राहुल गांधी सुलतानपुर एमपी-एमएलए न्यायालय में पेशी पर आए थे। लौटते वक्त उन्होंने मोची की दुकान पर रुककर काम के बारे में जानकारी ली थी। साथ ही उनकी व्यथा सुनकर खुद भी चप्पल की सिलाई की थी। राहुल ने जिस चप्पल की सिलाई की थी उसकी मुंहमांगी रकम मिल रही है। फोन आता है लोग बोलते हैं चप्पल दे दो जो बोलो रकम दें रुपए से झोला भर देंगे।
संवाद सूत्र, कूरेभार (सुलतानपुर)। सुलतानपुर दीवानी न्यायालय से लखनऊ वापस जाते समय राहुल गांधी रामचेत मोची की दुकान पर क्या पहुंचे, रौनक बढ़ गई। राहुल ने जिस चप्पल की सिलाई की थी, उसकी मुंहमांगी रकम मिल रही है। रामचेत बताते हैं कि फोन आता है, लोग बोलते हैं चप्पल दे दो जो बोलो रकम दें, रुपए से झोला भर देंगे। उन्होंने बताया कि यह मेरे नेता की निशानी है और वह इस चप्पल को नहीं बेचेंगे। इसे शीशे के अंदर कर दुकान में रखेंगे। वहीं, दुकान पर अब सन ऑफ सुलतानपुर का बैनर भी लग गया है।
राहुल गांधी एमपी-एमएलए न्यायालय में पेशी पर आए थे। लौटते वक्त उन्होंने मोची की दुकान पर रुककर काम के बारे में जानकारी ली थी। साथ ही उनकी व्यथा सुनकर खुद भी चप्पल की सिलाई की थी। रोजगार को गति मिलने के लिए रामचेत ने सिलाई मशीन की जरूरत बताई थी, जो राहुल गांधी की टीम ने उपलब्ध करा दिया।
काश राहुल गांधी गांव भी आए होते...
दुकान पर अचानक राहुल गांधी के आने पर रामचेत मोची की किस्मत भले ही करवट लेने लगी, लेकिन उनके गांव की दशा कैसे सुधरेगी, यह बड़ा सवाल है। गांव के लोग अब यह कह रहे हैं कि काश, राहुल गांधी गांव भी आए होते तो शायद इसकी दशा देखते और यहां भी विकास की रोशनी पहुंचती।
विकास के नाम पर शून्य है रामचेत का गांव
जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर कूरेभार ब्लाक के ढसेरुआ ग्राम पंचायत में मजरे मठिया गांव आता है। विधायकनगर चौराहे के पास दुकान करने वाले रामचेत मोची इसी गांव के मूल निवासी हैं। यह गांव विकास के नाम पर शून्य है। दशकों पहले बना खड़ंजा मार्ग बैठ चुका है। नाली न होने से पानी का निकास नहीं है। भारी बरसात में रामचेत व आसपास के लोगों के घर जलमग्न हो जाते हैं। बिजली चौबीस घंटे में दो से तीन-घंटे ही मिल पाती है। रामचेत के पुत्र राघवराम ने ग्राम सभा से सोलर लाइट दिए जाने की मांग की है।
झोपड़ी में सोते हैं रामचेत
मुख्य मार्ग से करीब डेढ़ किमी दूर गांव में रामचेत झोपड़ी में रहते हैं। इसी में राहुल द्वारा दी गई सिलाई मशीन रखी गई है और बगल में चारपाई पड़ी है। शौचालय तो मिला है, लेकिन उसकी स्थिति बद से बदतर है। उज्ज्वला योजना और आवास का लाभ उन्हें अब तक मिला ही नहीं। किसान सम्मान निधि डेढ़ साल से मिल ही नहीं सकी। ये बातें रामचेत ने बताईं।
मठिया गांव में करीब 40 घर हैं। इनमें करीब सात सौ लोग निवास करते हैं। ये लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। यहां दलित बिरादरी के लोगों की संख्या अधिक है। इसके बाद भी विकास यहां से कोसों दूर नजर आता है।
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