UPPCS-Pre Exam: एक दिवसीय परीक्षा के लिए चाहिए थे 1758 केंद्र, मिले सिर्फ 978
यूपीपीएससी ने पीसीएस-प्री और आरओ/एआरओ प्रारंभिक परीक्षा को एक दिन में न कराकर दो अलग-अलग दिनों में आयोजित करने का फैसला क्यों लिया? इस लेख में हम आपको उन विभिन्न प्रशासनिक और तार्किक कारणों के बारे में बताएंगे जिनके आधार पर आयोग ने यह निर्णय लिया। जानिए परीक्षा की शुचिता और सुरक्षा प्रशासनिक कारणों और आंकड़ों के विश्लेषण ने कैसे इस फैसले में भूमिका निभाई।
राज्य ब्यूरो, जागरण, प्रयागराज। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) ने पीसीएस-प्री और आरओ/एआरओ प्रारंभिक परीक्षा को एक दिन में न कराकर दो अलग-अलग दिनों में आयोजित करने के अपने निर्णय को बल देने के लिए विभिन्न प्रशासनिक और तार्किक कारण गिनाए हैं। परीक्षा की शुचिता एवं सुरक्षा, प्रशासनिक कारणों और आंकड़ों के विश्लेषण और नीट प्रवेश परीक्षा से संबंधित के. राधाकृष्णन समिति की बहुपालीय परीक्षा की अनुशंसा को दो दिवसीय परीक्षा का आधार बनाया गया।
हालांकि इन सबके मूल में उत्तर प्रदेश परीक्षा अध्यादेश में केंद्र निर्धारण के मानक हैं, जिसकी वजह से आयोग को 5,76,154 अभ्यर्थियों वाली पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा और 10,76,004 अभ्यर्थियों वाली आरओ-एआरओ प्रारंभिक परीक्षा एक दिन में कराने के लिए पर्याप्त केंद्र नहीं मिल पाए और आयोग को दो दिवसीय परीक्षा की ओर मुड़ना पड़ा।आयोग ने दो दिवसीय परीक्षा के आयोजन को लेकर जो स्थिति स्पष्ट की हैं, उसको ऐसे समझें कि मानकों के अनुसार केंद्रों की संख्या 1758 होनी चाहिए थी, लेकिन तमाम मैराथन प्रयासों के बावजूद केवल 978 केंद्र ही उपयुक्त पाए गए, जिनकी क्षमता 4,35,074 अभ्यर्थियों तक सीमित थी। ऐसे में एक दिन में पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा संभव नहीं थी।
इसे भी पढ़ें-गोरक्ष नगर मंडल से भाजपा के सक्रिय सदस्य बने योगी, जारी की गई पहली सूचीदूसरी ओर आयोग ने यह माना कि आरओ/एआरओ प्रारंभिक परीक्षा में पंजीकृत अभ्यर्थियों की संख्या भी अत्यधिक होने के कारण एक ही दिन में यह परीक्षा कराना प्रशासनिक दृष्टि से असंभव था। ऐसे में एक दिवसीय परीक्षा के लिए स्थितियां नहीं बनने के कारण आयोग ने दो दिवसीय परीक्षा का निर्णय लिया।
इसके लिए पिछले चार वर्षों में हुई पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा के आंकड़ों का विश्लेषण भी किया। इसमें यह पाया गया कि पंजीकृत अभ्यर्थियों में से औसतन लगभग 66-68% ही परीक्षा में उपस्थित होते हैं। उदाहरण स्वरूप, वर्ष 2023 में 5,67,657 पंजीकृत अभ्यर्थियों में से केवल 3,45,022 ही परीक्षा में उपस्थित हुए।
इन आंकड़ों के आधार पर भी यह निश्चित रूप से तय नहीं किया जा सकता कि कितने अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल होंगे और इस कारण एक ही दिन में परीक्षा आयोजन की योजना को अस्थायी रूप से स्थगित करना पड़ा, क्योंकि हर एक अभ्यर्थी का परीक्षा में शामिल होना विधिक अधिकार है।आयोग ने यह स्पष्ट किया कि किसी विज्ञापन के सापेक्ष प्रारंभिक परीक्षाए अंतिम चयन के लिए श्रेष्ठता-निर्धारण का आधार नहीं हैं और मात्र स्क्रीनिंग के उद्देश्य से कराई जाती है। ऐसे में पर्याप्त मात्रा में परीक्षा केंद्र उपलब्ध न होने के कारण एकाधिक दिवसों/पालियों में कराये जाने का निर्णय लिया गया है। इसमें नीट प्रवेश परीक्षा से संबंधित के. राधाकृष्णन समिति की अनुशंसा के अनुसार बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों की स्थिति में बहुपालीय परीक्षा प्रणाली को अपनाया गया है।
इसे भी पढ़ें-यूपी में कोहरे से दृश्यता पहुंची 20 मीटर, दो विमान डायवर्ट कर भेजे गए लखनऊपरीक्षा की शुचिता एवं सुरक्षा थी महत्वपूर्णउप्र परीक्षा अध्यादेश के तहत परीक्षा केंद्रों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए केवल मानक-उपयुक्त केंद्रों का चयन किया गया है। ऐसे केंद्र जहां परीक्षा की शुचिता पर कोई भी संदेह हो सकता था, उन्हें चयन से बाहर रखा गया। इसके अतिरिक्त पांच लाख से अधिक अभ्यर्थियों की परीक्षा होने के कारण इसे एक से अधिक पाली में विभाजित करना अनिवार्य हो गया ताकि सुरक्षा और निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि मुख्य सचिव द्वारा जिलाधिकारियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से इस परीक्षा की तैयारी की समीक्षा की गई और निर्देश दिए गए। इसके अतिरिक्त 20 किमी की परिधि में सभी संभावित केंद्रों का विस्तार करने के बाद भी आवश्यक मानकों के अनुसार सभी पंजीकृत अभ्यर्थियों के लिए पर्याप्त परीक्षा केंद्र उपलब्ध नहीं हो पाए थे।
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