सफेद गिडार के प्रकोप से फसल को नुकसान
सहारनपुर : कृषि विज्ञान केंद्र अध्यक्ष डा. सत्यप्रकाश ने बताया कि प्रत्येक वर्ष फसलों एवं वृक्षों को
सहारनपुर : कृषि विज्ञान केंद्र अध्यक्ष डा. सत्यप्रकाश ने बताया कि प्रत्येक वर्ष फसलों एवं वृक्षों को सफेद गिडार के प्रकोप से भारी नुकसान हो रहा है।
डा. सत्यप्रकाश ने कहा कि सफेद गिडार भूमिगत कीट है जोकि छोटी जड़ों का खाकर नष्ट कर देता है तथा पौधा सूख जाता है। इस कीट के नर मादा वयस्क मई से जुलाई तक वर्षा के तुरंत बाद निकलते हैं। उन्होंने कहा कि यदि इन कीटों को प्रकाश प्रपंच या केरोमोन आकर्षण तकनीकों से आकर्षित कर नष्ट कर दिया जाए तो फसल पूरे वर्ष सुरक्षित रहती है। उन्होंने बताया कि केजीके द्वारा सफेद गिडार नियंत्रण हेतु फेरोमोन, लाइटट्रेप, विवेरिया तथा मेटाराइजियम के प्रयोग पर जोर दिया जा रहा है। केन्द्र के सह निदेशक फसल सुरक्षा डा. आईके कुशवाहा ने कहा कि सफेद गिडार भृंग कुरमुला को फेरोमोन में आकर्षित कर नष्ट करने की तकनीक किसानों को बताई जा रही है। सफेद गिडार जोकि पौधे के जड़, मूलकाओ तथा मूल रोमो को खाकर पौधो की भोजन प्रणाली को प्रभावित करती है। प्रकोषित पौधो की पत्तियां ऊपर से नीचे की ओरपीली पड़ जाती है तथा प्रभावित फसल दूर से ही अस्वस्थ दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि सफेद गिडार का अधिक प्रकोप होने पर पौधे पूरी तरह से सूख जाते है। सफेद गिडार की सभी जातियां वर्ष में एक ही चक्र पूर्ण करती है इसका व्यस्क बीटल भृंग का भूमि सतह से निर्गमन मई से जुलाई के बीच वर्षा के तुरंत बाद होता है। इस अवधि में वर्षा नहीं होने पर निर्गमन रुक जाता है तथा भृंग भूमि में ही मर जाता है। डा. कुशवाहा ने बताया कि इन कीटो का निर्गमन सायंकाल गोधूली बेला में ही होता है, निर्गमन के तुरंत बाद भृंग पत्तियों को खाते है तथा मैथुन करते है। प्रात: सूर्य निकलने से पूर्व मादा भृंग पोषक पौधो के समीप डेढ से दो सेंटीमीटर तक भूमि में घुसकर अंडे देती है। अंडो से लगभग 10 दिन ग्रव निकलकर अक्टूबर नवंबर तक कोमल व मुख्य जड़ों को खाते हैं। उन्होंने बताया कि भृंग व्यस्क वीटल को इकट्ठा कर उन्हें नष्ट करना सफलतम, सस्ती व वातावरण की दृष्टि से सुरक्षित विधि है।