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नमो देव्यै महादेव्यै: कैंसर से लड़ने के साथ देश का ‘भविष्य’ संवारने में लगीं सीमा

सीमा मिश्रा की कहानी प्रेरणा से भरी है। चौथे स्टेज के कैंसर से जूझते हुए भी वह 120 बच्चों को पढ़ाती हैं और लोकगीतों के जरिए उन्हें शिक्षित करती हैं। पति की बीमारी और अपनी खुद की स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद वह हार नहीं मानतीं। उन्हें बीआरसी से लेकर डाइट के प्रशिक्षक का दायित्व भी दिया गया है। सीमा का नवाचार और समर्पण बच्चों और अभिभावकों को प्रेरित करता है।

By Jagran News Edited By: Shivam Yadav Updated: Thu, 03 Oct 2024 07:12 PM (IST)
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प्राथमिक विद्यालय शंकरखेड़ा में लोकगीत के जरिए बच्चों को पढ़ातीं सीमा मिश्रा। जागरण

ब्रजेश शुक्ल, उन्नाव। बिछिया ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय शंकरखेड़ा में तैनात शिक्षिका सीमा मिश्रा की शिक्षण कार्य के प्रति निष्ठा का विभाग में हर कोई कायल है। चौथे स्टेज का कैंसर होने के बाद भी उन्होंने देश के भविष्य नौनिहालों की मेधा को तराशना नहीं छोड़ा। 

जानलेवा बीमारी का दर्द सहकर भी वह प्रतिदिन समय से विद्यालय पहुंच कर 120 बच्चों को पूरी तल्लीनता से पढ़ाती हैं। लोकगीतों के जरिए  बच्चों के अध्यापन के लिए किया गया नवाचार काफी प्रभावी हो रहा है। यही नहीं बच्चों के अभिभावकों को साफ सफाई के प्रति जागरूक किए जाने का कार्य भी विभाग में काफी सराहा जा रहा है। 

2015 में हुआ था चयन

कृष्णानगर निवासी सीमा मिश्रा का शिक्षक पद पर वर्ष 2015 में चयन हुआ था। पिछले छह साल से वह स्तन कैंसर से जूझ रही है। पति विनीत मिश्रा बताते हैं कि डॉक्टरों की सलाह पर ऑपरेशन भी कराया पर कुछ दिन बाद कैंसर का प्रभाव फिर दिखने लगा। 

तब से वह लखनऊ के सहारा अस्पताल में हर 15 दिन में कीमोथेरेपी कराने जा रही हैं। बीमारी की गंभीरता और दर्द सहकर भी वह अपने कार्य से कभी विमुख नहीं हुईं। शिक्षण कार्य के प्रति उनकी की निष्ठा को देखकर ही उन्हें बीआरसी से लेकर डायट के प्रशिक्षक का दायित्व भी विभाग द्वारा दिया जाता है। 

मौजूदा समय में सीमा डाइट में डीएलएड प्रशिक्षुओं की परीक्षा, उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन आदि की जिम्मेदारी निभा रही है। पति विनीत मिश्र भी पुरवा ब्लाक में शिक्षक हैं और हृदय रोगी हैं। खुद की स्वास्थ्य परिस्थितियों के साथ पति की बीमारी भी कभी उनका हौसला नहीं तोड़ पाई। कीमोथेरेपी के लिए जाने के लिए भी वह 15 दिन में एक बार ही अवकाश लेती हैं।

लोकगीतों के जरिए बच्चों की पढ़ाई

बच्चों का मन पढ़ने में लगे उसके लिए सीमा ने लोकगीतों का सहारा लिया। उनके नवाचार के कारण ही स्कूल में बच्चों की हाजिरी शत-प्रतिशत होती है। वह बताती हैं कि बच्चों को चाहे साफ सफाई हो, शिक्षण में मन लगाने की बात हो, गिनती हो, भूगोल अथवा अन्य ज्ञान देना, इसके लिए वह लोकगीत का सहारा लेती हैं। पुराने लोकगीत की धुन पर अपने शब्दों को पिरोते हुए बच्चों को उनके कार्य के प्रति प्रेरित करती हैं।

अभिभावकों को भी करती जागरूक

शिक्षिका बताती है कि ग्रामीण क्षेत्र के कमजोर आर्थिक और कम पढ़े लिखे अभिभावकों को भी वह लोकगीतों के जरिए घर में साफ सफाई, नशा न करने, बच्चों को समय से विद्यालय भेजने और अपना काम मन लगाकर करने की सीख देती हैं।

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