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200 साल पुराने पुल की छत तोड़ने में छूटे पसीने, 32 घंटे से मेहनत जारी

इसके बाद बगल में नए पुल का फाउंडेशन बनाया जा रहा है। स्थानीय लोगों के मुताबिक आज कल सीमेंट ईंट व सरिया के प्रयोग से मकान बनते है जिनका जीवन चक्र ही 60–70 साल है। यह अपने बनने के 30–40 वर्षों बाद ही क्षय होने लगते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Mohammed AmmarUpdated: Fri, 06 Jan 2023 04:55 PM (IST)
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200 साल पुराने पुल की छत तोड़ने में छूटे पसीने, 32 घंटे से मेहनत जारी

जागरण संवाददाता, भवानीगंज, डुमरियागंज : करीब दो सौ वर्ष पुराने एक पुल को तोड़ने में लोक निर्माण विभाग के पसीने छूट गए। पुल की छत को तोड़ने के लिए पोकलेन मशीन लगाई गई। उसके पांच दांत भी टूट गए, लेकिन छत नहीं टूटी। थकहार कर विभाग दूसरी तरफ नये पुल निर्माण के लिए ढांचा तैयार करने में जुट गया है।

डुमरियागंज चन्द्रदीप घाट मार्ग का निर्माण 44 करोड़ रुपए की लागत से हो रहा है।

इस मार्ग के मौलाना आजाद इंटर कालेज के पास बना पुल करीब 200 वर्ष पुराना है। इस पुल में ईंटों की चुनाई सुर्खी (ईंट पीसकर) गुड़ का सीरा, चूना, उड़द, बेल का गूदा आदि मिलाकर किया गया था। अब इसको तोड़कर उक्त स्थान पर नए पुल का निर्माण किया जाना है। पोकलेन मशीन से पुल की छत ही तोड़ने में चार दिनों से प्रतिदिन 8 घंटे मशीन चलाई गई, लेकिन केवल छत नहीं टूटी, बल्कि मशीन के दांत टूट गए।

इसके बाद बगल में नए पुल का फाउंडेशन बनाया जा रहा है। स्थानीय लोगों के मुताबिक आज कल सीमेंट, ईंट व सरिया के प्रयोग से मकान बनते है जिनका जीवन चक्र ही 60–70 साल है। यह अपने बनने के 30–40 वर्षों बाद ही क्षय होने लगते हैं।

पहले पक्के मकान, पुल व किले मुख्यतः पत्थर से बने होते थे। ग्रेनाइट की चट्टानों से काट कर यह पत्थर सुंदर कलाकृति में गढ़े जाते थे । इनको जोड़ने के चूना पत्थर, चिकनी मिट्टी, उड़द की दाल को गर्म कर,या चावल की माड़, अंडे, सीसा या गुड़ को भी स्थानीय स्तर पर सस्ता व आसानी उपलब्ध हो उसे मिलाकर मसाला तैयार कर चुनाई की जाती थी जो लंबे अर्से तक टिकते थे। अधिशासी अभियंता लोनिवि बांसी विवेक राय ने कहा कि पुराना पुल निष्प्रयोज्य घोषित कर नये पुल का निर्माण कराया जा रहा है।