Lok Sabha Election: रोचक है यूपी की इस सीट का इतिहास, कभी हैट्रिक नहीं लगा सका कोई भी दल, सुर्खियों में रहा था पलायन
Lok Sabha Election Kairana Seat कैराना सीट पर दो बार कांग्रेस के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है। पहली बार 1971 में तो दूसरा बार 1984 में लेकिन उसके बाद से पार्टी के लिए कैराना सीट पर सूखा चल रहा है। लगभगत 40 साल हो चुके हैं लेकिन कांग्रेस को कैराना सीट पर जीत नहीं मिली है। इस बार कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन है।
अभिषेक कौशिक, शामली। कैराना का नाम जहन में आते ही सबसे पहले किराना घराना और सुर-ताल से जुड़ी यादें ताजा हो जाती हैं। संगीत की दुनिया में जहां कैरान प्रसिद्ध है, तो बदलते वक्त में राजनीति में भी महत्वपूर्ण है। लोकसभा की इस सीट पर देश और प्रदेश की नजरें टीकी रहती हैं। पलायन के साथ ही अपराध का मुद्दा भी खूब सुर्खियों में रहा है।
कैराना सीट का एक रोचक इतिहास यह भी है कि यहां पर कोई भी दल हैट्रिक नहीं लगा सका है। फिर चाहे वेस्ट यूपी के बड़े नामों में शामिल बाबू हुकुम सिंह हों या फिर हसन परिवार। किसान और गन्ने की राजनीति करने वाले रोलाद के साथ ही जनता पार्टी और जनता दल ने ही सिर्फ लगातार दो बार जीत दर्ज की है।
पहली बार यहां 1962 में हुआ था चुनाव
कैराना सीट पर पहली बार 1962 में चुनाव हुआ था। यशपाल सिंह निर्दलीय विधायक चुने गए थे। पांच साल बाद जब फिर से चुनावी मैदान में बिसात बिछी तो संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार गयूर अली खान ने जीत का परचम लहराया। तीसरे चुनाव में कांग्रेस का पहली बार इस सीट पर खाता खुला और प्रत्याशी शफकत जंग ने जीत दर्ज की।इसके बाद लगातार दो बार चुनाव 1977 में चंदन सिंह और 1980 में गायत्री देवी (पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी) ने जनता पार्टी से विजय श्री हासिल की। 1984 में कांग्रेस से अख्तर हसन जीते थे। इसके बाद 1989 और 1991 में हुए चुनाव में जनता दल के हरपाल सिंह पंवार चुनकर लोकसभा तक पहुंचे थे।
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1996 में सीट सपा और 1998 में भाजपा के नाम रही। 1999 में रालोद के अमीर आलम खान और 2004 में रालोद की अनुराधा चौधरी ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद तो हर बार प्रतयाशी और पार्टी ही बदलती रहीं।
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