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शादी के लिए धार्मिक प्रक्रिया के साथ समारोह भी जरूरी, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला; रद्द कर दिया ये मुकदमा

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि आइपीसी की धारा 494 के तहत अपराध का गठन करने के लिए यह आवश्यक है कि शादी उचित समारोह और रीति-रिवाज सहित की जानी चाहिए। हिंदू विवाह कानून के तहत सप्तपदी समारोह वैध विवाह के लिए आवश्यक है। प्रश्नगत मामले में इसका अभाव है। इसलिए याची के खिलाफ प्रथम दृष्टया दहेज उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है।

By Jagran News Edited By: Aysha Sheikh Updated: Fri, 03 May 2024 12:55 PM (IST)
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शादी के लिए धार्मिक प्रक्रिया के साथ समारोह भी जरूरी, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला; रद्द किया ये मुकदमा

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक वैध विवाह के लिए समारोह के साथ धार्मिक प्रक्रिया अपनाना जरूरी है। विवाह रीति-रिवाजों के साथ संपन्न किया जाना चाहिए। सप्तपदी विवाह का आवश्यक अंग है।

याची के खिलाफ आगरा के सिंकदरा थाने में दर्ज प्राथमिकी में पहली शादी को छिपाकर दूसरा शादी करने का आरोप लगाया गया है, लेकिन दूसरी शादी का ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे साबित हो सके कि रीति-रिवाजों सहित सप्तपदी के साथ विवाह किया गया था। इसलिए याची के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मुकदमा नहीं बनता। यह आदेश न्यायमूर्ति डा.गौतम चौधरी ने निशा की पुननिरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है।

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने कहा कि आइपीसी की धारा 494 के तहत अपराध का गठन करने के लिए यह आवश्यक है कि शादी उचित समारोह और रीति-रिवाज सहित की जानी चाहिए। हिंदू विवाह कानून के तहत सप्तपदी समारोह वैध विवाह के लिए आवश्यक है। प्रश्नगत मामले में इसका अभाव है। इसलिए याची के खिलाफ प्रथम दृष्टया दहेज उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है।

कोर्ट ने कहा कि याची के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण है, जो स्पष्ट रूप से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। कोर्ट ने 20 फरवरी 2023 के एसीजेएम के आदेश को रद कर दिया और कहा कि अदालत का कर्तव्य है कि वह निर्दोष की रक्षा करे। कोर्ट धारा 494 की कार्रवाई को तो रद कर दिया किंतु धारा 504 और 506 की कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया।

याची के खिलाफ उसके दूसरे पति ने शिकायत दर्ज कराई थी कि याची महिला की शादी पहले विजय सिंह के साथ हुई थी। बिना विवाह विच्छेदन और पूर्व पति के जीवित रहते उसने आर्य समाज मंदिर में साथ शादी कर ली। पूछा तो झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दी और 10 लाख रुपये की मांग की। एसीजेएम कोर्ट ने शिकायत पर याची को समन जारी किया। याची ने कहा, वह पहले पति विजय सिंह से 16 वर्षों से अलग रह रही है।

एक-दूसरे से कोई सरोकार नहीं है। याची ने दूसरे पति और उसके परिवार वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है। याची जब उसके घर रहने पहुंची तो प्रतिवादी और उसके परिवार के लोगों ने दुर्व्यहार किया। कपड़े फाड़ दिए और उसका एक पैर तोड़ दिया, जिसके बाद प्रतिवादी और उसके परिवार वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। कोर्ट ने याचिका को आंशिक रूप से मंजूर करते हुए 494 आइपीसी की धारा के तहत हुई कार्रवाई को रद कर दिया।