जिले की धरा पर भगवान श्रीकृष्ण के कदम पड़े थे। मराठाकाल में यहां छावनी भी रही है। शहर के चार शिवालय मराठाकाल में गुफा के माध्यम से जुड़े हुए थे। यहां 1857 की क्रांति के अवशेष भी हैं लेकिन धरोहरों को संजोए रखने के लिए जो प्रयास होने चाहिए थे वह नहीं हुए। हालांकि सार्थक प्रयास होने से जिला पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित हो सकता है। इससे यहां का विकास भी तेज गति से होगा।
By JagranEdited By: Updated: Sat, 26 Sep 2020 10:35 PM (IST)
शामली, जेएनएन। जिले की धरा पर भगवान श्रीकृष्ण के कदम पड़े थे। मराठाकाल में यहां छावनी भी रही है। शहर के चार शिवालय मराठाकाल में गुफा के माध्यम से जुड़े हुए थे। यहां 1857 की क्रांति के अवशेष भी हैं, लेकिन धरोहरों को संजोए रखने के लिए जो प्रयास होने चाहिए थे, वह नहीं हुए। हालांकि सार्थक प्रयास होने से जिला पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित हो सकता है। इससे यहां का विकास भी तेज गति से होगा। -श्री हनुमान धाम
श्री मंदिर हनुमान टीला हनुमान धाम महाभारत और मराठाकालीन संस्कृति का केंद्र रहा है। कहते हैं कि युद्ध भूमि कुरुक्षेत्र जाते समय यहां पर भगवान श्रीकृष्ण ने यहां रात्रि विश्राम किया था और बजरंग बली की स्तुति भी की थी। भगवान के कदम इस धरा पर पड़े थे तो इसीलिए इसका नाम श्यामनगरी पड़ा था। बाद में यह शामली हो गया था। मराठा सैनिकों ने यहां पर छावनी का निर्माण किया था। 14 मार्च 1969 में चारों मठों के शंकराचार्य व विभिन्न मठों एवं दंडी स्वामियों ने अपने सार-गर्भित प्रवचनों द्वारा इसे अभिभूत किया था। धाम में विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर में अब बने हुए हैं।
---- जस्सूवाला मंदिर
थानाभवन के पश्चिम में स्थित सुप्रसिद्ध मंदिर जस्सू वाला है। कहते हैं कि मराठा युवराज जस्सामल अपनी नववधु के साथ इस मार्ग से गुजर रहे थे। इसी दौरान लुटेरों ने उन पर हमला कर दिया। युद्ध करते हुए जस्सामल शहीद हो गए थे। अपने पति की हत्या होते देख नववधू रानी ने तलवार थाम ली और लुटेरों से लोहा लिया, लेकिन वह भी शहीद हो गई थी। युवराज व रानी की समाधि आज भी मंदिर तालाब के दोनों ओर स्थित है। पौराणिक समय में उक्त स्थान पर एक शिवलिग था और मराठाओं ने ही मंदिर का निर्माण का कराया था। जस्सूवाला महादेव मंदिर का चयन मुख्यमंत्री पर्यटन संवर्धन योजना के तहत हुआ है और योजना में सौंदर्यीकरण के विभिन्न कार्य कराए जाएंगे। -गुफा से जुड़े हैं चार शिवालय शामली में चार शिवालय महाभारतकाल से भी पहले बताए जाते हैं। इनमें सिद्धपीठ गुलजारीवाला मंदिर, श्री सदाशिव मंदिर, भाकूवाला मंदिर, मुक्तेश्वर महादेव मंदिर है। भगवान श्रीकृष्ण द्वापर युग में हस्तिनापुर से महाभारत के युद्ध क्षेत्र कुरूक्षेत्र में जाते हुए शामली में रुके थे और शहर के चारों कोने पर तब भी शिवलिग थे। भगवान कृष्ण ने चारों शिवलिग पर जाकर शिव की पूजा की थी। मराठाकाल में चारों शिवालय गुफा के माध्यम से एक-दूसरे से जोड़े भी गए थे। गदर की गवाह तहसील
1857 की क्रांति में शामली ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। इसकी गवाह अंग्रेजों के जमाने की तहसील है। आजादी के दीवानों ने बरखंडी स्थित तहसील को जला दिया था, जहां अंग्रेज सैनिक पनाह लिए हुए थे। स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने उस वक्त के आधुनिक हथियारों से लैस अंग्रेज सैनिकों को नाकों चने चबवा दिए थे और तहसील पर कब्जा कर लिया था। तत्कालीन डीएम वर्डफोर्ड के आवास को भी जला दिया था, लेकिन वह किसी तरह बच निकले थे। अंग्रेजों के जमाने की तहसील आजादी के दीवानों के शौर्य और साहस को दर्शाती है। हालांकि इस धरोहर को संजोने के प्रयास कभी नहीं हुए। अब यहां झाड़ियां उगी हैं और चारों तरफ गंदगी रहती है। --- नवाब तालाब भी है धरोहर मुगल बादशाह जहांगीर के वजीर मुकर्रब खां ने कैराना के मोहल्ला अफगानान ने बड़े तालाब का निर्माण कराया था, लेकिन आज तालाब बदहाल स्थिति में है। नवाब तालाब का क्षेत्रफल करीब 140 बीघा का था, लेकिन अब बड़े हिस्से पर कब्जे हो चुके हैं। कभी यह तालाब अपनी खूबसूरती और प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज नवाब तालाब लोगों को खुद की ओर खूब लुभाया करता था। लेकिन जिम्मेदारों ने इस धरोहर को संजोए रखने के लिए प्रयास नहीं किए। ---- इस्सोपुर टील में मिले थे मृदभांड कांधला क्षेत्र के गांव इस्सोपुर टील में स्थित टीलों की खोदाई में मृदभांड मिले थे। उन पर ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ था। वर्ष 2002 में थोड़ी ही खोदाई कराई गई थी। माना जाता है कि यहां पर महाभारतकालीन अवशेष भी मिल सकते हैं। साथ ही यहां 3200 साल पुरानी लौह युगीन सभ्यता होना भी बताया जाता है। इस्सोपुर टील को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है और पर्यटन विभाग प्रस्ताव तैयार कर रहा है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।