Mirza Ghalib Birthday: गालिब ने नवाब के लिए लिखा था शेर- तुम सलामत रहो हजार बरस, हर बरस के हों दिन पचास हजार
शायरी की दुनिया के शहंशाह मिर्जा गालिब का रामपुर से भी गहरा नाता रहा है। नवाब ने उन्हें रामपुर आने के लिए कई बार खत लिखे जिस पर वह दो बार रामपुर आए। वह यहां काफी दिन रहे। रामपुर नवाब की शान में उन्होंने कसीदे भी पढ़े थे।
By Jagran NewsEdited By: Shivam YadavUpdated: Tue, 27 Dec 2022 06:12 PM (IST)
रामपुर, जागरण संवाददाता। ‘इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के’ और ‘हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले’ जैसे लोकप्रिय शेर लिखने वाले विश्व विख्यात शायर मिर्जा गालिब का आज 226वां जन्मदिन है। अपनी बेबाक शेर-ओ-शायरी के लिए जाने जाने वाले मिर्जा गालिब का संबंध रामपुर के नवाबों से भी रहे हैं। इसलिए रामपुर में भी इस दिन मिर्जा गालिब को याद किया जाता है।
शायरी की दुनिया के शहंशाह मिर्जा गालिब का रामपुर से भी गहरा नाता रहा है। नवाब ने उन्हें रामपुर आने के लिए कई बार खत लिखे, जिस पर वह दो बार रामपुर आए। वह यहां काफी दिन रहे। रामपुर नवाब की शान में उन्होंने कसीदे भी पढ़े थे। उन्होंने नवाब यूसुफ अली खान के लिए शेर कहा था, तुम सलामत रहो हजार बरस, हर बरस के हों दिन पचास हजार। इसी से मिलता जुलता गाना तुम जियो हजारों साल और साल के दिन हों पचास हजार, आज भी तमाम बर्थ डे पार्टियों में गुनगुनाया जाता है।
नवाब यूसुफ अली खान ने 1859 में गालिब को कई बार खत लिखे। इसके बाद जनवरी 1860 में वह रामपुर आए थे। नवाब कल्बे अली खान ने भी 1865 में अपने राज्याभिषेक के लिए गालिब को आमंत्रित किया था।
राजद्वारा में था मिर्जा गालिब का घर
शायर फैसल मुमताज कहते हैं कि गालिब का रामपुर से बड़ा लगाव रहा है। वह रामपुर के नवाब यूसुफ अली खान और कल्बे अली खान के उस्ताद रहे हैं। राजद्वारा में उनका घर भी था। वह शाही महल खासबाग के मेहमान भी बने। बाद में दिल्ली चले गए। दिल्ली जाने के बाद भी वे रामपुर के नवाबों से लगातार खतों के जरिए संपर्क बनाए रहे।उनके करीब 150 खत आज भी विरासत के रूप में रजा लाइब्रेरी में उपलब्ध हैं। उन्होंने नवाब के साथ ही रामपुर के बारे में भी बहुत कुछ लिखा है। नजर में वो शहर, के जहां हश्त बहश्त आके हुए हैं बाहम। रामपुर एक बड़ा बाग है अज रोये मिसाल, दिलकश व ताजा व शादाब व वसी व खुर्रम। जिस तरह बाग में सावन की घटाएं बरसें, है उसी तौर पे यां दजला फिशां दस्ते करम। उन्होंने कोसी नदी के पानी और रामपुर के खाने की तारीफ की थी। यहां के कच्चे मकानों के बारे में भी लिखा है। उन्होंने अपने कई लेखों में रामपुर के रिश्ते का जिक्र किया।
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