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नहर के किनारे क्रांतिकारी बनाते थे आजादी की रणनीति

गांव भैंसवाल में बनी मार्श की कोठी तो क्रांतिकारियों का निशाना थी ही यहां लगे पेड़ों के नीचे भी वीर सपूत घंटों बैठकर योजनाएं बनाते थे।

By JagranEdited By: Updated: Fri, 09 Aug 2019 06:17 AM (IST)
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नहर के किनारे क्रांतिकारी बनाते थे आजादी की रणनीति

अनुज सैनी, शामली: गांव भैंसवाल में बनी मार्श की कोठी तो क्रांतिकारियों का निशाना थी ही, यहां लगे पेड़ों के नीचे भी वीर सपूत घंटों बैठकर योजनाएं बनाते थे। गांव के 89 वर्षीय बुजुर्ग बाबा सूरजमल बताते हैं कि अंग्रेज कलेक्टर मार्श के परिवार को पर्यावरण संरक्षण से बेहद लगाव था। गांव भैंसवाल में ही कलक्टर मार्श का जन्म हुआ था। उनके पिता सिचाई विभाग में कार्यरत थे। रजवाहे के किनारे पर्यावरण प्रेमी इस परिवार ने कोठी का निर्माण कराया और इसमें ही निवास शुरू किया। इस कोठी के आसपास घने जंगल हुआ करते थे। यहां जंगल आज भी मौजूद हैं। इस कोठी के किनारे खुद अंग्रेज कलक्टर मार्श ने अपने हाथों से कई पौधे रोपित किए, जो आज वृक्ष के रूप में यहां मौजूद हैं, लेकिन रजवाहे किनारे खड़ा दुर्लभ प्रजाति का वृक्ष मार्श के जन्म से भी पूर्व का है। यह वृक्ष आज भी आजादी के संघर्ष की याद दिला रहा है।

बाबा सूरजमल बताते हैं कि अंग्रेज कलेक्टर मार्श व परिवार इसी वृक्ष की छाया में एकांत के लिए समय बिताया करते थे। आजादी के दीवाने इस कोठी के सामने विरोध प्रदर्शन करने पहुंचा करते थे तो वह भी इस वृक्ष की गोद में बैठकर कुछ देर सुस्ता लिया करते थे। अब यह दुर्लभ वृक्ष विशाल हो गया है। तब से लेकर अब तक हर साल लोग स्वतंत्रता की प्रत्येक वर्षगांठ पर गांव के कुछ लोग इसकी छांव में एकत्र होकर आजादी के लम्हों को याद करते हैं। घनी आबादी वाले इस गांव में स्वतंत्रता दिवस का पर्व नए उत्साह व उमंग लेकर आता है। इस एक दिन के लिए बुजुर्गो व महिलाओं से लेकर बच्चा-बच्चा मार्श की कोठी पर पहुंचकर पुराने पेड़ों की छांव में सिमट जाते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि बार-बार मांग किए जाने के बावजूद प्रशासन ने मार्श की कोठी व यहां के पेड़ों को सुरक्षित रखने कोई इंतजाम नहीं किए हैं। उन्होंने देश की स्वतंत्रता के उस पावन दिन की याद में लगाए गए इस ऐतिहासिक वृक्ष के संरक्षण की मांग की है। बत्तीसा खाप के चौधरी बाबा सूरजमल बताते हैं कि अंग्रेजों की सैकड़ों वर्षों की गुलामी से मुक्ति व देश की आजादी की खुशी तो सब मनाते हैं, लेकिन उसके पीछे देश के वीर सपूतों के संघर्ष को सम्मान नहीं मिलता। गांव के युवा जब-जब इस वृक्ष की छांव से गुजरते हैं, उन्हें अपनी आजादी के लिए संघर्ष करने वाले याद आते हैं। उन्होंने बताया कि कलेक्टर मार्श ने मुजफ्फरनगर का कलक्टर रहते गांव के लिए काफी कुछ किया। इसलिए इस ऐतिहासिक कोठी व यहां के पर्यावरण को सहेजकर रखने की जिम्मेदारी सभी की बनती है। ऐतिहासिक कोठी के जीर्णोद्धार का कार्य अधूरा

कोठी के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए साल-2016 में राज्य योजना आयोग के सदस्य रहते प्रोफेसर सुधीर पंवार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जनभावनाओं से अवगत कराया। इसके चलते सरकार से मरम्मत के लिए 98 लाख रुपये स्वीकृत किए। जनवरी 2017 मे 44.50 लाख की पहली किस्त जारी हो गई थी। इससे सिचाई विभाग ने वहां पर चारदीवारी का निर्माण करा दिया है, लेकिन बाद में नई सरकार बनने के बाद इस पर काम बंद है। ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि इसका निर्माण कार्य सरकार को पूरा कराना चाहिए। यह जनता की भावनाओं से जुड़ा आजादी के दीवानों ने यहां आंदोलन किए, यह उनकी निशानी है।

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