नॉर्मलाइजेशन पर ‘नरम’ हुआ उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, कहा- जो जरूरी होगा वो किया जाएगा, अभ्यर्थियों से मांगा सुझाव
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं में निष्पक्ष मूल्यांकन को लेकर नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया विवाद के केंद्र में है। नॉर्मलाइजेशन पद्धति को लेकर अपना पक्ष रखते हुए आयोग ने दावा किया है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी है और राधाकृष्णन समिति जैसी प्रतिष्ठित समितियों द्वारा भी इसकी अनुशंसा की गई है। आयोग ने नॉर्मलाइजेशन से असंतुष्ट अभ्यर्थियों से सुझाव भी मांगे हैं।
राज्य ब्यूरो, प्रयागराज। प्रतियोगी परीक्षाओं में निष्पक्ष मूल्यांकन को लेकर नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया एक बार फिर विवाद के केंद्र में है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) द्वारा दो दिवसीय परीक्षा और परीक्षा परिणामों के मूल्यांकन हेतु नॉर्मलाइजेशन पद्धति को लेकर अपना पक्ष रखा है।
इसे पारदर्शी बताते हुए आयोग ने दावा किया है कि राधाकृष्णन समिति जैसी प्रतिष्ठित समितियों द्वारा भी इसकी अनुशंसा की गई है। वहीं छात्रों का तर्क है कि नॉर्मलाइजेशन के कारण उनकी योग्यता का वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो पाएगा, और इससे चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
असंतुष्ट अभ्यर्थियों के सुझावों का स्वागत: आयोग
आयोग ने कहा कि नॉर्मलाइजेशन से असंतुष्ट अभ्यर्थियों के सुझावों का स्वागत है। सुधार-सुझाव और बेहतर व्यवस्था हो तो अभ्यर्थी दे सकते हैं, जिससे कि लब्धप्रतिष्ठित विशेषज्ञों की समिति के समक्ष सारी चीज रखी जाएगी और जो शुचिता गुणधर्मिता, अभ्यर्थियों के हित में आवश्यक होगा, उसका पालन किया जाएगा।राधाकृष्णन कमेटी ने की नॉर्मलाइजेशन की सिफारिश
आयोग के प्रवक्ता का कहना है कि नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया को अपनाने का उद्देश्य विभिन्न पालियों में आयोजित परीक्षाओं के कठिनाई स्तर में असमानता को संतुलित करना है।
उन्होंने बताया कि यह प्रक्रिया देश के कई प्रतिष्ठित भर्ती आयोगों में अपनाई जा चुकी है। राधाकृष्णन कमेटी द्वारा नीट जैसी परीक्षाओं के लिए भी दो पालियों में परीक्षा कराने की सिफारिश की गई थी, ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके। इस प्रक्रिया में रोल नंबर को एक यूनिक नंबर में परिवर्तित किया जाता है, जिससे मूल्यांकन में पक्षपात न हो सके। यह प्रणाली सिस्टम-ड्रिवेन है, जिसमें मानवीय हस्तक्षेप को न्यूनतम रखा गया है।
छात्रों को परीक्षा परिणामों में भेदभाव की आशंका
दूसरी ओर, छात्रों का एक वर्ग नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज करा रहा है। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के प्रवक्ता प्रशांत पांडेय का कहना है कि अलग-अलग शिफ्टों में हुए प्रश्न पत्रों की कठिनाई में अंतर हो सकता है, जो नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया से भी पूरी तरह संतुलित नहीं हो पाएगा।
छात्रों का मानना है कि यदि एक शिफ्ट का पेपर सरल और दूसरी शिफ्ट का कठिन हुआ, तो नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया सही निष्कर्ष नहीं दे पाएगी और इससे परीक्षा परिणामों में भेदभाव हो सकता है। विवादास्पद प्रश्नों के चलते यह मामला कानूनी उलझनों में फंस सकता है, जिससे छात्रों का समय और मेहनत दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।