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UP Lok Sabha Election: यूपी के इस शहर में लोगों की बस एक गुहार, 'खाए के त मिलत बा...पनिओ को इंतजाम कर द साहब'

यूपी की 80 लोकसभा सीटों में सोनभद्र जिले की अंतिम सीट राबर्ट्सगंज में भी चुनावी सरगर्मियां चरम पर है। एक-दो नहीं बल्कि जिले से चार राज्यों (मध्य प्रदेश बिहार छत्तीसगढ़ व झारखंड) की सीमाएं लगती हैं। एक जून को मतदान है लेकिन जिला मुख्यालय से दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्र में जाने पर कहीं भी चुनावी शोर नहीं सुनाई देता है।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Fri, 31 May 2024 08:16 AM (IST)
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पानी की एक-एक बूंद को तरस रहा गांव। जागरण

 अजय जायसवाल, जागरण, सोनभद्र। साहब, खाए के त मिलत बा....लेकिन पनिओ का बड़ा संकट है। झुलसा देने वाली गर्मी में सोनभद्र के पथरीले दुर्गम क्षेत्र के ज्यादातर चापाकल (हैंडपंप) पानी देना बंद कर चुके हैं और कुओं में भी पानी का पता नहीं है। पानी की टंकियां और टोटियां तो इधर-उधर दिखाई देती हैं लेकिन उनसे पानी की बूंद टपकने की लंबे समय से आस लगाए म्योरपुर विकास खंड के मकरा गांव की फूलमती देखते ही बड़ी उम्मीद से कहती हैं ‘पनियो का इंतजाम कर द साहब’।

पानी के संकट से बेहद परेशान मीरा बताती हैं कि जिंदा रहने के लिए अब तो नाले का भी पानी पीने को मजबूर हैं। नाले से भी तब पानी मिलता है, जब उसमें गहरा गड्ढा करते हैं। कागजों पर भले ही जल जीवन मिशन के तहत हर घर नल से जल योजना के तहत ग्रामीणों को नल से पानी मिलने के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत जाननी हो तो अति पिछड़े सोनभद्र जिले के आदिवासियों के बीच जाकर देखना चाहिए।

दुद्धी विधानसभा के सिन्दूर ग्रामसभा के मकरा गांव में ही नहीं अगरिया डीह, मंगहरा, बिजुलझरिया आदि गांव की जमीनी हकीकत यही है कि इधर-उधर झोपड़ी व खपरैल के घरों में रहकर बेहद कठिन जीवन जीने वाले ज्यादातर आदिवासी परिवारों के सामने भीषण गर्मी में पानी का इतना बड़ा संकट है कि दिन पानी जुटाने में ही गुजर रहा है। उन्हें पानी के लिए दो-दो किलोमीटर दूर तक जाना पड़ रहा है।

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उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में सोनभद्र जिले की अंतिम सीट राबर्ट्सगंज में भी चुनावी सरगर्मियां चरम पर है। एक-दो नहीं बल्कि जिले से चार राज्यों (मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ व झारखंड) की सीमाएं लगती हैं। एक जून को मतदान है लेकिन जिला मुख्यालय से दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्र में जाने पर कहीं भी चुनावी शोर नहीं सुनाई देता है।

तमाम समस्याओं से परेशान ज्यादातर ग्रामीण महिलाएं चुनाव के बारे में पूछने पर मुंह देखने लगते है। कुरेदने पर आसपास के बड़े-बुजुर्ग बस इतना ही कहते हैं कि प्रधान जी की तरफ से मिलने वाले पर्चे में जैसा होता है वैसा ही हम लोग करते हैं। पर्चा कैसा, के सवाल पर बताते हैं कि अरे, किस नंबर(ईवीएम में क्रम संख्या) और किस निशान के सामने का बटन दबाना है, यह तो पर्चे से ही पता चलेगा।

रेनूकूट के आगे और अनपरा से लगभग 20 किलोमीटर पहले हाईवे से छह-सात किलोमीटर अंदर अगरिया डीह में मोदी-योगी सरकार की योजनाओं के लाभ के सवाल पर संगीता कहती हैं कि राशन में एक यूनिट पर दो किलो गेहूं और तीन किलो चावल मिल रहा है लेकिन प्रधान जी मकान नहीं दिला रहे हैं।

