Gandhi Jayanti: शाहजहांपुर के इस व्यक्ति के पास है गांधी जी का चश्मा, 94 साल से सहेज कर रखा;खुद ही सुनाई कहानी
Gandhi Jayanti 2023 आज दो अक्टूबर को पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 154वीं जयंती मना रहा है। इस खास दिन राष्ट्रपिता के बलिदान और उनके दिखाए रास्ते पर चलते की शपथ सब ले रहे हैं। इसी बीच शाहजहांपुर के एक व्यक्ति ने दावा किया है कि उनके पास राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चश्मा है। ये उस चश्मे को 94 साल से सहेज कर रखा है।
By Jagran NewsEdited By: Swati SinghUpdated: Mon, 02 Oct 2023 03:52 PM (IST)
नरेंद्र यादव, शाहजहांपुर। मोहनदास करमचंद गांधी जी..आज राष्ट्रपिता को 154 साल बाद भी देश विविध रूपों में याद कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी जी के चश्मे को स्वच्छता का प्रतीक बनाकर अभियान का शंखनाद किया। रविवार को भी पूरे देश ने सफाई अभियान चलाया। गांधी जी के चश्मे के एक लेंस पर स्वच्छ और दूसरे पर भारत लिखा है। शाहजहांपुर में भी एक परिवार गांधी जी की यादों से जुड़ा चश्मा सहेजे हुए है। वह भी 94 साल से...
दावा है कि गांधी जी शाहजहांपुर आगमन के दौरान उनके परबाबा से प्रभावित होकर उपहार के रूप में चश्मा दे गए थे। हम बात कर रहे हैं मुड़िया पमार के मूल निवासी व वर्तमान में खिरनी बाग में रह रहे राजेश गुप्ता की। उनके पास राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हस्ताक्षर से जारी हिंदी साहित्य सम्मेलन परीक्षा समिति प्रयागराज का प्रमाण पत्र है, जिस पर उनके परबाबा के पिता मूलचंद का नाम लिखा है। 1974 को जारी प्रमाण पत्र पर पुरुषोत्तम दास टंडन तथा ब्रजराज के हस्ताक्षर हैं। नवंबर 1929 को उनके परबाबा रामसहाय रईस के नाम से डिस्ट्रिक्ट बोर्ड मेंबर के नाम से प्रमाण पत्र जारी है।
1929 में छूटा था चश्मा
राजेश गुप्ता बताते हैं कि उनके परबाबा रामसहाय आर्य समाज से जुड़े थे। 1929 में गांधी जी शाहजहांपुर में दो बार आए। इस दौरान सूत की माला पहनाकर उनका स्वागत किया गया। सूत की माला को नीलाम किया गया, जिसे उनके परबाबा ने 1500 में खरीद कर यह धनराशि गांधी जी को भेंट कर दी। इस तरह तीन बार नीलामी में माला को खरीदकर धनराशि भेंट कर करने पर गांधी जी बेहद प्रभावित हुए।यह भी पढ़ें: Gandhi Jayanti 2023: महात्मा गांधी से जुड़े कुछ बेहतरीन फैक्ट्स का संग्रह, UPSC में भी पूछे जाते हैं यह प्रश्नराजेश गुप्ता का दावा है कि इसी दौरान गांधी जी का काले लेंस वाला चश्मा रह गया। जिसे उनके परबाबा ने लौटाना चाहा, लेकिन गांधी के पास सफेद लेंस वाला चश्मा होने के कारण उन्होंने नहीं लिया। राजेश गुप्ता बताते हैं कि 1938 में उनके परबाबा के निधन के बाद चश्मा उनके बाबा प्रेमदत्त गुप्ता ने सुरक्षित रखा। 1975 में बाबा के निधन के बाद पिता डा. धनेश्वर गुप्ता ने चश्मा तथा गांधी जी के हस्ताक्षर से जारी प्रमाणपत्र सुरक्षित रखें।
शहीद संग्रहालय में चश्मा भेंट करने की इच्छा
राजेश गुप्ता का कहना है कि गोल चश्मे का फ्रेम 14 कैरेट सोने में बना है, लेकिन लेंस काले हैं। जबकि, इंटरनेट पर गांधी के चश्मे के लेंस सफेद रंग के हैं। इस कारण वह यह दावा नहीं कर सकते कि गांधी जी ने अपना चश्मा दिया। लेकिन, गांधी जी की यादों से जुड़े चश्मे को वह शहीद संग्रहालय में देना चाहते हैं ताकि नवंबर 1929 में शाहजहांपुर में गांधी जी के आगमन को आमजन भी जान सकें।
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