By JagranEdited By: Updated: Sun, 07 Aug 2022 11:07 PM (IST)
ऊं नम: शिवाय--- आस्था का केंद्र महाकालेश्वर मंदिर में उमड़ते हैं श्रद्धालु
महाकालेश्वर मंदिर भटपुरा
भटपुरा गांव में स्थित महाकालेश्वर शिवमंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मंदिर में यूं तो प्रतिदिन श्रद्धालु आते हैं लेकिन सावन में यहां जलाभिषेक को भारी भीड़ उमड़ती है। जिले ही नहीं आसपास जनपदों के लोग बाबा को जलाभिषेक करने आते हैं। बाबा बैजनाथ धाम जाने वाले कांवड़िये भी पहले मंदिर में जलाभिषेक करते फिर आगे बढ़ते हैं।
इतिहास
ग्रामीण बताते हैं कि करीब चार दशक पूर्व यहां चबूतरे पर शिवलिंग स्थापित था। जहां ग्रामीण प्रतिदिन जलाभिषेक करते थे। 1990 में गांव के पाठक परिवार ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। बकायदा मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के साथ शिव दरबार के साथ रामदरबार की भी स्थापना कराई। जो आज दिन श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
विशेषता
अयोध्या-प्रयागराज मार्ग से बाबा को जलाभिषेक करने जाने वाले कांवड़िये महाकालेश्वर जलाभिषेक करना नहीं भूलते हैं। यहीं पर विश्राम के बाद ही आगे बढ़ते हैं। उनके रहने व खाने की व्यवस्था मंदिर प्रशासन करता है। सावन भर यहां प्रतिदिन मेले जैसा नजारा दिखता है। नवरात्र व शिवरात्रि पर विशेष आयोजन होते हैं।
तैयारियां
सावन शुरू होने से पूर्व ही मंदिर का रंग-रोगन करा उसकी साफ-सफाई कराई गई। रंग-बिरंगी झालरों से मंदिर को सजाया गया है। प्रतिदिन शाम के समय महिला व पुरुष अलग-अलग टोली बनाकर ढोल-मजीरे की ताल पर बाबा का भजन गाते हैं। साल में एक बार ग्रामीणों के सहयोग से भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसे पहुंचे
जिला मुख्यालय से रोडवेज बस या प्राइवेट संसाधान से बाबूगंज बाजार पहुंचा जा सकता है। वहां से मंदिर की दूरी दो किमी है। चाहे पैदल या फिर अन्य संसाधन से भटपुरा स्थित मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
-सावन में सुबह चार बजे बाबा का शृंगार व आरती कर मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं। इस मंदिर की मान्यता है कि सावन के सभी सोमवार को व्रत रख भोलेनाथ की मंदिर में जलाभिषेक करने पर सभी मनौती पूर्ण होती है।
-सुरेंद्र पाठक, पुजारी
-मंदिर परिसर में बैठने से मन को शांति मिलती है। यहां जलाभिषेक के लिए आने वाले कांवड़ियों की सुख-सुविधा का विशेष ख्याल रखा जाता है कि उनके आतिथ्य में कोई कमी न रह जाए। यहां होने वाले भंडारे में सभी का सहयोग रहता है।
-कृष्णचंद पाठक, श्रद्धालु
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