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केवट ने पांव पखार, प्रभु को किया गंगा पार

वाराणसी : गंगा तट पर भगवान राम केवट से गंगा पार पहुंचाने का आग्रह करते हैं लेकिन केवट बिना पांव पखार

By Edited By: Updated: Mon, 26 Sep 2016 02:17 AM (IST)

वाराणसी : गंगा तट पर भगवान राम केवट से गंगा पार पहुंचाने का आग्रह करते हैं लेकिन केवट बिना पांव पखारे उन्हें नाव पर बैठाने से मना कर देता है। इस पर लक्ष्मण क्रोधित होते हैं। परंतु बाद में प्रभु राम लक्ष्मण व सीता का पांव पखारने के बाद ही उन्हें नाव से गंगा पार पहुंचाता है।

रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला के 11वें दिन (दसवें दिन की लीला के अंतर्गत ) रविवार को गंगा अवतरण, चित्रकूट निवास, सुमंत का अयोध्यागमन लीला का मंचन किया गया। राजा दशरथ के महाप्रयाण प्रसंग की भी प्रस्तुति की गई। प्रसंगानुसार वन में वटवृछ के दूध से जटा बनाते श्रीराम को देख मंत्री सुमंत रो पडे। श्रीराम ने उन्हें सभी धर्मों का ज्ञाता बताते हुए संकट की इस घड़ी में महाराज दशरथ को ढांढस बंधाने का अनुरोध किया। लक्ष्मण द्वारा महाराज दशरथ के प्रतिक्रोध प्रकट करने पर श्रीराम उन्हें समझाते हैं। साथ ही सुमंत को भी लक्ष्मण की बातें राजा दशरथ से न कहने के लिए वचनबद्ध करते हैं। सीता अयोध्या वापस जाने की बात को अपने तर्कों से काट मंत्री को निरूत्तर कर देती हैं।

गंगा तट पहुंचने पर केवट श्रीराम को पैर पखारे बिना गंगा पार कराने से मना कर देता है। इस पर लक्ष्मण क्रोधित हो उठते हैं। केवट विनम्रता से कहता है लक्ष्मण उन्हें तीर भले ही मार दें लेकिन बिना पाव पखारे तीनों को अपनी नौका पर नही बैठाएगा। केवट की प्रेम वाणी सुन श्रीराम लक्ष्मण व सीता की ओर देख हंस पड़ते हैं। केवट भी आज्ञा पाकर कठौते में गंगाजल ले आया। केवट द्वारा प्रभुराम सीता व लक्ष्मण का पाव पखारते देख देवगण उसके भाग्य को सराहते हैं। देवी गंगा भी श्रीराम का चरण स्पर्श कर प्रसन्न हैं। एक ही पेशे से जुडे़ लोग एक दूसरे से पारिश्रमिक नही लेते हैं। नदी पार उतारने पर केवट राम से उतराई लेने से इंकार कर देता है। कहता है कि हे प्रभु एक ही पेशे से जुडे़ लोग एक दूसरे से पारिश्रमिक नहीं लेते हैं। मैने आपको गंगा पार कराया, आप अपनी कृपा से मुझे इस संसाररूपी भवसागर से पार उतार दीजिएगा। केवट की ऐसी भक्ति देख लीलाप्रेमी भावविभोर हो गए।

अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता का वरदान

प्रयाग राज मे स्नान कर सभी भारद्वाज ऋषि के आश्रम पहुंचे। तपस्वी वेश में आए हनुमान को श्रीराम गले से लगाते हैं। सीता उन्हे अष्ट सिद्धियों का दाता होने का वरदान देती हैं। ग्रामवासी श्रीराम सहित सीता व लक्ष्मण का दर्शन कर अभिभूत होते हैं। स्त्रियों के पूछने पर सीता पति श्रीराम व देवर के रूप में लक्ष्मण का परिचय बताती हैं। राम के आगमन का समाचार सुन महर्षि वाल्मीकि उन्हें अपने आश्रम लाते हैं। महर्षि की सलाह पर श्रीराम सभी ऋतुओं में सुख देने वाले चित्रकूट में रहने का निर्णय लेते हैं। भगवान विश्वकर्मा देवगणों को कोल भिलों के रूप मे भेजकर सुंदर कुटिया का निर्माण कराते हैं। श्रीराम देवगणों को प्रणाम करते हैं तब देवगण उनसे आग्रह करते हैं कि वे यथाशीघ्र उन्हें राक्षस राज रावण के अत्याचार से मुक्ति दिलाएं। पूरा चित्रकूट राममय हो जाता है। यहीं पर आरती के साथ लीला को विश्राम दिया जाता है।

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राजा दशरथ के निधन प्रसंग का नहीं होता मंचन

रामनगर की रामलीला में महाराज दशरथ के निधन का प्रसंग नही दिखाया जाता। लीला समाप्ति के बाद रामायण के इन अंशों का गायन बाबू साहब के बगीचे में स्थित प्रसिद्ध कूप पर किया जाता है।

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आज की रामलीला

रामनगर : श्रीअवध में भरतागमन, सभा, श्रीभरत का चित्रकूट प्रयाण, निषाद मिलन, गंगावतरण, भारद्वाज आश्रम निवास।

चित्रकूट : राज्याभिषेक का आयोजन

गायघाट : कोपभवन, वनगमन।

लाटभैरव : कोप भवन।

मौनीबाबा : राज्याभिषेक का आयोजन।

टूड़ीनगर, जाल्हूपुर : भरत का यमुनावतरण, ग्रामवासी मिलन, श्रीरामचंद्र दर्शन।

भोजूबीर : श्रीराम राज्याभिषेक विचार, कोपभवन, कौशल्या-लक्ष्मण- सीता संवाद, राम वनगमन।

लक्सा : सुमंत आगमन, दशरथ क्रिया, भरतजी, भारद्वाज ऋषि मिलन।

काशीपुरा : विवाह रामकलेवा तथा राम विदाई।

शिवपुर : सुमंत विदाई, केवट संवाद, भारद्वाज आश्रम में विश्राम।

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