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Ram Mandir News: मंदिर वहीं बनाएंगे… इस शख्स ने लिखा था ये नारा, जो बन गया राम मंदिर आंदोलन का प्रतीक

छह दिसंबर 1992 के दिन जलालाबाद में काव्य गोष्ठी हो रही थी। अचानक सूचना आई कि अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया गया है। मुख्य अतिथि एसडीएम तुरंत अपने वाहन की ओर लपके दूसरी ओर मंच से हुंकार हुई… सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे। कवि विष्णु गुप्त के मुंह से अनायास निकली ये पंक्ति श्रीराम मंदिर आंदोलन का नारा बन गई।

By Jagran News Edited By: Shivam Yadav Updated: Fri, 05 Jan 2024 02:35 PM (IST)
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मंदिर वहीं बनाएंगे… किसने लिखा था ये नारा? जो बन गया राम मंदिर आंदोलन का प्रतीक

अंबुज मिश्र, शाहजहांपुर। छह दिसंबर 1992 के दिन जलालाबाद में आचार्य हृदयनाथ अग्निहोत्री के आवास पर काव्य गोष्ठी हो रही थी। अचानक सूचना आई कि अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया गया है। मुख्य अतिथि एसडीएम तुरंत अपने वाहन की ओर लपके, दूसरी ओर मंच से हुंकार हुई… 'सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे।' 

उत्साह से भरे वीर रस के कवि विष्णु गुप्त के मुंह से अनायास निकली ये पंक्ति श्रीराम मंदिर आंदोलन का नारा बन गई। नौ वर्ष पहले विष्णु गुप्त दुनिया छोड़ गए मगर, उनकी यह सौगंध 22 जनवरी को पूरी होने जा रही है। पूरा देश श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी में जुटा हुआ है।

कार्यक्रम स्थल पर हो रही थी हलचल

विष्णु गुप्त के मित्र आचार्य राम मोहन मिश्र बताते हैं कि उन दिनों आंदोलन को गति देने के लिए घरों में बैठकें, गोष्ठियां होती थीं। विष्णु गुप्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए कार्य करते और समय मिलने पर कविताएं लिखते थे। 

छह दिसंबर 1992 को गोष्ठी के दौरान वह मंच पर काव्य पाठ करने पहुंचे ही थे कि विवादित ढांचा ढहने की सूचना आ गई। कार्यक्रम स्थल पर हलचल बढ़ चुकी थी मगर, विष्णु गुप्त मंच से नहीं हटे। उन्होंने सौगंध राम की खाते हैं… पंक्ति बोली, श्रीराम का जयकारा लगाने लगे। 

चंद मिनट बाद गोष्ठी समापन की घोषणा होने पर वह कमरे में पहुंचे परंतु मन बेचैन था। उसी रात उन्होंने वो गीत लिख दिया, जोकि आगे चलकर मंदिर आंदोलन में जन-जन की जुबां पर चढ़ गया। 

1994 में रिलीज हुए थे कैसेट

कुछ समय पश्चात उन्होंने श्री राम पर लिखीं अन्य रचनाओं के साथ इस गीत को एक पुस्तक में संकलित किया। उसे नाम दिया-सौगंध। विष्णु गुप्त के गीत को तत्कालीन विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल, श्रीराम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष महंत अवैद्यनाथ, पदमश्री कवि वचनेश त्रिपाठी आदि ने इसे काफी सराहा था। वर्ष 1994 में एक गायक ने उनसे अनुमति लेकर गीत में कुछ संशोधन करते हुए गाया था, जिसके आडियो कैसेट भी रिलीज हुए थे।

पिता नहीं रहे, उनकी सौगंध पूरी होते देखेंगे

प्रयागराज से हिंदी साहित्यरत्न की परीक्षा पास करने के बाद विष्णु गुप्त की लेखन में रुचि बढ़ती गई। उन्होंने किताबों की दुकान खोली थी, वहां बैठकर काव्य रचनाएं लिखते। इससे पहले आपातकाल में जेल भी गए थे। 

उनके बेटे अजय गुप्ता बताते हैं कि पिताजी अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनते देखना चाहते थे। वर्ष 2014 में उनका निधन हो गया। उनकी सौगंध अब पूरी हो रही। 22 जनवरी के बाद मां शशिकला और भाई विपिन चंद्र के साथ श्रीराम के दर्शन करने जरूर जाएंगे। मेरा परिवार और पूरा देश, दुनिया उनकी सौगंध पूरी होती देखेगी। 22 जनवरी को पूरा मोहल्ला सजाएंगे, दीप जलाएंगे।

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