दाखिल करने की छूट के साथ वापस लेने की मांग की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
आपत्ति का नहीं दिया जाएगा समय
जैन ने वाद की पोषणीयता पर मस्जिद पक्ष की आपत्ति सहित सभी वादों की एकीकृत सुनवाई के आदेश की वापसी अर्जी व पक्षकार बनाने की अन्य अर्जियों के साथ नियमानुसार सुनवाई की मांग की, ताकि मूल वाद की सुनवाई आसान हो सके। कोर्ट ने दोनों पक्षों को एक दूसरे के जवाबी हलफनामे पर आपत्ति/ प्रति जवाब दाखिल करने का समय निश्चित करते हुए कहा है कि आगे समय नहीं दिया जाएगा।भगवान श्रीकृष्ण (ठाकुर केशव देव जी महाराज) विराजमान सिविल वाद संख्या 17/23 की प्रार्थना संशोधित करने की अर्जी कोर्ट ने मंजूर कर ली है और आदेश एक नियम 8 की अर्जी पर विरोधी पक्ष से आपत्ति मांगी। इस वाद की सुनवाई 23 फरवरी को दोपहर दो बजे से होगी।संबंधित वादों पर मंदिर पक्ष की तरफ से अधिवक्ता प्रभाष पांडेय,प्रदीप शर्मा, हरिशंकर जैन,टीना एन सिंह, महेंद्र प्रताप सिंह, अजय कुमार सिंह, तेजस सिंह तथा मस्जिद पक्ष की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता वजाहत हुसैन व सुन्नी बोर्ड के अधिवक्ता पुनीत गुप्ता ने पक्ष रखा।
सुनवाई शुरू होते ही न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष गोयल व आकांक्षा शर्मा ने वाद की पोषणीयता की प्रारंभिक आपत्ति अर्जी की वैधानिकता तय करने की मांग की। कहा, सभी वादों को कंसोलिडेटेड करने के बाद भी सभी पक्षकार जिस तरह से अर्जियां दाखिल कर पक्ष रख रहे हैं, उससे मूल वाद की सुनवाई होना कठिन है।मूल वाद भगवान श्रीकृष्ण विराजमान का है, जो देवता हैं। उनका विधिक व्यक्तित्व है। इसलिए कोर्ट उनका संरक्षक नियुक्त कर वाद की सुनवाई करे। ऐसा करने का कोर्ट को पूरा अख्तियार है। यह वादी व कोर्ट के बीच का मामला है। विरोधी पक्ष को कोई सरोकार नहीं है। अदालत अपने विवेक से किसी को भी वादी भगवान का संरक्षक नियुक्त कर सकती है। वह सिविल वाद का शीघ्र निराकरण चाहते हैं। इस तरह सभी वादों में अर्जियां दायर कर सुनवाई होती रही तो मूल वाद की सुनवाई शुरू नहीं हो सकेगी।
हालांकि कुछ वादियों के वकीलों ने आपत्ति की और सवाल किया कि किसे संरक्षक नियुक्त किया जाएगा, उसका नाम जानने का सभी को अधिकार है। मस्जिद कमेटी के अधिवक्ता ने कहा कि उन्हें भी आपत्ति दाखिल करने का कानूनी अधिकार है।कोर्ट ने कहा, 13 वादों की पोषणीयता को प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट के तहत चुनौती दी गई है। इसमें सिविल वाद निरस्त करने की मांग है। अन्य चार वादों की पोषणीयता पर आपत्ति नहीं है। कोर्ट ने मस्जिद पक्ष को 13 फरवरी तक का समय दिया है। कहा है कि आगे समय नहीं दिया जाएगा।
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