बलिया के वीर ने पत्थर के सीने में जड़ा प्रेम
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : जिला मुख्यालय से मात्र छह किमी की दूरी पर मारकुंडी घाटी में ए
By JagranEdited By: Updated: Thu, 04 Jan 2018 09:03 PM (IST)
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : जिला मुख्यालय से मात्र छह किमी की दूरी पर मारकुंडी घाटी में एक पत्थर का टीला जो दो खंडों में विभक्त है, यह अटूट प्रेम की निशानी का आज भी गवाही प्रस्तुत करता है। मान्यता यह है कि दो खंडों वाला टीला वीर लोरिक की वीरता का प्रतीक भी है जिसके तलवार की धार ने उसे दो टुकड़ों में विभक्त कर दिया। वैसे इतिहास के पन्नों में दर्ज वीर लोरिक बलिया जिला के फेफना के पास गौरा के निवासी हैं। वीर लोरिक के विविध पक्षों का जिक्र लोक साहित्यकार डा. अर्जुन दास केसरी ने अपनी कृति लोरिकायन में भी किया है। संस्कृत की मशहूर कृति मृच्छ्कटिकम का प्रेरणास्त्रोत लोरिकी (लोरिकायन) ही माना जाता है। इसके साथ ही पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी डिस्कवरी आफ इंडिया में लोरिकी का उल्लेख किया है। पश्चिमी विद्वानों में बेवर, बरनाफ, जार्ज ग्रियर्सन आदि ने भी लोरिकी पर काफी कुछ लिखा है। दसवीं शताब्दी का इतिहास गौरव गाथा से भरा पड़ा है। ऐसी दौर में बलिया जिले के गौरा गांव निवासी वीर लोरिक व मंजरी, चंदा के बीच प्रेम व उससे उभरे संघर्ष की दास्तां प्रस्तुत करता है। इसकी कथा एसएम पांडेय ने वीर लोरिक, पूर्वी उत्तर प्रदेश की अहीर जाति की दंतकथा का एक दिव्य चरित्र है, इसमें विवाहित राजपूत राजकुमारी चंदा व एक अहीर लोरिक के प्रेम संबंधों के कारण पारिवारिक विरोध, सामाजिक तिरस्कार व लोरिक द्वारा उनका सामना करते हुये बच निकालने की घटनाओं के चारों तरफ घूमती है।
¨हदी साहित्य में भी प्रसिद्धि हिन्दी के लोक साहित्य में भी लोरिक व चंदा की कथा का महत्वपूर्ण स्थान है। 'चंदायन' के लेखक सूफी कवि मौलाना दाऊद ने 1379 में लोरिक और चंदा के लोक महाग्रंथ को चुना था। मौलाना का मानना था कि 'चंदायन' एक दिव्य सत्य है।
लोरिक के समकालीन सोनभद्र का इतिहास वीर लोरिक के समय में सोनभद्र जनपद के अगोरी किले के राजवंशों की दूर-दूर तक ख्याति थी। उस समय खरवार राजा काफी र्चिचत थे। इसी में एक का नाम था राजा मोला भगत। बताया जाता है कि वह अत्याचारी स्वभाव का था। दरअसल, मंजरी जिसके घर का नाम चन्दा था, इससे वह प्रेम करता था। पिता मेहर को इसकी जानकारी हुई तो लोरिक से संपर्क किया और विवाह करने का प्रस्ताव दिया।
बलिया में वीर लोरिक की आवाज बलिया जिला में लोरिक के नाम पर कई आवाज उठती रही हैं। यहां लोरिक के नाम से संगठन भी है, जो उसी के नाम पर संस्थानों सहित अन्य की स्थापना की मांग करता रहता है। क्या है रुधिरा नाले का जुड़ाव मान्यता है कि अगोरी से निकलने वाला रुधिरा नाला अपने मूल नाम से बडालकर तब अस्तित्व में आया जब राजा और लोरिक के बीच भीषण युद्ध हुआ। उस दौरान निकले रुधिर से नाले का रंग लाल हो गया था। दो खंडों वाले शिला की मान्यता इतिहास में वीरोचित अनेक पात्रों का वर्णन मिलता है। इसमें वीर लोरिक के किये कार्यों की किवंदतियां यहां आम हैं। ऐसे क्रम में जनपद के मारकुंडी में स्थित दो भागों में विभाजित शिलाखंड को देखने से होता है। बताया जाता है प्रेमिका के अमिट प्रेम बनाने के लिए लोरिक से अखंड शिला को दो भागों में विभाजित करने का वचन लिया। ऐसी पर वीर लोरिक ने अपने बाहुबल से शिला को एक ही प्रहार में काट डाला।
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