इस बार लोकसभा चुनाव न लड़ने की सोनिया गांधी की घोषणा के बाद से रायबरेली में बढ़ी राजनीतिक तपिश के बीच ऐन नामांकन के अंतिम दिन कांग्रेस खेमे में अंतत: उम्मीदों की ठंडी हवा बही। राहुल गांधी के यहां से लड़ने से बेजान पड़े कांग्रेस कार्यकर्ताओं में तो मानो जोश उबल पड़ा है।
प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ रणनीतिकारों की टीम कांग्रेस के पक्ष में माहौल गढ़ने में लगी है। पिछले चुनाव में अमेठी विजय के बाद से रायबरेली पर दृष्टि जमाए बैठी भाजपा भी अपनी तैयारियों में पीछे नहीं है। मगर, गांधी परिवार की विरासत संजोए इस सीट का इतिहास तो कांग्रेस के साथ ही दिखाई देता है, जिसे पलटना भाजपा के लिए चुनौती है। पुलक त्रिपाठी की रिपोर्ट...
पिछले लोकसभा चुनाव में अपनी परंपरागत सीट अमेठी हारने के साथ प्रदेश में सिर्फ रायबरेली तक सीमित रह गई कांग्रेस के लिए यह चुनाव में अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई से कम नहीं। शायद इसीलिए अंतिम क्षणों में राहुल गांधी को रायबरेली सीट से लड़ाने का निर्णय कांग्रेस नेतृत्व ने लिया।
भाजपा के दिनेश प्रताप से राहुल का मुकाबला
इस निर्णय को राजनीतिक जानकार काफी महत्वपूर्ण मान रहे हैं, इस तर्क के साथ इसका असर अमेठी समेत प्रदेश की उन अन्य 16 सीटों पर भी पड़ेगा, जहां कांग्रेस लड़ रही है। राहुल गांधी का मुकाबला भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह से हैं।
कांग्रेस रायबरेली के परिणाम का अर्थ जानती है। शायद यही वजह है कि भाजपा से निपटने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा ने कमान संभाल ली है। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी रायबरेली में लगाया है।
उधर, अगले सप्ताह से यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाएं होंगी, क्योंकि भाजपा कोई भी कोना कमजोर नहीं छोड़ना चाहती।
रायबरेली गांधी परिवार का गढ़ है। ऐसा नहीं कि गांधी परिवार का यहां एक या दो दशक तक ही प्रतिनिधित्व रहा है बल्कि आजादी के बाद 1977, 1996 और 1998 के चुनाव को छोड़ दें तो हर बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है।
1977 में राजनारायण ने इंदिरा को हराकर दर्ज की थी जीत
1977 में राजनारायण ने इंदिरा गांधी को चुनाव हराया था। इस चुनाव की पूरी देश में चर्चा हुई थी। राम मंदिर के आंदोलन से उपजी लहर में दो बार भाजपा भी जीती। 1996 के चुनाव में अशोक सिंह को प्रत्याशी बनाकर पहली बार कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाई थी।
दो वर्ष बाद 1998 में दोबारा लोकसभा चुनाव में भी अशोक सिंह ने फिर यह सीट भाजपा की झोली में डाली।शहर के डिग्री कॉलेज चौराहे पर एक प्रतिष्ठान में बैठे उमाशंकर शुक्ल चुनावी सवाल पर कहते हैं- भाजपा समेत अन्य राजनीतिक दल हर बार यहां पूरे दमखम से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन सफलता नहीं मिली। उसका कारण यह कि गांधी परिवार ने रायबरेली को हमेशा अपना घर बताया। यहां पर कारखानों की स्थापना की तो ट्रेनें भी दीं।
चर्चा के बीच जयशंकर एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने रखते हैं। वह कहते हैं- पिछली बार भले ही भाजपा के प्रत्याशी दिनेश सिंह हार गए हों, लेकिन जितने मत उनको मिले थे, उतने मत इसके पहले गांधी परिवार के विरोध में किसी प्रत्याशी को नहीं मिले थे।शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर लालगंज के सातनपुर गांव में नहर किनारे स्थित होटल में भी चुनावी चर्चा गर्म है। यहां रवि अवस्थी और दुर्गाशंकर त्रिवेदी याद दिलाते हैं 1999 के चुनाव में उठापटक की। तब कांग्रेस ने कैप्टन सतीश शर्मा को मैदान में उतारा तो उन्होंने यहां की राजनीतिक गुणा गणित को समझते हुए भाजपा सांसद रहे अशोक सिंह को कांग्रेस में शामिल करा लिया।
