रॉबर्ट्सगंज सीट पर सपा और अपना दल (एस) में सीधी लड़ाई, PM Modi ने बढ़ाई चुनौती; पढ़ें क्या है Ground Report
रॉबर्ट्सगंज सीट पर ‘कमल’ न होने से सपा-कांग्रेस गठबंधन को अपनी जीत की राह आसान दिख रही है लेकिन जिस तरह से रविवार को मीरजापुर की चुनावी जनसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘कप-प्लेट’ से अपना नाता जोड़ा। अब सपा की चुनौती बढ़ती दिख रही है। ‘पावर कैपिटल आफ इंडिया’ माने जाने वाले रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट के चुनावी परिदृश्य पर पेश है राज्य ब्यूरो प्रमुख अजय जायसवाल की रिपोर्ट-
मध्य प्रदेश से लेकर बिहार, झारखंड व छत्तीसगढ़ की सीमाओं से लगने वाले सोनभद्र जिले में उत्तर प्रदेश की आखिरी लोकसभा सीट राबर्ट्सगंज है। अनुसूचित जाति-जनजाति आदिवासी बहुल 75 प्रतिशत वन व पहाड़ वाले संसदीय क्षेत्र के चुनाव में न ‘कमल’ है और न ही ‘हाथ का पंजा’।
भाजपा के एनडीए में शामिल अपना दल(एस) ने मौजूदा सांसद पकौड़ी लाल कोल की विधायक बहू रिंकी कोल को जहां मैदान में उतारा है वहीं कांग्रेस के आइएनडीआइए में शामिल सपा ने भाजपा से सांसद रहे छोटेलाल खरवार को टिकट दिया है।
पिछले चुनाव में सपा से गठबंधन के चलते गायब रही बसपा ने अबकी धनेश्वर गौतम पर दांव लगाया है लेकिन ‘हाथी’ का प्रभाव कम ही दिखाई दे रहा है। क्षेत्र के दुर्गम इलाकों में भी ‘मोदी के मुफ्त राशन’ का असर तो खूब है लेकिन मैदान में भाजपा के न होने से लोगों में अपना दल (एस) के प्रति उत्साह कम दिखा।
मुख्य लड़ाई सपा की ‘साइकिल’ और अपना दल (एस) के ‘कप-प्लेट’ के बीच ही है। ‘कमल’ न होने से सपा-कांग्रेस गठबंधन को अपनी जीत की राह आसान दिख रही है लेकिन जिस तरह से रविवार को मीरजापुर की चुनावी जनसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘कप-प्लेट’ से अपना नाता जोड़ते हुए सिर्फ एमपी ही नहीं पीएम चुनने की बात कही उससे अब सपा की चुनौती बढ़ती दिख रही है। ‘पावर कैपिटल आफ इंडिया’ माने जाने वाले सोनभद्र की रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट के चुनावी परिदृश्य पर पेश है राज्य ब्यूरो प्रमुख अजय जायसवाल की रिपोर्ट:-
साढ़े तीन दशक पहले बने सोनभद्र जिले की राबर्ट्सगंज सुरक्षित संसदीय क्षेत्र की पांचों विधानसभा सीट चकिया(चंदौली जिले की), घोरावल, राबर्ट्सगंज, ओबरा और दुद्धी पर भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में कब्जा जमाया था। इनमें 50 फीसद से अधिक अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं वाली ओबरा और दुद्धी विधानसभा सीट एसटी के लिए आरक्षित है। वर्ष 2014 में मोदी लहर के चलते राबर्ट्सगंज सीट पर भाजपा ने डेढ़ दशक बाद वापसी की थी। इस बीच बसपा और सपा के कब्जे में रही सीट को पिछले चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल(एस) के लिए छोड़ दिया था।
पूर्व में सपा से सांसद रहे पकौड़ी लाल कोल ने अपना दल (एस) से जीत दर्ज की थी। पकौड़ी लाल के विवादित बोल से खासतौर से सवर्णों में नाराजगी को देखते हुए अपना दल(एस) ने अबकी उन्हें टिकट न देते हुए मिर्जापुर की छानबे विधानसभा सीट से उनकी विधायक बहू रिंकी कोल को चुनाव मैदान में उतारा है। एक दशक पहले भाजपा से सांसद चुने गए छोटेलाल खरवार अब सपा से मैदान में हैं।तकरीबन 35 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति की कोल, गोड़, खरवार, चेरो, बैगा, पनिका, अगरिया, पहरिया आदि जातियों के अलावा राबर्ट्सगंज सीट पर वंचित समाज का दबदबा है। कुर्मी-पटेल, निषाद-मल्लाह, अहीर-यादव, कुशवाहा, विश्वकर्मा आदि अन्य पिछड़े वर्ग की जातियों का भी ठीक-ठाक प्रभाव है। छह प्रतिशत के लगभग ब्राह्मण और इसी के आसपास राजपूत और मुस्लिम समाज की आबादी भी मानी जाती है।
