पुण्य स्थल पर हो रहा ‘पाप’
सीतापुर: पुण्य स्थल पर ‘पाप’ हो रहा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं महर्षि दधीचि कुंड की। यहां सप्ताह भर में छह बार मछलियां मरने की घटनाएं हो चुकी हैं। मछलियों के मरने और कई दिनों तक उनके पड़े रहने से कुंड के पानी में प्रदूषण और बढ़ा है। जीवित मछलियों का भी जीवन दांव पर है। इसके बाद भी प्रशासन मछलियों के बचाव को लेकर संजीदा नहीं दिख रहा है। तीर्थराज अर्चना समिति के राहुल शर्मा ने बताया कि कई साल पहले कुंड के जल के पुनर्शोधन (रिसाइकिलिंग) के लिए बड़े व छोटे बोर से पाइप निकाल कर कुंड में ऊपर से पानी छोड़ा जाता था। बड़ा बोर साल भर से खराब है। छोटे बोर से इतना प्रेशर नहीं बन पाता कि कुंड के जल की लहर बन पाए।
निष्प्रयोज्य साबित हुआ नाला: राहुल शर्मा ने बताया कि डेढ़ महीने पहले डीएम अनुज सिंह आए थे। उनको कुंड से जलनिकासी की समस्या बताई थी। कुछ वर्षों पहले नगर पालिका ने कुंड से जलनिकासी के लिए 30 लाख रुपये से नाला बनाया था। कुंड से ऊंचाई पर होने के कारण उससे भी समस्या का समाधान नहीं हो सका। प्रशासन ने दो बार में एक-एक बोरी चूना जरूर कुंड में डलवाया है। चार-चार सौ ग्राम का दो डिब्बा पोटाश और दो पैकेट आक्सीजन की गोली डलवाई है। ब्लीचिंग या फिटकरी कुंड में डाला ही नहीं है।
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एक सप्ताह में छह बार हुईं घटनाएं: कुंड में मछलियों के मरने का सिलसिला 17 जुलाई से शुरू हुआ। इसके बाद 18, 19, 21, 22 और 23 जुलाई को भी बड़ी संख्या में मछलियां मृत पाई गईं। 17 और 18 जुलाई को पंद्रह से बीस क्विंटल मछलियों के मरने की बात कही जा रही है। स्थानीय लोगों के मुताबिक तीन पिकअप मछलियां दफनाने के लिए ले जाई गईं।
कुंड में आक्सीजन के अभाव में मछलियां मरी हैं। बचाव के लिए चूना, ब्लीचिंग, पोटाश और आक्सीजन की गोलियां डलवाई गई हैं। कुंड के पानी का पुनर्शोधन नहीं हो पा रहा है।
- गौरव श्रीवास्तव, एसडीएम
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दधीचि कुंड में लोग आटे की गोलियां व फूल-पत्ती डालते हैं। यह सामग्री कुंड में नीचे सतह पर जमा होती है। उसमें बैक्टीरिया पनपते हैं और अमोनिया गैस निकलने लगती है, जो मछलियों के लिए प्राणलेवा होती है। चूना, ब्लीचिंग, पोटाश डालने से मछलियों को कोई लाभ नहीं है।
- सौरभ सक्सेना, मत्स्य निरीक्षक।