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UP Lok Sabha Result: नेताओं की भितरघात ने मेनका गांधी को पहुंचाया नुकसान, लगातार दो बार जीत; फिर आखिर क्यों यहां हार गई भाजपा?

Sultanpur Election Result लोकसभा चुनाव में सपा ने भाजपा को 43 हजार 174 मतों से पटखनी देकर जीत दर्ज की। इस सीट पर भाजपा कुल पांच बार विजय दर्ज कर चुकी है। तीन बार रामलहर तो दो बार मोदी लहर में। 2014 के चुनाव में यहां से वरुण गांधी ने जीत दर्ज की थी। 2019 में उनकी मां मेनका गांधी ने विजय हासिल कर भाजपा का कब्जा बरकरार रखा था।

By Ajay Kumar Singh Edited By: Riya Pandey Updated: Wed, 05 Jun 2024 08:03 PM (IST)
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लगातार दो बार जीत के बाद सुलतानपुर में आखिर क्यों हार गई भाजपा?
अजय सिंह, सुलतानपुर। लगातार दो बार की जीत के बाद सुलतानपुर लोकसभा सीट से भाजपा अबकी बार क्यों हार गई? वह भी तब जबकि अयोध्या मंडल में यह सीट पार्टी सबसे मजबूत मान रही थी? यह सवाल हर किसी के मन में कौंध रहा है। इसका सीधा जवाब भाजपा सपा के दांव में फंस गई। पीडीए फार्मूला कारगर रहा।

भाजपा चार सौ पार गई तो आरक्षण खत्म हो जाएगा। संविधान बदल दिया जाएगा। सपा व इंडी गठबंधन में शामिल नेताओं की ये बातें भी मतदाताओं के मन में बैठ गईं। जातीय मतों में सेंधमारी भी कामयाब रही।

पांच बार जीत चुकी है भाजपा

इस सीट पर भाजपा कुल पांच बार विजय दर्ज कर चुकी है। तीन बार रामलहर तो दो बार मोदी लहर में। 2014 के चुनाव में यहां से वरुण गांधी ने जीत दर्ज की थी। 2019 में उनकी मां मेनका गांधी ने विजय हासिल कर भाजपा का कब्जा बरकरार रखा था। वहीं, वरुण मां की सीट पीलीभीत से लड़कर सांसद बने थे।

अबकी बार पार्टी हाईकमान ने वरुण को टिकट न देने का मन बना लिया। उनकी जगह पर मेनका गांधी को पुरानी सीट पर वापस भेजने का दबाव भी ऊपर से बना, लेकिन वह यहीं से चुनाव लड़ने की बात पर अड़ी रहीं। आखिरकार पार्टी ने उन्हें टिकट तो दे दिया, लेकिन यहां से जो टिकट के दावेदार थे, उनका खास सहयोग पाने में विफल रहीं।

आम जनता में उनके कार्यों की तारीफ लोग करते हैं, लेकिन पार्टी कार्यकर्ता डांट-फटकार से असहज महसूस करते रहे। इसी के चलते पांच साल तक सांसद रहने के बावजूद क्षेत्र में उनका ऐसा नेटवर्क नहीं बन सका, जिसके जरिए चुनाव के दौरान सतत निगरानी की जा सके। साथ ही जातीय मतों का बिखराव रोका जा सके।

इतना ही नहीं, खुद मेनका, पार्टी के कर्ताधर्ता जीत मानकर चल रहे थे, यह अति आत्मविश्वास भी घातक साबित हुआ। टिकट मिलने के बाद कार्यकर्ताओं में उस तरह उत्साह नहीं नजर आ रहा था, जैसे पहले दिख रहा था। चुनाव अभियान के दौरान प्रत्याशी और पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय का अभाव भी दिखा।

पीडीए की चाल ने बदला चुनाव का रुख, जातीय मतों का ध्रुवीकरण

सपा ने पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) का दांव चला जो काम कर गया। यही वजह रही कि मुस्लिम मतों का जहां इस बार बिखराव नहीं हुआ, वहीं दलित और पिछड़ी जाति के वोटों का जुड़ाव भी सपा से बढ़ा। पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों का वोट 2022 के विधानसभा चुनाव तक ज्यादातर भाजपा के पक्ष में गया, लेकिन इस बार बसपा ने कुर्मी और सपा ने निषाद बिरादरी का प्रत्याशी देकर भाजपा के इन वोटों में सेंधमारी कर दी।

वहीं, भाजपा चार सौ पार पाई तो आरक्षण खत्म कर देगी और संविधान बदल देगी जैसी बातें, महंगाई, बेरोजगारी भी बड़ा फैक्टर बन गई। ऐन चुनाव के वक्त भाजपा के कुछ नेताओं की भितरघात और खुद को चुनाव अभियान से दूर करने से भी कुछ न कुछ असर पड़ा। मतदान के तीन दिन पहले पिछली बार दूसरे नंबर पर रहे पूर्व विधायक चन्द्रभद्र सिंह सोनू के सपा में जाने से कुछ बूथों पर उसको सीधा फायदा हुआ।

वहीं, भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में न तो पीएम और न ही डिप्टी सीएम की सभाएं लगीं। एकमात्र मुख्यमंत्री को छोड़ दिया जाए तो कोई बड़ा नेता यहां नहीं आया। सहयोगी दल निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद, सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर की सभाएं भी कुछ असर नहीं डाल सकीं।

कुर्मी मतों के बिखराव की आशंका पहले से ही थी, लेकिन न तो अनुप्रिया पटेल का कार्यक्रम यहां लगा और न ही जिले के प्रभारी मंत्री आशीष पटेल की सभाएं या दौरा हुआ। मंत्री सिर्फ नामांकन तक सीमित रहे। विधानसभावार वोटरों पर विधायकों का भी प्रभाव नजर नहीं आया। ऐसे में एकमात्र छोड़, अन्य चार क्षेत्रों से भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा।

जातिगत वोटों में सेंधमारी और पीडीए बना हार का कारण : जिलाध्यक्ष

भाजपा जिलाध्यक्ष डा. आरए वर्मा का कहना है कि सपा अपनी चाल में सफल हो गई। उसने हमारे निषाद मतों में सेंधमारी के लिए जाति का कार्ड खेला और इसी बिरादरी का प्रत्याशी दिया। बसपा द्वारा कुर्मी प्रत्याशी दिए जाने के कारण इस बिरादरी का वोट तीन भागों में बंट गया।

अन्य अति पिछड़ी जातियों व दलित वोटों को साधने के लिए गठबंधन ने पांच के बजाय दस किलो राशन देने, रोजगार, महंगाई, भाजपा को चार सौ सीटें मिलने पर आरक्षण खत्म करने और संविधान बदल देने जैसी बातें प्रचारित कीं। इस कारण ये जातियां भी सपा की ओर मुड़ गईं। इसका लाभ उसे मिला।

भाजपा में भितरघात की बात सामने नहीं आई है, लेकिन कुछ लोग किन्हीं वजहों से चुनाव अभियान में शामिल नहीं हो पाए। पार्टी इस बारे में विवरण मांगेगी तो उपलब्ध कराया जाएगा।

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