गांव-गांव फैक्ट्री, घर-घर रोजगार, संतकबीर नगर की पहचान बन चुका है पिछड़े क्षेत्र का दंश झेलने वाला मुखलिसपुर
संतकबीर नगर जिले के मुखलिसपुर कस्बे से शुरू हुआ होजरी कारोबार अब दो दर्जन गांवों में फैल चुका है। हर घर में रोजगात है। रोजगार सृजन का माध्यम बने इस उद्योग से युवाओं का पलायन रुक गया है।
By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Tue, 03 Jan 2023 03:16 PM (IST)
संतकबीर नगर, राज नारायण मिश्र। कभी पिछड़े क्षेत्र का दंश झेलने वाला मुखलिसपुर आज जनपद की पहचान है। करीब दो दशक पूर्व शुरू हुआ होजरी का काम अब उद्योग का रूप ले चुका है। कस्बे से अब कारोबार गांवों में फैल चुका है। क्षेत्र के करीब दो दर्जन गांवों में बड़े पैमाने पर काम हो रहा है। होजरी उद्योग में दस हजार से अधिक मशीनें ऊनी कपड़ों का निर्माण कर रही हैं। हजारों लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध होने से यहां के युवाओं का शहरों की तरफ पलायन पर अंकुश लग गया है। यहां से तैयार कपड़े खलीलाबाद स्थित बरदहिया बाजार पहुंचते हैं। बाजार से प्रदेश के कई जिलों के साथ ही बिहार और नेपाल तक माल की सप्लाई हो रही है।
18 साल पहले हुई थी होजरी की शुरुआत
मुखलिसपुर कस्बे में होजरी की शुरुआत वर्ष 2004 में हो चुकी थी। कस्बा के नन्दलाल मांझी पंजाब में होजरी का काम करते थे। वह जब घर लौटे तो साथ में कुछ कच्चा माल भी लाये। नन्दलाल ने कच्चे माल से स्वेटर, टोपी आदि गर्म कपड़ा बनाना शुरू किया। बाहर से मंगाए जाने वाले कपड़ों से सस्ता माल मिलने से दुकानों पर मांग बढ़ने लगी। धीरे-धीरे इस काम में अन्य लोग भी जुड़ते गए। अब तो इस काम में बुजुर्ग, महिलाओं के साथ ही बड़ी संख्या में युवा जुटे हैं।
मिनी लुधियाना के रूप में मशहुर है मुखलिसपुर
समय गुजरने के साथ मुखलिसपुर कस्बा मिनी लुधियाना के रूप में विकसित होने लगा। होजरी के कारोबार से प्रभावित कस्बे के अधिकांश घरों में गर्म कपड़े तैयार होने लगे। यही नहीं होजरी कारोबार का विस्तार नाथनगर कस्बे तक फैल गया। होजरी का उद्योग कस्बों से बाहर निकल अब आसपास गांवों तक फैल गया। इस समय अम्मादेई, खजुरिया, चोलखरी, नाथनगर, अलीनगर, चंदरौटी, काली, जगदीशपुर समेत कई गांवों में कारोबार पहुंच चुका है। रोजी रोटी के सिलसिले में पंजाब के लुधियाना शहर में जाने वाले सैकड़ों युवाओं को अब घर में ही रोजगार मिलने लगा है।
आर्थिक समृद्धि का बना आधार
क्षेत्र में स्थित होजरी की दस हजार से अधिक मशीनें रोजगार का जरिया बन चुकी हैं। मुखलिसपुर कस्बा के अक्षय गौंड़ बताते हैं कि कोरोना के दौर में वह दिल्ली से वापस आए और अब होजरी का काम कर रहे हैं। घर में ही रोजगार सुलभ होने से अब दूर शहरों में जाने की नौबत नहीं रह गयी। उनके पास दर्जन भर से अधिक लोग रोजगार पा रहे हैं।गर्म कपड़ों की बाजारों में बढ़ी मांग
होजरी का कारोबार शुरू करने वाले नन्दलाल मांझी बताते हैं कि यहां के बने कपड़े बरदहिया बाजार पहुंचते हैं। जहां से अन्य जिलों के व्यापारी गर्म कपड़ों की खरीददारी करते हैं। कहा, पिछड़े क्षेत्र में यह स्थल रोजगार सृजन का बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। कुछ दिक्कतें भी हैं। बिजली की व्यवस्था ठीक हो जाए तो कारोबार का विकास तेजी से होगा।
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