Kairana MP Iqra Hasan: ये है इकरा हसन की जीत का सीक्रेट, यूं ही नहीं फतह किया कैराना का ‘किला’
Why Iqra Hasan Won चुनाव में इकरा हसन का सीधा मुकाबला भाजपा-रालोद प्रत्याशी प्रदीप चौधरी से था। भाजपा प्रत्याशी के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और केशव प्रयाद मौर्य के अलावा रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयन्त चौधरी तक ने प्रचार किया था लेकिन सपा प्रत्याशी इकरा हसन अकेले ही चुनावी मैदान में डटी रहीं।
अभिषेक कौशिक, शामली। कैराना लोकसभा सीट पर सपा प्रत्याशी इकरा हसन ने अपने राजनीतिक कौशल और कुशल प्रबंधन से जीत दर्ज कर चबूतरे की विरासत को आगे बढ़ाया है। हसन परिवार की तीसरी पीढ़ी के रूप में उन्होंने दमदार तरीके से चुनावी समर में ताल ठोकी, और तीन बार के विधायक और निवर्तमान सांसद को शिकस्त दी। जनता जनार्दन ने उनकी सोच, समझ और व्यवहार को स्वीकार किया और संसद तक पहुंचा दिया। वहीं, देश-प्रदेश की सबसे चर्चित सीटों में से एक पर जीत दर्ज करने के बाद उनका सपा में कद बढ़ने की उम्मीद है।
कैराना लोकसभा सीट का जिक्र आते ही हसन परिवार का नाम राजनीतिक में रसूख रखने वाले घरानों में शामिल हो जाता है। इकरा हसन के दादा ने पहली बार 1984 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था। 1996 में उनके पिता मुनव्वर हसन ने सपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी। 2009 और 2018 के उपचुनाव में उनकी मां तबस्सुम हसन सांसद बनी थी। परिवार की विरासत को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने पहली बार 2016 में जिला पंचायत का चुनाव पूर्व कैबिनेट मंत्री और वर्ममान एमएलसी वीरेंद्र सिंह के बेटे मनीष चौहान के सामने लड़ा था, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
2017 में भाई नाहिद हसन ने विधानसभा का चुनाव लड़ा तो उसकी बागडोर संभाल ली थी। भाई की जीत में इकरा हसन का अहम योगदान था। 2022 के विधानसभा चुनाव में नाहिद हसन गैंगस्टर के मामले में जेल में बंद थे, जो चुनाव की पूरी कमान उन्होंने अपने हाथ में ले ली थी। यहीं से उनका राजनीतिक कौशल और कुशल प्रबंधन सभी ने देखा। जेल में बंद रहते हुए भाई को उन्होंने विधायक बनवाया, जिसके बाद उनकी पहचान मजबूत हो गई।
अकेला चलो की रणनीति आई काम
चुनाव में इकरा हसन का सीधा मुकाबला भाजपा-रालोद प्रत्याशी प्रदीप चौधरी से था। भाजपा प्रत्याशी के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और केशव प्रयाद मौर्य के अलावा रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयन्त चौधरी तक ने प्रचार किया था, लेकिन सपा प्रत्याशी इकरा हसन अकेले ही चुनावी मैदान में डटी रहीं। वह शहर से लेकर गांव और देहात की पगडंडियों पर अकेली ही चलीं और जीत की कहानी लिख दी। जानकारों का मानना है कि उन्होंने अकेला चलो वाला रणनीति अपनाई और सफलता हासिल की।
नए चेहरे और सौम्य स्वभाव से जुड़े लोग
इकरा हसन करीब एक साल से चुनावी तैयारियों में जुटी थीं। लोगों के सुख-दुख में आना-जाना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे लोग भी उनको पसंद करते चले गए। नए चेहरे के साथ ही उनकी सौम्य छवि और सरल स्वभाव ने लोगों का दिल जीत लिया। इसका ही नतीजा है कि मुस्लिम वोट के साथ ही उनको सर्व समाज का वोट मिला है। चुनाव प्रचार भी उन्होंने बिना शोर-शराबे के किया। कैराना क्षेत्र की बेटी और नकुड़ में ननिहान होने का भी उनको लाभ मिला।लोगों की नाराजगी को बनाई अपनी जीत
चुनावी ऊंट किस करवट बैठे, यह कोई नहीं जानता। राजनीति में जो अवसर को भुना ले, वही खिलाड़ी होता है। चुनाव के दौरान भाजपा-रालोद प्रत्याशी से लोगों की नाराजगी खुलकर थी। इसका फायदा इकरा हसन ने उठाया और उनके बीच में पहुंचकर जीत दर्ज की। प्रचार और जनसंपर्क के दौरान इकरा की रणनीति यही रही कि वह उन सभी गांवों और कस्बे में पहुंचे, जहां प्रतिद्वंद्वी का अधिक विरोध है।
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