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अवध की इस VIP सीट पर दिलचस्प हुआ मुकाबला, विपक्ष का जातीय गणित बिगाड़ सकता है BJP का खेल; ये दिग्गज नेता मैदान में

Sultanpur Lok Sabha Election सुलतानपुर लोकसभा सीट अवध क्षेत्र की वीआइपी सीटों में शुमार है। यह पिछले दो चुनावों से गांधी परिवार (वरुण-मेनका) के पास है। अयोध्या-अमेठी के बीच की यह सीट सत्तादल और विपक्ष के लिए प्रतिष्ठापरक मानी जाती है। यही कारण है कि इस पर मिलने वाली जीत-हार का संदेश दूर तक जाता है। चुनावी परिदृश्य पर अजय सिंह की रिपोर्ट...

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Updated: Sun, 12 May 2024 01:11 PM (IST)
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वरुण गांधी चुनावी मैदान से बाहर, दांव पर लगी मेनका की प्रतिष्ठा; विपक्ष का जातीय गणित बिगाड़ सकता है खेल
Lok Sabha Election: सुलतानपुर के सियासी रण पर नजर डालें तो एक बार फिर इस सीट से वर्तमान सांसद मेनका गांधी को भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा है। सरकार की योजनाओं, खुद के कामकाज और पिछले चुनावों के नतीजों में इनकी स्थिति मजबूत दिखती है, लेकिन जातीय वोटों का गणित देखने से पता चलता है कि इस बार राह उतनी आसान नहीं होगी, जितना पार्टी के लोग समझ रहे।

कारण, सपा-बसपा ने भाजपा के कुर्मी व निषाद मतों में सेंधमारी की गहरी चाल चल दी है। कांग्रेस इस सीट पर उपचुनाव को लेकर नौ बार जीत दर्ज कर चुकी है तो भाजपा पांच बार। कांग्रेस को तब कामयाबी मिलती रही, जब उसका वर्चस्व देश और प्रदेश की राजनीति में था।

लहर पर टिकी रही भाजपा की जीत

वहीं, भाजपा की विजय लहरों पर टिकी रही। रामलहर (1991 से 98 तक) में हुए तीन चुनाव व मोदी लहर 2014 व 2019 में जिसको भी टिकट मिला जीत की गारंटी मिली। पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान सांसद मेनका गांधी के सामने सपा ने पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद तो बसपा ने उदराज वर्मा को चुनावी समर में उतारा है।

2014 में मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी ने यहां का प्रतिनिधित्व देश की सबसे बड़ी पंचायत में किया था। मेनका गांधी का यह मजबूत पक्ष है कि उनके या पार्टी के खिलाफ कोई मूवमेंट या लहर नहीं है।

राम मंदिर निर्माण भी मददगार होगा। वह सरकार की योजनाओं, खुद के काम और जनता के सुख-दुख में भागीदार होने की बात कहकर परंपरागत मतों को सहेजने की कोशिश में लगी हैं। सार्वजनिक रूप से यह बात कहती हैं कि जाति-वर्ग या धर्म पूछे बगैर सबकी मदद करती हूं।

विपक्ष इन मुद्दों पर आक्रामक

वहीं, विपक्ष सरकार के महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर आक्रामक है। साथ ही वोटरों को यह समझाने की कोशिश कर रहा है कि सरकार की जिन योजनाओं का लाभ मिल रहा है, वह तो कोई भी होता देता। ये योजनाएं तो उनके कार्यकाल की हैं।

पिछले चुनाव में मेनका गांधी की जीत का अंतर लगभग 14 हजार वोटों का रहा। उन्हें चार लाख 58 हजार, 196 मत मिले थे, जबकि निकटतम प्रतिद्वंद्वी बसपा के चंद्रभद्र सिंह सोनू को चार लाख 44 हजार 670। यदि इस चुनाव में पुराना ही आंकड़ा मेनका गांधी सहेज पाती हैं तो जीत की राह आसान होगी। इसी के साथ ही सपा-बसपा का अलग-अलग चुनाव लड़ना इनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

यहां छठे चरण में 25 मई को मतदान होगा। पांच चरणों के चुनाव के बाद विपक्षी दलों के नेताओं का जोर अवध क्षेत्र में रहेगा। यदि वे लड़ाई को सीधी कर पाते हैं या पिछड़ी, अति पिछड़ी व भाजपा से जुड़े दलित वोटों में सेंधमारी करने में कामयाब रहते हैं तो नतीजे कुछ भी हो सकते हैं। हालांकि, इससे पहले सपा या बसपा को यह साबित करना होगा कि मेनका गांधी को चुनाव मैदान में टक्कर कौन दे रहा है।

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