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जब गिरधर मालवीय ने एक रुपये में इलाहाबाद विश्वविद्यालय को सौंप दिया पांच सौ करोड़ का हिंदू छात्रावास, पढ़ें पूरा वाक्या

इलाहाबाद विश्वविद्यालय का हिंदू छात्रावास जिसने कई हस्तियों को आकार दिया है। वहीं एक समय ऐसा आया जब वह जर्जर हालात से गुजरने लगा। उस समय छात्रावास पर करोड़ों रुपये का बिजली बिल बकाया हो गया। तब छात्रावास को बचाने के लिए न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय आगे आए। उन्होंने एक रुपये की टोकन मनी पर 29 वर्ष 11 महीने की लीज पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय को देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया।

By mritunjay mishra Edited By: Abhishek Pandey Updated: Tue, 19 Nov 2024 03:34 PM (IST)
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न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय ने लिया था हिंदू छात्रावास को लीज पर देने का निर्णय
मृत्युंजय मिश्र, प्रयागराज। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी सहित तमाम हस्तियों का हिंदू छात्रावास उद्भव स्थली है। इसके विशाल प्रांगण में रहकर शिक्षा, संस्कार और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त किया।

वहीं छात्रावास एक समय बुरे दौर से गुजरने लगा। मरम्मत के अभाव में भवन जर्जर हो गया। करोड़ों रुपये बिजली का बिल बकाया हो गया। तब छात्रावास को बचाने के लिए न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय आगे आए।

मदन मोहन मालवीय हिंदू बोर्डिंग सोसाइटी का संरक्षक रहते हुए उन्होंने एक रुपये की टोकन मनी पर 29 वर्ष 11 महीने की लीज पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय को देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया। आज इस छात्रावास के भूतल और प्रथम तल के 92 कमरों की मरम्मत पूरी हो चुकी है और अब यह छात्रावासों को छात्रों को आवंटित होने के लिए तैयार है।

वर्ष 1901 में महामना मदन मोहन मालवीय ने हिंदू छात्रावास की स्थापना की थी। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का साक्षी है। महामना ने दान के रूप में एकत्र किए गए 2.5 लाख रुपये की धनराशि से छात्रावास बनवाया था। जहां से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के साथ ब्यूरोक्रेट्स, पुलिस अधिकारी, न्यायाधीश और राजनेता निकले। हालांकि, बढ़ते खर्च और जर्जर हो रही इमारत के रखरखाव की चुनौतियों, भारी भरकम बकाया बिजली बिल के कारण छात्रावास का रखरखाव करना मुश्किल हो गया था।

सोसाइटी के प्रस्ताव को कुलपति ने लिया संज्ञान

छात्रावास को विश्वविद्यालय द्वारा अधिग्रहित करने का प्रस्ताव 30 वर्ष पहले सोसाइटी द्वारा प्रस्तावित किया गया था। कई बार सोसाइटी द्वारा पत्र व्यवहार किया गया पर विश्वविद्यालय की तरफ से कोई प्रयास नहीं होने से मामला ठंडे बस्ते में रहा। इस बीच कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने पदभार संभाला तो सोसाइटी द्वारा फिर से भेजे गए प्रस्ताव पर कुलपति ने त्वरित संज्ञान लेते हुए प्रक्रिया शुरू कर दी और इसका हस्तांतरण प्रक्रिया काफी तेजी से पूरी की गई।

घर वालों के लिए देवपुत्र थे गिरिधर मालवीय

हरिश्चंद्र मालवीय, न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय को उनके घर के सदस्य देवपुत्र मानते थे। हुआ यूं कि गिरिधर मालवीय के पिता गोविंद मालवीय की सात बेटियां हुईं। उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्त नहीं हो रही थी। बेटियों से तो परिवार खुश था लेकिन भगवान से इच्छा थी कि एक बेटा भी हो जाए। इसको लेकर महामना पं. मदनमोहन मालवीय ने अपने वाराणसी स्थित आवास पर देव पूजा कराई। कई दिनों तक अनुष्ठान चला।

संपूर्ण विधि विधान, हवन और मंत्रोच्चार हुए। इसका सुखद परिणाम रहा। देवकृपा से गोविंद मालवीय की पत्नी की गोद भर गई और गिरिधर मालवीय के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्त हुई। इससे उन्हें घर वाले देवपुत्र कहते थे। ये बात गिरिधर मालवीय स्वयं बताया करते थे।

मेरा उनके साथ 30 वर्ष से अधिक तक का साथ रहा। जब हल्के मूड में रहते थे तो घर-परिवार से जुड़ी बातें बताया करते थे। उनका जीवन खुली किताब की तरह था। जो चाहे जैसे चाहे उसे देख ले। आडंबर, छल-कपट से हमेशा दूर रहे। दूसरों को भी परोपकार की सीख देते थे।संयोजक महामना पार्क समिति

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