कई वर्षों बाद बन रहा 13 दिनों का 'प्रलयकारी' आषाढ़ कृष्ण पक्ष, मांगलिक कार्य रहेंगे वर्जित; हो सकती हैं बड़ी घटनाएं
सनातन धर्म के पंचांगों में प्रत्येक माह के दोनों पक्ष 15 या कभी-कभी 14 दिनों के होते हैं किंतु इस बार आषाढ़ माह में ऐसा नहीं होने जा रहा है। माह का रविवार से आरंभ होकर पांच जुलाई तक चलने वाला कृष्ण पक्ष इस बार 13 दिनों का ही होगा। ऐसा वर्षों बाद हो रहा है। ज्योतिष शास्त्रों में 13 दिन के पक्ष को दुर्योग काल कहा गया है।
जागरण संवाददता, वाराणसी। सनातन धर्म के पंचांगों में प्रत्येक माह के दोनों पक्ष 15 या कभी-कभी 14 दिनों के होते हैं किंतु इस बार आषाढ़ माह में ऐसा नहीं होने जा रहा है। माह का रविवार से आरंभ होकर पांच जुलाई तक चलने वाला कृष्ण पक्ष इस बार 13 दिनों का ही होगा। ऐसा वर्षों बाद हो रहा है। ज्योतिष शास्त्रों में 13 दिन के पक्ष को दुर्योग काल कहा गया है। इस वर्ष आषाढ़ कृष्ण पक्ष में द्वितीया और चतुर्थी तिथि का क्षय होने से यह पक्ष 13 दिनों का ही रहेगा।
ग्रंथों में ऐसे पक्ष को विश्वघस्र पक्ष कहा जाता है। इस काल में देश व दुनिया में अनिष्टकारी घटनाएं हो सकती हैं। इतिहास साक्षी है कि जब-जब किसी वर्ष में 13 दिनों का पखवारा हुआ है, अनेक अमंगलकारी घटनाओं का सामना विश्व जनमानस को करना पड़ा है।वेदों में भी कहा गया है कि ‘अनेक युग सहस्त्रयां दैवयोत्प्रजायते त्रयोदश दिने पक्ष स्तदा संहरते जगत।’ अर्थात् दैवयोग से कई एक युगों में तेरह दिन का पक्ष आता है। इस संयोग में प्रजा को नुकसान, रोग, मंहगाई व प्राकृतिक प्रकोप, झगड़ों का सामना करना पड़ सकता है।
राजसत्ता पर आ सकती है विपत्ति
बीएचयू के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय बताते हैं कि 13 दिनों के पक्ष के चलते राजसत्ता पर विपत्ति आ सकती है या विपत्ति का आरंभ हो सकता है। 13 दिनों के पक्ष के चलते प्रजा को नुकसान, रोग संक्रमण, महामारी, महंगाई, प्राकृतिक आपदा, लड़ाई झगड़ा, विवाद बढ़ने की आशंका होती है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, राजसत्ता का परिवर्तन, विप्लव, वर्ग भेद आदि उपद्रव होने की संभावना पूरे वर्ष बनी रहती है।
कहा जाता है कि जब भी 13 दिन का पक्ष आता है तब भूकंप समेत कई अप्रिय घटनाएं होती हैं। ज्योतिष के अनुसार इन्हीं 13 दिनों में भविष्य की विनाशकारी घटनाओं की नींव पड़ती है। बृहत्संहिता में कहा गया है कि ‘शुक्ले पक्षे संप्रवृद्धे प्रवृद्धि ब्रह्मक्षत्रं याति वृद्धि प्रजाश्च, हीने हानिस्तुल्यता तुल्यतानां कृष्णे सर्वं तत्फलं व्यत्ययेन’ (4/31)। इसी तरह पीयूषधारा में वर्णन है ‘त्रयोदशदिने पक्षे तदा संहरते जगत् अपि वर्षसहस्रेण कालयोगः प्रकीर्तितः’ (1/48)। ज्योतिर्निबंध में इस दोष को रौरव कालयोग कहा गया है- ‘पक्षस्य मध्ये द्वितिथि पतेतां तदा भवेद्रौरवकालयोगः, पक्षे विनष्टे सकलं विनष्टमित्याहुराचार्यवराः समस्ताः।’ (84/7)।
महाभारत युद्ध के समय भी था 13 दिनों का पक्ष
प्रो. पांडेय बताते हैं कि महाभारत के युद्ध के समय भी 13 दिनों का पक्ष बना था और उसी पक्ष में महाभारत के 18 दिवसीय महायुद्ध की शुरुआत हुई थी। ग्रंथ के भीष्मपर्व के जंबूखंड निर्माण पर्व में तीसरे अध्याय का 32वां श्लोक बताता है कि ‘चतुर्दशीं पञ्चदशीं भूतपूर्वा षोडशीम् इमां तु नाभिजानेऽहममावस्यां त्रयोदशीम्’। पूर्व में भी बने ऐसे दुर्योग महाभारत के बाद बीती शताब्दी से आरंभ करें तो वर्ष 1934 में भी ऐसा संयोग आया था, जिसमें विनाशकारी भूकंप आया था।
1937 में जब इस तरह का संयोग बना तब भी भूकंप आया था। इसके बाद 1962 में भी यह दुर्योग बना था तब भारत-चीन का युद्ध हुआ था। साल 1979 व 2005 में भी इसी दुर्योग की वजह से अप्रिय घटनाएं हुई थीं। 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था तभी यह दुर्योग था। वर्ष 2010 व 2021 में भी भूकंप, युद्ध के हालात व कोरोना महामारी की स्थितियां बनी थीं। अब अब 2024 में आषाढ़ में यह दुर्योग बना है तो अप्रिय घटना का संकेत देता है।
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