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Water Conservation: 50 गांवों के 5000 लोगों ने 30 सालों से सूखी पड़ी नदी को दिया नया जीवन

Water Conservation लोक भारती संगठन के डॉ. विजय पाठक ने बताया तीस सालों से नदी सूखी पड़ी थी। अभियान के बाद अब नदी में दोबारा पानी देखा तो लगा कि सारे सपने पूरे हो गए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 04 Jan 2020 11:01 AM (IST)
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Water Conservation: 50 गांवों के 5000 लोगों ने 30 सालों से सूखी पड़ी नदी को दिया नया जीवन
शाहजहांपुर, नरेंद्र यादव। Water Conservation: उप्र में गोमती की सहायक भैंसी नदी को क्षेत्रीयजनों के आपसी प्रयास से नया जीवन मिल गया है। बीते तीस साल से धीर-धीरे कर यह नदी निर्जल हो चुकी थी। शाहजहांपुर जिले मेंनदी किनारे बसे 50 गांवों के लोगों ने बीते अप्रैल में संकल्प लिया और अस्तित्व खो चुकी इस नदी को नई जिंदगी दे दी। 22 दिसंबर से इस नदी में पानी आ गया तो ग्रामीणों के चेहरे खिल उठे। पूरे अभियान पांच हजार ग्रामीणों ने श्रमदान किया।

बेशक, भैंसी नदी के पुनर्जीवन में शाहजहांपुर के किसानों का योगदान रहा, लेकिन इनके प्रेरक बने बिजेंद्र पाल सिंह। लोकभारती और गंगा समग्र संस्था से जुड़े बिजेंद्र पाल सिंह ने गंगा बेसिन के तहत गोमती की सहायक नदियों की सफाई के लिए सरकार को भी प्रोजेक्ट दिया था। इस बीच, उन्होंने गोमती की 22 सहायक नदियों में मुख्य भैंसी नदी को पुनजीर्वन देने का बीड़ा भी उठाया। इसी साल अप्रैल में गोमती किनारे मीरपुर गांव में पहली बैठक हुई। जिसके बाद लोक भारती के नदी प्रांत प्रमुख डॉ. विजय पाठक की अगुवाई में सुनासिर घाट से पर्न घाट तक करीब 70 किमी की गोमती यात्रा निकाली गई। नदी सम्मेलन हुए, जिनमें नदी मित्र चुने गए।

जुलाई में श्रमदान की शुरुआत हुई और नदी के प्रवाहक्षेत्र को अतिक्रमणमुक्त व साफ किया गया। खोदाई और सफाई का काम बड़े पैमाने पर हुआ। रोजाना करीब 500 लोग सफाई करते गए तो लक्ष्य आसान हो गया। 55 किमी नदी की सफाई, खोदाई के लिए नदी को चार सेक्टर में बांटकर 29 सभाएं की गई। मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा से एलान कर नदी सफाई का आह्वान किया गया। करीब 50 गांव के कार सेवकों की सूची में हिंदू, मुस्लिम, सिखों ने भगीरथ प्रयास में हाथ बंटाया।

लोक भारती संगठन के डॉ. विजय पाठक ने बताया, तीस सालों से नदी सूखी पड़ी थी। अभियान के बाद अब नदी में दोबारा पानी देखा तो लगा कि सारे सपने पूरे हो गए। यह 50 गांवों के ग्रामीणों की मेहनत का फल है। 25 साल की चिकित्सा सेवा में इतना संतोष नहीं मिला, जितना इस नदी में पानी के बाद...।

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