UP News: यूपी में करोड़ों का गोबर घोटाला, चार साल में खर्च हो गए 88.53 करोड़; पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट
Raebareli News रायबरेली में 88 गोशालाएं संचालित हैं। इनमें करीब 23 हजार गोवंश संरक्षित हैं। पशुओं की संख्या के अनुसार हर माह 3.45 करोड़ रुपये दिया जा रहा है। पिछले तीन वर्ष में 30 रुपये की दर से दिए गए पैसे को जोड़ दिया जाए तो करीब 88.53 करोड़ रुपये गोशाला में संरक्षित पशुओं को खिलाया जा चुका है।
विकास बाजपेई, रायबरेली। विकास कार्यों में सरकारी धन का गोलमाल करने की आपने तमाम मामले देखे होंगे, लेकिन गाेबर में खेल करने का मामला इससे पहले शायद ही आप ने सुना हो। गोशाला संचालन की जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारी भी मामले को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। चलिए समझाते हैं गोबर में करोड़ों रुपये के गड़बड़झाले की कहानी...
जिले में 88 गोशालाएं संचालित हैं। इनमें करीब 23 हजार गोवंश संरक्षित हैं। चारा दाना के लिए सरकार हर दिन प्रति मवेशी के हिसाब से पहले 30 रुपये और अब 50 रुपये की दर से भुगतान कर रही है। पशुओं की संख्या के अनुसार हर माह 3.45 करोड़ रुपये दिया जा रहा है। पिछले तीन वर्ष में 30 रुपये की दर से दिए गए पैसे को जोड़ दिया जाए तो करीब 88.53 करोड़ रुपये गोशाला में संरक्षित पशुओं को खिलाया जा चुका है।
सवाल यह है कि इतनी बड़ी रकम का आहार खाने के बाद गाेशालाओं में गोबर क्यों नहीं दिख रहा है। ऐसा भी नहीं है कि गोशालाओं में गोबर नहीं निकल रहा है। गांवों में लोगों का कहना है कि गोबर को गोशाला संचालक व अधिकारी बेच कर अपनी आय को बढ़ा रहे हैं।
हैरान करने वाली बात यह है कि जिले के आलाधिकारी भी गोशाला में निकल रहे गोबर को लेकर आंख बंद किए हुए हैं। जिम्मेदार अधिकारी मुख्य पशु चिकित्साधिकारी एसडीएम, बीडीओ, पंचायत सचिव किसी ने गोबर से बनी कंपोस्ट खाद को सीधे बेचने के लिए सरकारी दर निर्धारित करने की जहमत नहीं उठाई। इसी का फायदा उठाकर गोशाला का संचालन करने वाले अधिकारी गोबर को बेचकर पैसा जेब में रख रहे हैं, जबकि इस पैसे को सरकारी खाते में जमा करना चाहिए, पर ऐसा नहीं हो रहा है।
शासन की मंशा थी की गोशाला में संरक्षित पशुओं में से दूध देने वाले पशुओं को अलग रखकर दुग्ध उत्पादन से आय व गोबर से लट्ठे, उपले व स्वयं सहायता समूहों को जोड़कर उपयोग की सामान जैसे दीपक, धूप, मच्छर भगाने के लिए अगरबत्ती आदि का निर्माण कराने की योजना थी, लेकिन यह योजना कागज तक ही सीमित हो कर रह गई। स्वयं सहायता समूह को जोड़ने की स्कीम कागज से बाहर नहीं निकल पाई।
एक गोशाला से औसतन प्रति दिन एक ट्राली गोबर निकलता है। बाजार में एक ट्राली गोबर की कीमत आठ सौ रुपये है। इस दर से हम सभी गोशाला काे देखें तो प्रति दिन करीब 70 हजार रुपये का गोबर निकलता है। इसी अनुपात को वर्ष में देखें तो 2.35 करोड़ रुपये होता है। इससे सहज ही आंकड़ा लगाया जा सकता है कि अभी तक कितना बड़ा गोबर घोटाला किया गया है।
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