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हमें सीख देती है श्रीकृष्ण व सुदामा की मित्रता

अयोध्या से पधारे स्वामी सूर्यकांत आचार्य ने श्री कृष्ण व सुदामा की मित्रता की कथा सुनाते हुए कहा कि इससे हमें और समाज को सीख देती है। विषम परिस्थिति में भी मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए। वह मंगलवार को शिव बाबा घाट पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा समापन पर बोल रहे थे।

By JagranEdited By: Updated: Tue, 10 Aug 2021 11:30 PM (IST)
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हमें सीख देती है श्रीकृष्ण व सुदामा की मित्रता

सिद्धार्थनगर :अयोध्या से पधारे स्वामी सूर्यकांत आचार्य ने श्री कृष्ण व सुदामा की मित्रता की कथा सुनाते हुए कहा कि इससे हमें और समाज को सीख देती है। विषम परिस्थिति में भी मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए। वह मंगलवार को शिव बाबा घाट पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा समापन पर बोल रहे थे। कहा कि जीवन में माता पिता और गुरु के बाद मित्र को विशेष स्थान दिया गया है। मित्र हमारे सुख-दुख के साथी होते हैं। किसी भी परिस्थिति में मित्र हमेशा साथ खड़े होते हैं। कृष्ण और सुदामा के बीच मित्रता की कहानी में हमें मित्र के प्रति ईमानदारी, त्याग और सम्मान का भाव दिखाई देता है। जब कभी मित्रता की बात होती है तो कृष्ण और सुदामा की मिसाल दी जाती है। जब कृष्ण बालपन में ऋषि संदीपन के यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो उनकी मित्रता सुदामा से हुई थी। कृष्ण एक राजपरिवार में और सुदामा ब्राम्हण परिवार में पैदा हुए थे। परंतु दोनों की मित्रता का गुणगान पूरी दुनिया करती है। शिक्षा-दीक्षा समाप्त होने के बाद भगवान कृष्ण राजा बन गए वहीं दूसरी तरफ सुदामा के बुरे दौर की शुरुआत हो चुकी थी। खाने तक के मोहताज सुदामा की पत्नी ने उन्हें राजा कृष्ण से मिलने जाने के लिए कहा। द्वारिकाधीश ने जैसे ही द्वारपाल से सुदामा का नाम सुना तो नंगे पैर मित्र की आवा भगत करने पहुंच गए। लोग समझ नहीं पाए कि आखिर सुदामा में क्या विशेषता है कि भगवान स्वयं उनके स्वागत में दौड़ पड़े। श्रीकृष्ण ने स्वयं सिंहासन पर बैठाकर सुदामा के पैर पखारे। कृष्ण-सुदामा चरित्र प्रसंग पर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे। इसके साथ महाआरती की गई। इस अवसर पर पंडित आचार्य राम प्रकाश दास, पप्पू बाबा, पंडित अमर वैदिक, शिव प्रसाद वर्मा, टिकू वर्मा, रवि अग्रवाल, दुर्गा प्रसाद त्रिपाठी, सर्वेश कुमार आदि मौजूद रहे।

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