सींग का सामान यानि संभल, फीफा वर्ल्ड कप में बजती है यहां की बनी सीटी, GI Tag मिलने के बाद रा मैटेरियल की तलाश
बौद्धिक संपदा ने सींग को संभल के जीआइ टैग का दिया है अधिकार। स्थानीय कारोबारी सींग के स्टोरेज के लिए सींग बैंक की कर रहे मांग। निर्यातकों को उम्मीद बढ़ेगा आर्डर ऐसे में राजस्थान और दक्षिण भारत से आने वाले सींग के यातायात को करें सुगम।
By Jagran NewsEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Tue, 16 May 2023 09:14 AM (IST)
संभल, जागरण टीम, (राघवेन्द्र शुक्ल)। संभल के सींग उत्पाद को जीआइ टैग मिलने के साथ ही अब आर्डर की संख्या बढ़ने की उम्मीद निर्यातकों ने लगाई है। इसके लिए बडी संख्या में सींग के स्टोरेज और रा मैटेरियल की उपलब्धता को भी कारोबारी चिंतित है। अब तक संभल में सींग की आवक राजस्थान के अलावा दक्षिण भारत के राज्यों से होती है। रास्ते में चेकिंग के नाम पर वाहनाें को रोकना व अन्य कारणों से इसे यहां लाने में दिक्कत भी होती है।
सींग के सामान संभल के नाम से ही जाने जाएंगे
अब जीआइ टैग मिला है यानी सींग के सामान संभल के नाम से ही जाने जाएंगे। ऐसे में यहां आर्डर की संख्या बढने के बाद सींग के स्टाेरेज सबसी बड़ी समस्या के रूप में सामने आएगी। हैंडीक्राफ्ट एसोसिएशन के महासचिव कमल कौशल कहते हैं कि अब हमारी मांगा है कि संभल में जिस प्रकार आलू या गेहूं रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज या गोदाम हैं उसी प्रकार सींग के सुरक्षित रखने के लिए एक जगह बनाई जाए। इससे सींग का स्टोरेज होगा तो कारोबारियों को उचित रेट पर यह सामान भी आसानी के साथ मिल जाएगा। यह तभी संभल है जब प्रदेश व केंद्र सरकार इस दिशा में बेहतर पहल करे।
कारोबारियों को जगी उम्मीद
लंबे समय से हडडी व सींग कारोबार के जरिए विश्व फलक पर छाने वाले संभल के कारीगर व एक्सपोर्टर के पास उनकी अपनी पहचान नहीं थी। 2019 से संभल के हैंडीक्राफट एसोसिएशन ने अपने आवेदन व प्रभावी पैरवी के बाद कामयाबी पाई। संभल के सरायतरीन में हडडी व सींग से जुड़े काम होते हैं। यहां के बने सामान अमेरिका, जर्मनी, सऊदी अरब, जापान आदि देशों में निर्यात होते हैं। सींग से विविध सजावटी सामान बनते हैं। इसके लिए सींग को तराशने के बाद उस पर महीन नक्कासी की जा सकती है। सींग से ही बटन भी बनाए जाते हैं। - कमल कौशल, महासचिव हैंडीक्राफ्ट एसोसिएशन, संभलहर घर में होता है काम
- संभल मुख्य रूप से हड्डी व सींग के सामान के लिए जाना जाता है।
- सरायतरीन में इसका प्रमुख हब है। घर घर होता है काम
- सींग के बटन बनते हैं। हड्डीर के बटन की कीमत भी 1600 रुपये प्रति किलोग्राम तक।
- सींग से बियर मग व बाउल तक बनते हैं।
- सींग का चश्मा तक संभल से बनाया गया।
- सींग की सीटी का इस्तेमाल फीफा वर्ल्ड कप व जर्मनी में फुटबाल क्लब करते हैं।
- सींग के कंघी का चलन हजारों साल पुराना है। हालांकि पहचान न मिलने से इसके आर्डर घटे हैं।
- इस कंघी में तेल रखने के लिए सुराग तक होता है। यानी बाल के साथ तेल भी मिक्स होता रहता है।
- 10000 कारीगर व 75 निर्यातक व 2500 छोटी इकाईया इस काम में जुटी है।
- यहां के सामान जर्मनी, फ्रांस, जापान, अमेरिका, अफ्रीका व अरब देशों में ज्यादा निर्यात होता है।
यह होगा फायदा
विश्व फलक पर संभल के सींग को नई पहचान मिल गई है। बौद्धिक संपदा भारत से सींग को जीआइ (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग मिल गया है। इसके जरिए अब भारत में सींग से बने सामान केवल संभल से ही जाएंगे। यानी अब तक सींग से बने सामान का सबसे बड़ा निर्यातक जर्मनी को यदि आर्डर देना होगा तो इसका सीधा फायदा संभल को ही मिलेगा। अब तक 400 करोड़ का सालाना टर्नओवर करने वाला संभल का हड्डी व सींग उत्पाद ओडीओपी में तो शामिल है लेकिन जीआइ टैग के बाद इसे कानूनी रूप से मजबूती मिल चुकी है।
बढ़ेगा रोजगार
रोजगार सृजन व आर्थिक मजबूती राह प्रशस्त होगी। संभल के इस सामान का निर्यात विश्व के 12 से ज्यादा देशों में है। संभल में हार्न के जरिए सजावटी सामान, बीयर मग, बटन, सींग के चश्मे, ज्वैलरी बनाए जाते हैं। 75 निर्यातक इस कार्य के जरिए सामान निर्यात करते हैं जबकि 2500 छोटी इकाईयां हैं। 10000 के करीब कारीगर इस कारोबार में जुटे हैं।क्या है जीआइ
जियोग्राफिकल इंडिकेशन जीआइ टैग का कानून असली प्रोडक्ट्स को पहचान व सुरक्षा देता है। महत्व व कीमत बढ़ती है। यह बताता है कि कोई उत्पाद कहां बना। भौगोलिक पहचान पहचान मिलता है। यह उसके बनावट, पहचान के आधार पर है। दूसरे शब्दों में यह एक तरह से पेटेंट है। यानी सींग का काम अब संभल ही करेगा। कोई भी दूसरा राज्य या जगह इस उत्पाद का रॉ मैटेरियल लेकर कोई भी सामान नहीं बना पाएगा। बनाया तो सजा व जुर्माने दोनों का प्रावधान है।
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