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Lok Sabha Election: रोचक है यूपी की इस सीट का इतिहास, कभी हैट्रिक नहीं लगा सका कोई भी दल, सुर्खियों में रहा था पलायन

Lok Sabha Election Kairana Seat कैराना सीट पर दो बार कांग्रेस के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है। पहली बार 1971 में तो दूसरा बार 1984 में लेकिन उसके बाद से पार्टी के लिए कैराना सीट पर सूखा चल रहा है। लगभगत 40 साल हो चुके हैं लेकिन कांग्रेस को कैराना सीट पर जीत नहीं मिली है। इस बार कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन है।

By abhishek kaushik Edited By: Abhishek Saxena Updated: Fri, 22 Mar 2024 04:17 PM (IST)
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Kairana News: कैराना सीट पर कभी हैट्रिक नहीं लगा सका कोई भी दल
अभिषेक कौशिक, शामली। कैराना का नाम जहन में आते ही सबसे पहले किराना घराना और सुर-ताल से जुड़ी यादें ताजा हो जाती हैं। संगीत की दुनिया में जहां कैरान प्रसिद्ध है, तो बदलते वक्त में राजनीति में भी महत्वपूर्ण है। लोकसभा की इस सीट पर देश और प्रदेश की नजरें टीकी रहती हैं। पलायन के साथ ही अपराध का मुद्दा भी खूब सुर्खियों में रहा है।

कैराना सीट का एक रोचक इतिहास यह भी है कि यहां पर कोई भी दल हैट्रिक नहीं लगा सका है। फिर चाहे वेस्ट यूपी के बड़े नामों में शामिल बाबू हुकुम सिंह हों या फिर हसन परिवार। किसान और गन्ने की राजनीति करने वाले रोलाद के साथ ही जनता पार्टी और जनता दल ने ही सिर्फ लगातार दो बार जीत दर्ज की है।

पहली बार यहां 1962 में हुआ था चुनाव

कैराना सीट पर पहली बार 1962 में चुनाव हुआ था। यशपाल सिंह निर्दलीय विधायक चुने गए थे। पांच साल बाद जब फिर से चुनावी मैदान में बिसात बिछी तो संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार गयूर अली खान ने जीत का परचम लहराया। तीसरे चुनाव में कांग्रेस का पहली बार इस सीट पर खाता खुला और प्रत्याशी शफकत जंग ने जीत दर्ज की।

इसके बाद लगातार दो बार चुनाव 1977 में चंदन सिंह और 1980 में गायत्री देवी (पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी) ने जनता पार्टी से विजय श्री हासिल की। 1984 में कांग्रेस से अख्तर हसन जीते थे। इसके बाद 1989 और 1991 में हुए चुनाव में जनता दल के हरपाल सिंह पंवार चुनकर लोकसभा तक पहुंचे थे।

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1996 में सीट सपा और 1998 में भाजपा के नाम रही। 1999 में रालोद के अमीर आलम खान और 2004 में रालोद की अनुराधा चौधरी ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद तो हर बार प्रतयाशी और पार्टी ही बदलती रहीं।

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कांग्रेस का सूखा ही चल रहा

सपा के चुनाव निशान पर इस सीट पर इस बार इकरा हसन प्रत्याशी हैं। इकरा राजनीतिक घराने से जुड़ी हैं। उनके दादा से लेकर पिता, माता और भाई भी राजनीति में हैं। अब देखना होगा कि क्या इस बार गठबंधन को जीत मिलेगी।

सियासत और विरासत के बीच होगा मुकाबला

कैराना सीट का चुनाव सुर्खियों में रहता है। अभी तक इस सीट पर एनडीए की ओर से वर्तमान सांसद प्रदीप चौधरी मैदान में हैं, तो सपा गठबंधन की इकरा हसन हैं। बसपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। चुनाव में सियासत और विरासत का तड़का लग रहा है।

प्रदीप चौधरी तीन बार विधायक रह चुके हैं, जबकि वर्तमान सांसद भी हैं। उन पर पार्टी ने फिर से दांव लगाया है। इकरा हसन की बात करें तो उनके दादा अख्तर हनस, पिता मनव्वर हसन और मां तबस्सुम भी सांसद रह चुकी हैं। भाई नाहिद हसन लगातार तीन बार से विधायक हैं।

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