2 जून 1991 का काला दिन, जब सोनभद्र में सरकारी बंदूकों ने निहत्थे लोगों पर बरसाई थी 'मौत'; बदल गई थी सत्ता
32 वर्ष पहले दो जून 1991 को बंदूक की तड़तड़ाहट से डाला की धरती खून से लहूलूहान हो गई थी। इसकी गूंज जनपद ही नहीं देश के कोने-कोने में कई दिनों महसूस तक की गई थी। गोलीकांड में एक छात्र समेत नौ लोग अपनी जान गंवा दिए थे।
By Abhishek PandeyEdited By: Abhishek PandeyUpdated: Fri, 02 Jun 2023 10:58 AM (IST)
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : 32 वर्ष पहले दो जून 1991 को बंदूक की तड़तड़ाहट से डाला की धरती खून से लहूलूहान हो गई थी। इसकी गूंज जनपद ही नहीं, देश के कोने-कोने में कई दिनों तक महसूस की गई थी। गोलीकांड में एक छात्र समेत नौ लोगों ने अपनी जान गंवा दे दी थी। वहीं, सैकड़ों लोग घायल हुए थे। उनकी याद में हर वर्ष डाला के निवासी दो जून को शहीद दिवस मनाते हैं।
डालावासियों के लिए दो जून 1991 का दिन बेहद दुखद, शोक और दिल को दहला देने वाला था। उस समय की तत्कानील सरकार ने उत्तर प्रदेश राज्य सीमेंट निगम डाला, चुर्क व चुनार सीमेंट फैक्ट्री का निजीकरण कर संयुक्त क्षेत्र में चलाने का निर्णय लिया था। इसके विरोध में हजारों सीमेंटकर्मियों ने व्यापक रूप से आंदोलन किया।
पुलिस ने दागी थी सैकड़ों राउंड गोलियां
डाला कॉलोनी के मुख्य गेट के सामने स्थित वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर शांतिपूर्ण ढंग से निहत्थे मौन होकर बैठे थे। तभी पुलिस ने आंदोलनरत कर्मियों पर एकाएक सैकड़ों राउंड गोलियां बरसाना शुरू कर दिया था, जिसमें एक नहीं बल्कि कई लोगों ने अपनी जान गवा दी थी। एक छात्र सहित आठ सीमेंट कर्मी शहीद हो गए थे और सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हो गए थे, जो अस्पतालों में कई महीनों तक पड़े जीवन-मौत के बीच कराहते रहे।गोलीकांड के बाद वह सरकार चली गई और अस्तित्व में कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने कार्यभार ग्रहण कर जनहित में सीमेंट फैक्ट्री के निजीकरण के सौदे को रद्द कर सार्वजनिक क्षेत्र में चलाने का निर्णय लिया था।
सीमेंट कर्मियों का अब भी जिंदा है मुद्दा
उच्च न्यायालय के आदेश पर 8 दिसंबर 1999 को डाला, चुर्क व चुनार स्थित राजकीय सीमेंट फैक्ट्री को बंद कर दिया था। इसके बाद भी सीमेंट प्रबंधन के आदेश पर सभी कर्मचारी पूर्व की भांति ही कार्य करते रहे। 31 जुलाई 2001 को शासकीय समापक अधिकारी ने सीमेंट फैक्ट्री को हैंडओवर कर लिया।उस समय डाला, चुर्क, चुनार व गुर्मा में लगभग पांच हजार से अधिक कर्मचारी काम करते थे। इनमें 28 सौ कर्मचारी डाला सीमेंट निगम में कार्यरत्त थे। कारखाना को बंद कर दिया गया, जिसके बाद कार्यरत सभी सीमेंट कर्मियों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं।अचानक सीमेंट निगम की बंदी से कर्मियों की स्थिति दिनोंदिन दयनीय हो गई। कर्मियों को आर्थिक तंगी के कारण और बहुत से लोगों की दवा के अभाव में मौत हो गई। उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत 812 सीमेंट कर्मी वेतन, पेंशन एवं शेष बचे कार्यावधि के लाभ से लाभान्वित हुए।
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