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यहां ट्रेन की स्पीड के साथ बढ़ जाती है दहशत

सौ किमी प्रति घंटे की रफ्तार से जब सोनांचल की पटरियों पर रेलगाड़ी दौड़ती है तो उसमें सवार हजारों लोगों को जल्द ही अपने गंतव्य तक जल्द पहुंचने की उम्मीद बढ़ती जाती है। ..लेकिन यहां के कुछ ऐसे भी परिवार हैं कि जैसे-जैसे ट्रेन की स्पीड बढ़ती है वैसे-वैसे इनकी धुकधुकी बढ़ती जाती है। इतना ही नहीं उनके बच्चे जब घर के बाहर होते हैं तो एक ही ¨चता सता रही होती है कि कहीं ट्रेन न आ जाए। अमृतसर में हुए हादसे के बाद तो इनकी ¨चता और भी बढ़ गई है।

By JagranEdited By: Updated: Sun, 21 Oct 2018 09:15 PM (IST)
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यहां ट्रेन की स्पीड के साथ बढ़ जाती है दहशत

जागरण टीम, सोनभद्र : सौ किमी प्रति घंटे की रफ्तार से जब सोनांचल की पटरियों पर ट्रेन दौड़ती है तो उसमें सवार हजारों लोगों को जल्द ही अपने गंतव्य तक पहुंचने की उम्मीद बढ़ जाती है। ..लेकिन यहां कुछ ऐसे भी परिवार हैं कि जैसे-जैसे ट्रेन की स्पीड बढ़ती है वैसे-वैसे इनकी धुकधुकी बढ़ती जाती है। इतना ही नहीं उनके बच्चे जब घर के बाहर व पटरी के किनारे खेल रहे होते हैं तो एक ही ¨चता सता रही होती है कि कहीं वह ट्रेन की चपेट में न आ जाए। अमृतसर में हुए हादसे के बाद तो इनकी ¨चता और भी बढ़ गई है।

अमृतसर हादसे के बाद दैनिक जागरण ने जिले के विभिन्न इलाकों की पड़ताल की तो पता चला कि कई ऐसी बस्तियां हैं जो अब भी रेलवे ट्रैक के किनारे बसी हुई हैं। उनकी नित्य क्रिया से लेकर हर कार्य रेलवे ट्रैक के पास ही होता है। कई बार तो खाली समय में बच्चे इन्हीं पटरियों पर जान को जोखिम में डालकर खेलते भी हैं। ठंड के मौसम में हल्की धूप लेते हुए पतंगबाजी भी इन बस्तियों के बच्चे रेलवे ट्रैक के पास ही करते हैं। ऐसी स्थिति में हमेशा यह डर बना रहता है कि कब ट्रेन काल बनकर न आ जाय, कोई नहीं जानता। अब अगर अमृतसर हादसे के बाद भी रेल प्रशासन इस पर ध्यान नहीं दिया तो कभी भी हादसा हो सकता है। इन क्षेत्रों में हैं बस्तियां

उत्तर मध्य रेलवे के इलाहाबाद मंडल व पूर्व मध्य रेलवे के धनबाद मंडल की गाड़ियां जिले से होकर गुजरती हैं। जो करीब 228 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाती हैं। इसमें उत्तर मध्य रेलवे में मीरजापुर की सीमा से सटे लूसा से चोपन के मध्य कहीं भी ऐसी बस्ती नहीं है जो रेलवे की जमीन में हो। हां, सलखन के पास एक या दो दुकानें ट्रैक से थोड़ी ही दूरी पर हैं। पूर्व मध्य रेलवे के रेणुकूट क्षेत्र में तो कई बस्तियां ट्रैक के पास में हैं। कहीं ऊंचाई पर आबादी बसी है और उसके नीचे से ट्रेन की लाइन। कई स्थानों पर झुग्गी-झोपड़ी लगाकर सैकड़ों परिवार यहां रह रहे हैं। ऊर्जांचल के अनपरा, बीना, शक्तिनगर क्षेत्र में भी झुग्गी-झोपड़ी के रहवासी रेलवे लाइन के किनारे ही बस्तियां बनाकर रहते हैं। महज नोटिस तक सिमटी है कार्रवाई

रेलवे ट्रैक के किनारे बस्तियों को खाली कराने और उन्हें उचित स्थान तक भेजने में हर स्तर से लापरवाही बरती जाती है। पूर्व में इन बस्तियों के लोगों को केवल नोटिस और अल्टीमेटम ही दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि रेलवे भी इसलिए इन्हें नहीं हटाता क्योंकि इनके लिए कहीं भी स्थाई जमीन नहीं दी गई है।