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सपा-कांग्रेस की तकरार के पीछे असली वजह कुछ और... सीट बंटवारे के नाम पर खुल गई INDIA गठबंधन की कलई

सपा को इस बात की भी टीस है कि प्रदेश में पिछड़ा वर्ग प्रतिनिधित्व की दृष्टि से कांग्रेस उसे बड़ा मानने को तैयार नहीं है। यदि ऐसा होता तो उप्र के समीकरण न उलझें इस एहतियात के दृष्टिगत मध्य प्रदेश में भी तवज्जो जरूर देती। वहां का कटु अनुभव लोकसभा चुनाव के दौरान ढर्रा न बन जाए इसलिए पार्टी अभी से अपना रुख स्पष्ट कर रही है।

By Jagran NewsEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Fri, 20 Oct 2023 07:43 PM (IST)
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सिर्फ सीट बंटवारा नहीं, सपा-कांग्रेस की रार के पीछे पिछड़ा वोट बैंक

अभिषेक पांडेय, शाहजहांपुर। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बहाने सपा और कांग्रेस की तल्खी में सिर्फ सीट बंटवारा नहीं है। इसके पा‌र्श्व में पिछड़ा वोट बैंक पर हक जताने की लड़ाई भी शामिल है।

सपा इस वर्ग को बहुसंख्यक मानकर पहले ही पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) की रणनीति पर काम शुरू कर चुकी थी। जातिगत गणना की मांग की जा रही। इस बीच कांग्रेस ने भी यही राह पकड़ी तो सपा को अखर गया।

शुक्रवार को शहर आए पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दैनिक जागरण से फोन पर विशेष बातचीत में इसका संकेत भी दिया। कहा कि राहुल गांधी (कांग्रेस) के हाथ से सबकुछ निकल चुका है। उनका वोट बैंक भाजपा में जा चुका है। अब वह पिछड़ों को गुमराह करने के लिए जातिगत गणना कराएंगे..!

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सपा को इस बात की भी टीस है कि प्रदेश में पिछड़ा वर्ग प्रतिनिधित्व की दृष्टि से कांग्रेस उसे बड़ा मानने को तैयार नहीं है। यदि ऐसा होता तो उत्तर प्रदेश के समीकरण न उलझें, इस एहतियात के दृष्टिगत मध्य प्रदेश में भी तवज्जो जरूर देती। वहां का कटु अनुभव लोकसभा चुनाव के दौरान ढर्रा न बन जाए, इसलिए पार्टी अभी से अपना रुख स्पष्ट कर रही है।

इसमें दो परिदृश्य प्रस्तुत किए जा रहे। पहला यह कि गठबंधन के सीट बंटवारे में सपा किसी का दबाव नहीं मानेगी। चूंकि वह प्रदेश में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है इसलिए लोकसभा चुनाव में भी अधिकतम सीटों पर दावा बरकरार रहेगा।

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दूसरा यह कि परंपरागत यादव आदि पिछड़ा वोट बैंक को एहसास कराना चाहती है कि जातिगत गणना उसी का मुद्दा है। इसमें कांग्रेस को सेंधमारी का अवसर नहीं दिया जाएगा। पार्टी के पास पुराने गठबंधन के अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं।

अलग-अलग चुनावों में बसपा और कांग्रेस से गठबंधन करने पर विशेष लाभ नहीं मिला था, वोट भी तितर-बितर हुआ। इस बार सपा कोई खतरा नहीं लेना चाहती। इसे ध्यान में रखते हुए पिछड़ा वर्ग को बार-बार एहसास कराया जा रहा कि वह प्रथम वरीयता में है। इस वर्ग की ओर इस बार अधिक झुकाव का कारण पिछले दो लोकसभा चुनावों का परिणाम भी है।

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उस दौरान भाजपा ने प्रत्येक पार्टी के आधार वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी की थी। इस बार एकतरफा मैदान न बने, इसे ध्यान में रखते हुए सपा हर जतन कर रही है। मिशन बनाकर प्रदेश में मंच सजाए जा रहे हैं। अपना घर सुरक्षित करने के लिए मेहनत कर रहे अखिलेश यादव आक्रामता भी जारी रखेंगे।

उन्हें पता है कि आइएनडीआइए यूपी में उनके बिना मैदान में उतर ही नहीं सकता। दबाव की राजनीति से एक निहितार्थ यह भी निकाला जा रहा कि गठबंधन बसपा से दूरी बनाए रहे। यदि ऐसा हुआ तो सपा दलितों को साधने के लिए सहज रास्ता तलाश सकेगी। इसी से उसका पीडीए फार्मूला मजबूत रास्ते पर ले जाना संभव हो सकेगा।