क्षेत्र के शहरी कस्बाई इलाकों के पढ़े-लिखे नौकरी-पेशा और कारोबारी मोदी-योगी के कामकाज से तो प्रभावित हैं लेकिन पकौड़ी लाल की बहू को ही टिकट दिए जाने से नाराज हैं। ज्यादातर यही कह रहे कि भाजपा खुद यहां से मैदान में उतरती तो ‘कमल’ के खिलने में कोई दिक्कत ही नहीं थी।पकौड़ी लाल के परिवार में ही टिकट दिए जाने से अबकी सीट फंस भी सकती है। पूर्व में सांसद रहते क्षेत्र के विकास पर ध्यान न देने से लोग छोटेलाल से भी खुश नहीं हैं लेकिन इस बार कांग्रेस के साथ होने, बेरोजगारी, महंगाई के साथ ही क्षेत्र में पानी के संकट को लेकर लोगों की नाराजगी और ‘कमल’ के मैदान में न होने से बहुतों को सपा की स्थिति ठीक दिखाई दे रही है।
चकिया क्षेत्र के मवैया में रहने वाले जितेंद्र पाठक व अश्विनी उपाध्याय मोबाइल में पकौड़ी लाल की एक सभा का वीडियों दिखाते हुए कहते हैं जो व्यक्ति खुले मंच से सवर्णों को गाली दे रहा हो उसकी बहू को भी कोई मोदी भक्त क्यों वोट देगा? द्रोणापुर माती के राजेश मिश्र कहते हैं कि परिवारवाद के बजाय प्रत्याशी बदलना चाहिए था। मजबूरी है कि इन्हें नहीं मोदी को देखना है।चकिया में पान बेचने वाले राम अवध करते हैं कि भाजपा यहां से हारेगी तो सिर्फ प्रत्याशी के कारण। घोरावल के सुकृत में रेस्टोरेंट खोले संतोष कुमार कहते हैं कि मोदी-योगी के करे-कराए पर पकौड़ी लाल की खराब जुबान पानी फेर रही है। ओबरा के चोपन में पान की दुकान पर खड़े दिलीप देव पाण्डेय व प्रमोद व मुकेश मोदनवाल भी पकौड़ी से नाराजगी जताते हुए सवर्णों के आंकड़े पेशकर दावा करते हैं कि इस बार मतदान कम रहेगा या फिर नोटा दबेगा।
कहते हैं कि पार्टी वाले भले ही खुल कर न बोले लेकिन वे भी नहीं चाहते कि अपना दल यहां जड़े जमा ले। रेनूकूट के मुर्धवा के कमलेश सिंह पटेल, विनोद व राजन कहते हैं कि इस बार तो लोग ‘कप-प्लेट’ से भड़के हैं। दुद्धी के नगवां के हरिकिशुन खरवार भी पकौड़ी को नहीं चाहते लेकिन मोदी के हाथों को मजबूत करने की मजबूरी बताते हैं। राबर्ट्सगंज के कोन क्षेत्र में सोन नदी किनारे नकतवार के मल्लाह कहते हैं कि उनके नेता संजय निषाद के कहने पर कप-प्लेट का साथ देंगे। विजय चौधरी बताते हैं कि पहले हम सब बसपा के साथ थे।
वहीं दुर्गम इलाकों में बेहद कठिन जीवन गुजारने वालों के बीच मोदी-योगी सरकार की लाभार्थी योजनाओं का काफी हद तक असर दिखाई देता है। ज्यादातर मुफ्त राशन मिलने की बात स्वीकारते हैं लेकिन मकान न मिलने के लिए प्रधान को कोसते हैं। आम शिकायत है कि पाइप लाइन और टंकी बनी है लेकिन सालभर बाद भी एक बूंद पानी नहीं मिला है। इसके लिए भी प्रधान को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन मोदी-योगी की तारीफ करते हैं।
वोट देने के सवाल पर मकरा गांव के अमृतलाल, छोटू कुमार कहते हैं कि ‘कमल’ के बटन दबाएंगे लेकिन उसके न होने पर अटक जाते हैं। मगहरा, अगरिया डीह, बिजुलझरिया गांव वाले कहते हैं कि प्रधानजी की तरफ से पर्चा आएगा उसी को देख वोट डालेंगे। कस्बों में तो ‘कप-प्लेट’ का बटन दबाकर मोदी को जिताने वाले प्रचार वाहन दिखते हैं लेकिन दूर-दराज के गांवों में प्रत्याशी के बारे में ज्यादातर को कुछ पता नहीं है। हालांकि, रविवार को मोदी द्वारा यह कहना कि ‘मेरा बचपन कप प्लेट धोते-धोते बीता’ और ‘एमपी ही नहीं उन्हें पीएम चुनना है’ लोगों पर असर डालते दिख रहा है।
एनडीए नेताओं की कोशिश है कि मतदान से पहले मोदी के इस बयान को क्षेत्र में खूब फैलाया जाए ताकि गांव के मतदाताओं को भी यह पता हो जाए कि यहां मोदी के लिए ‘कमल’ नहीं ‘कप-प्लेट’ का बटन दबाना है। पकौड़ी से नाराजगी जताने वाले भी मोदी को पीएम बनाने के लिए ‘कप-प्लेट’ का बटन दबाएं।
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