कैप्टन सतीश शर्मा ने भारी मतों से जीत दर्ज की थी। इस बार मामला उल्टा है। यह कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए दिनेश सिंह गांधी परिवार के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। गांधी परिवार को हराना कठिन काम है फिर भी कुछ कहा नहीं जा सकता।
भाजपा के पास गिनाने के लिए हैं अपनी सरकार के काम
2019 के चुनाव में दिनेश प्रताप सिंह के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी रेलकोच में जनसभा की थी। भाजपा ने जिले के विकास के पहिए को गति देते हुए रेलकोच की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के साथ एम्स ओपीडी, इमरजेंसी सेवाओं के साथ कई विभागों की शुरुआत की है।
सड़कों व नेशनल हाईवे का जाल बिछवा रायबरेली की जनता से भेदभाव के विपक्षियों के आरोपों को खारिज करने का प्रयास किया। बछरावां में अंजनी त्रिवेदी, विश्राम कौशल कहते हैं कि वैसे तो भाजपा के खाते में कई विकास के आंकड़े हैं, लेकिन राम मंदिर निर्माण को लेकर मतदाताओं में खासा उत्साह है।
सपाई कांग्रेस के साथ, बसपा ने खेला दांव
समाजवादी पार्टी ने 2009 से रायबरेली सीट पर लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारा है। इस बार कांग्रेस व सपा गठबंधन है। कांग्रेस प्रत्याशी के नामांकन में सपा का झंडे लिए भी कई सपाई शामिल हुए, कंधे से कंधा मिलाकर साथ देने का संदेश दिया।
रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें हैं। इनमें सरेनी, ऊंचाहार, बछरावां, हरचंदपुर सीट पर सपा के विधायक हैं। सदर सीट भाजपा के पाले में है। ऊंचाहार से सपा विधायक मनोज पांडेय अब भाजपा के खेमे में हैं। दूसरी ओर, सपा के साथ गठबंधन के चलते 2019 का लोकसभा चुनाव छोड़ दें तो बसपा ने हर बार यहां प्रत्याशी को मैदान में उतारा है।2004 में राजेश यादव, 2009 में आरएस कुशवाहा, 2014 में प्रवेश सिंह को प्रत्याशी बनाया गया। इस बार चुनाव में बसपा ने ठाकुर प्रसाद यादव को मैदान में उतारकर दांव खेला है। ठाकुर प्रसाद यादव सरेनी विधानसभा क्षेत्र से बसपा प्रत्याशी थे। वह पार्टी के कैडर वोट के साथ ही अपनी बिरादरी पर कितना प्रभाव डालने में सफल होते हैं, यह आने वाला समय ही बताएगा।
भाजपा के सामने अपनों को एकजुट रखने की चुनौती सदर से भाजपा विधायक अदिति सिंह और दिनेश प्रताप सिंह के बीच की तनातनी किसी से छिपी नहीं। दोनों नेता अधिकांश सार्वजनिक व पार्टी कार्यक्रमों पर मंच साझा करने से भी बचते देखे गए हैं।ऊंचाहार से विधायक मनोज पांडेय और दिनेश के संबंध भी कुछ ऐसे ही हैं। नामांकन से पहले डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक अपने साथ दिनेश सिंह को लेकर मनोज पांडेय के आवास भी पहुंचे। पाठक ने दोनों को मिलाने का प्रयास किया, तब ऊंचाहार विधायक ने अपने बेटे प्रतीक राज को नामांकन में शामिल होने के लिए भेजा। महज चार दिन बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने भी रायबरेली का दौरा कर अदिति सिंह और मनोज पांडेय से मुलाकात की। अब देखना है भाजपा अपनों को एकजुट रखने में कितना सफल होती है।
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