पानी के संकट पर इधर-उधर पड़े पाइप और टोटी को दिखाते हुए कहती हैं कि सालभर से ज्यादा हो गया है टंकी, पाइप, टोटी लगे-लगे लेकिन अब तक कभी पानी नहीं आया है। इस पर मोदी-योगी से नाराजगी के सवाल पर बड़ी मासूमियत से कहती हैं कि उनसे कैसी नाराजगी, उनका तो हम पर एहसान है कि हम गरीबन की भूख से मौत नहीं हो रही है। गड़बड़ी तो बीच के लोग कर रहे हैं।

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अमृतलाल, छोटू कुमार और आदित्य प्रजापति बताते हैं कि पीने के पानी की ही मुश्किल है। खेती तो भगवान के भरोसे है। कहते हैं कि खुद की बोरिंग कराने पर 25-30 हजार खर्च करने के बाद भी पानी नहीं मिला। मोदी सरकार की योजना से बड़ी उम्मीद थी कि घर में नल से पानी मिलने लगेगा लेकिन पिछले साल शुरू हुए काम से अब तक पानी नहीं मिला।

कारण पूछने पर प्रधान को ही ज्यादा जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि ठेकेदार ने काम ही ठीक नहीं किया। मकरा गांव के प्राइमरी स्कूल में पानी की व्यवस्था है लेकिन इनदिनों स्कूल बंद होने से ग्रामीणों को भी पानी नहीं मिल पा रहा है। पंकज और सूरज बैगा भी कहते हैं कि राशन मिलने से परिवार भूखों नहीं मर रहा है लेकिन प्यास बुझाने के लिए आसपास पानी नहीं है। न कुएं में और न ही चापाकल में पानी बचा है। पाइप नल लगने पर भी उससे पानी नहीं मिल रहा है। अब तो भगवान जब बारिश कराएंगे तभी खेतों से लेकर पीने के पानी का संकट दूर होगा।

बबलू बताते हैं कि राशन लेने की लंबी लाइन से तीन दिन में राशन न मिलने पर कोटेदार बाद में राशन नहीं देता है। चाहते हैं कि सरकार कम से कम 10 दिन राशन बांटने की व्यवस्था करे ताकि सभी मुफ्त राशन तो ले सकें। वोट देने के सवाल पर मोदी का नाम लेते हैं लेकिन उन्हें मोदी का ‘कमल’ मालूम है ‘कप-प्लेट’ नहीं। क्षेत्र में पानी का संकट तो है ही, शिक्षा के लिए भी बच्चों को रेनूकूट या फिर सोनभद्र जाना पड़ता है। कटौली के उमेश कुमार कहते हैं कि शहर में पढ़ने के लिए आने-जाने का खर्चा उठाना ही बड़ा मुश्किल है।

छह करोड़ की टंकी भी न बुझी ग्रामीणों की प्यास

नगवां गांव में लगभग छह करोड़ रुपये की लागत से पक्की टंकी बनी है। वर्ष 2014 में चुने गए भाजपा सांसद छोटेलाल खरवार ने नगवां को गोद लिया था। गांव में सांसद आदर्श ग्राम पंचायत नगवां पेयजल योजना के तहत छह करोड़ से टंकी बनाए जाने के अलावा तकरीबन तीन करोड़ रुपये और खर्च कर पाइप लाइन बिछाए गए।

गौर करने की बात यह है कि वर्षों गुजरने के बाद भी टंकी और पाइप से अब तक किसी को पानी नहीं मिल सका है। गांव के ही हरि किशुन खरवार बताते हैं कि पैसे की बंदर-बांट से काम इतना घटिया किया गया है कि जगह-जगह पाइप टूटे हैं।

पानी का बड़ा संकट है लेकिन न प्रधान और न ही सांसद पकौड़ी लाल ने टंकी चालू कराने में दिलचस्पी दिखाई। गौरतलब है कि छोटेलाल इस बार सपा गठबंधन से चुनाव मैदान में हैं जबकि भाजपा से पकौड़ी लाल की विधायक बहू रिंकी कोल चुनाव लड़ रही हैं।

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