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Madurai Train Fire: तीर्थयात्रियों के लिए ‘भगवान’ बनकर आया ये पैसेंजर, नहीं तोड़ता ताला तो चली जाती सबकी जान

Madurai Train Fire धीरज ने बताया कि सुबह करीब साढ़े पांच बजे कोच के किचेन में चाय बन रही थी। बावर्चियों को छोड़कर अधिकांश यात्री सो रहे थे। इसी दौरान बावर्ची अंकुल कश्यप ने तेज आवाज लगाई कि भागो-भागो आग लग गई है। उसकी आवाज के साथ ही गैस रिसाव से बने आग के गोले भी आ गए। हालांकि अंकुल की भी हादसे में मौत हो गई है।

By Jagran NewsEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Mon, 28 Aug 2023 08:07 PM (IST)
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Madurai Train Fire: तीर्थयात्रियों के लिए ‘भगवान’ बनकर आए धीरज
 दुर्गेश द्विवेदी, सीतापुर: मदुरै हादसे में कोच के गेट का ताला तोड़ने वाले रोटी गोदाम के धीरज गुप्त तीर्थयात्रियों के लिए ‘भगवान’ बन गए। कोच में जब आग लगी उस समय चारों गेट में ताले लगे थे। वह यदि गेट का ताला न तोड़ते तो शायद कोच में सवार किसी भी यात्री की जान न बच पाती।

साथी यात्री उनके इस प्रयास की सराहना भी करते हैं। सभी गेटों में ताला लगाकर भी रेलवे और ट्रैवेल एजेंसी संचालक लापरवाही ही बरती। मदुरै में हादसा सुबह लगभग साढ़े पांच बजे हुआ था। उस समय चारों दरवाजे बंद थे। जैसे उनकी आंख खुली धीरज गुप्त भी गेट की ओर भागे, लेकिन ताला लगा होने के कारण रुक गए और पीछे लोगों की भीड़ आ गई।

किसी पास चाबी न मिलने पर धीरज ने पाइप रिंच से ताला तोड़कर गेट खोला था। इसके बाद कोच के यात्री बाहर निकल पाए थे।

धीरज ने बताया कि 26 अगस्त को सुबह करीब साढ़े पांच बजे कोच के किचेन में चाय बन रही थी। बावर्चियों को छोड़कर अधिकांश यात्री सो रहे थे।

इसी दौरान बावर्ची अंकुल कश्यप ने तेज आवाज लगाई कि भागो-भागो आग लग गई है। उसकी आवाज के साथ ही गैस रिसाव से बने आग के गोले भी आ गए। हालांकि, अंकुल की भी हादसे में मौत हो गई है।

पानी भी नहीं कर रहा था काम

यात्रियों में रात में स्नान करने के बाद कपड़े कोच पर ही फैला दिए थे। अधिकांश खिड़कियों पर कपड़े थे। गैस गोले आग बनकर खिड़कियों से निकले तो कपड़ो में आग लग गई। इससे विभीषिका और बढ़ गई।

कपड़े जलकर टपकने लगे। ऐसे में लोग जो एक दो खिड़कियां खुली थी, उनसे भी लोग कूद नहीं पाए। फायर बिग्रेड की गाड़ी को आग पर काबू करने में 20 मिनट से ज्यादा समय लगा। धीरज ने बताया कि शुरुआत में पानी पड़ने पर गैस के चलते आग और तेज हो रही थी।

बदन पर सिर्फ कच्छा और बनियान बचा

हादसे के समय कोच के आधिकांश यात्री नींद में थे। भगदड़ मचने पर सब जान बचाकर भागे। कोई भी अपना बैग बाहर नहीं निकाल पाया। ऐसे में लोग सिर्फ कच्छा बनियान में रह गए। धीरज गुप्त ने बताया कि स्थानीय लोगों ने पीड़ितों की काफी मदद की। अच्छे कपड़े दिए और भोजन आदि की व्यवस्था कराई।

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