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Mukhtar Ansari Death: मुख्तार अंसारी की मौत पर भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने जताया दुख, बोले- सीबीआई जांच हो

Mukhtar Ansari Death मुख्तार अंसारी की मौत पर उनके बेटे ने प्रतिक्रिया दी है। मुख्‍तार के बेटे उमर अंसारी ने कहा कि पूरा देश सब कुछ जानता है। दो दिन पहले मैं उनसे मिलने आया था लेकिन मुझे इजाजत नहीं मिली। उमर अंसारी ने कहा कि धीमा जहर देने के आरोप पर हमने पहले भी कहा था और आज भी यही कहेंगे।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Fri, 29 Mar 2024 07:37 AM (IST)
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Mukhtar Ansari Death चंद्रशेखर ने पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी के निधन के बाद अपनी प्रतिक्रिया दी है।
जागरण संवाददाता, सहारनपुर। Mukhtar Ansari Death आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर ने अपने आधिकारिक एक्स पर पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी के निधन के बाद अपनी प्रतिक्रिया दी है।

पोस्ट में दुःख प्रकट करते हुए लिखा पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी का असामायिक निधन बेहद दुखद। विनम्र श्रद्धांजलि। मेरी संवेदनाएं उनके स्वजन और समर्थकों के प्रति हैं। प्रकृति उन्हें यह असीम दुख सहने की शक्ति प्रदान करें। पूर्व में ही उन्होंने अपनी हत्या की आशंका व्यक्त की थी। मैं हाईकोर्ट इलाहाबाद से उनकी उनकी मृत्यु की सीबीआई जांच की मांग करता हूं।

मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी ने कहा कि पूरा देश सब कुछ जानता है। दो दिन पहले मैं उनसे मिलने आया था, लेकिन मुझे इजाजत नहीं मिली। उमर अंसारी ने कहा कि धीमा जहर देने के आरोप पर हमने पहले भी कहा था और आज भी यही कहेंगे।

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मुख्तार ने अपने व कुनबे के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए हर दांव चला। बसपा का दामन थामकर 1996 में पहली बार विधानसभा पहुंचा तो बाद में सपा का भी इस्तेमाल अपने ढ़ंग से किया।

मुख्तार दो बार निर्दलीय उम्मीदवार रहकर भी विधानसभा चुनाव जीता। सपा-बसपा से दूरी होने पर अपनी पार्टी कौमी एकता दल बनाया। मुख्तार पांच बार विधायक बना और बसपा के टिकट पर 2009 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट से भी किस्मत आजमाई। हालांकि वह हार गया था। मुख्तार अंतिम बार बसपा के टिकट पर 2017 में विधानसभा पहुंचा था। अपने बाहुबल के बूते बड़े भाई अफजाल अंसारी को संसद तक पहुंचाया तो बड़े बेटे अब्बास अंसारी को भी विधायक बनाया।

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मुख्तार के विरुद्ध हत्या का पहला मुकदमा 1986 में दर्ज हुआ था, तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। मुख्तार पर तत्कालीन कांग्रेस नेताओं का भी हाथ रहा। प्रदेश में सरकारें तो बदलती रहीं, पर किसी ने बाहुबली मुख्तार के विरुद्ध कार्रवाई की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई।

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