यूपी की इस लोकसभा सीट पर राजमाता विजया राजे सिंधिया, जनेश्वर मिश्र को भी मिली है शिकस्त; अभी किसी दल ने नहीं खोले पत्ते
भाजपा कांग्रेस के साथ इस बार बसपा भी चुनावी मैदान में दो दो हाथ करने के लिए तैयार हैं। चुनावी महासमर की घोषणा भले ही हो गई हो मगर किसी दल ने अभी उम्मीदवारों को लेकर अपने पत्ते अभी नहीं खोले। अब देखना यह है कि निकट भविष्य में रायबरेली के चुनावी मैदान में इन दलों की ओर से किसे दिग्गज समझ मैदान में उतारा जाएगा।
पुलक त्रिपाठी, रायबरेली। मां गंगा व सई के पवित्र जल से सिंचित रायबरेली राजनैतिक दृष्टि से हमेशा सुर्खियों में रहा है। इधर दो दशक की बात छोड़ दें तो रायबरेली का सांसद सदैव केंद्र की सत्ता के इर्द गिर्द ही रहा है।
रायबरेली के मतदाताओं ने कई बार ऐसा उलटफेर किया जो इतिहास के पन्नों में सदा के लिए दर्ज हो गया। यही कारण रहा कि यहां से कई दिग्गज चुनावी मैदान में उतरे। यह बात और है कि कोई जीत कर प्रधानमंत्री बना तो कोई हार कर दोबारा नहीं लौटा।
जब बुलंदी पर थे कांग्रेस के सितारे
1952 व 1957 तक यहां से जीत कर फिरोज गांधी सांसद रहे। 1967 व 1971 में इंदिरा गांधी ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को धूल चटाई। यह वह दौर था जब कांग्रेस के सितारे बुलंदी पर थे।जनता ने फेरा इंदिरा गांधी से मुंह
1977 में यहां की जनता ने इंदिरा गांधी से मुंह फेर लिया। समाजवादी विचारधारा के राज नारायण ने कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त करते हुए इंदिरा गांधी को 55 हजार से अधिक मतों से हरा दिया। लगभग तीन वर्ष बाद इंदिरा गांधी आंध्र प्रदेश के मेडक व रायबरेली से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में आई। इस बार उनके सामने मध्य प्रदेश की राजमाता विजयाराजे सिंधिया मैदान में उतरीं।
लोकदल से महिपाल शास्त्री भाग्य आजमाने चुनावी समर में कूद पड़े, लेकिन इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने जीत का एक नया इतिहास लिखा। उन्होंने दो लाख से अधिक मतों से जीत हासिल की। चूंकि इंदिरा आंध्र प्रदेश के मेडक से भी चुनाव जीती थीं, इसलिए उन्होंने रायबरेली से सीट छोड़ दी। इसके चलते यहां उपचुनाव हुए।
जनेश्वव मिश्र को मिली शिकस्त
उपचुनाव में यहां कांग्रेस ने अरुण नेहरू को अपना प्रत्याशी बनाया। उनके सामने जनेश्वर मिश्र चुनावी समर में उतरे। इस चुनाव में अरुण नेहरू ने एक लाख से अधिक मतों से जनेश्वर मिश्र को हराया। 1984 में सविता अंबेडकर को भी अरुण नेहरू ने हराकर कांग्रेस को जीत दिलाई।
1996 और 1998 में भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह ने दोनों चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर कांग्रेस के सबसे मजबूत किले को ध्वस्त कर दिया। 1999 में अरुण नेहरू ने पार्टी बदल कर चुनावी मैदान में आए। उन्हें कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार कैप्टन सतीश शर्मा ने पराजित किया और कांग्रेस को एक बार फिर संजीवनी दी। 2004 में सोनिया गांधी चुनावी मैदान में उतरी और लगातार जीतने का क्रम जारी रखा। उनके सामने अलग-अलग चुनावों में बसपा से प्रभाश कुमार, आरएस कुशवाहा, समाजवादी पार्टी से राज कुमार व उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता अजय अग्रवाल, वर्तमान में राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार दिनेश प्रताप सिंह भी मैदान में उतरे, लेकिन सोनिया ने सभी को हराकर अपनी जीत का क्रम जारी रखा। इस बार उनके राज्यसभा जाने से कांग्रेस नए चेहरे के तलाश में है।
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