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16-18 वर्ष वालों को भी लगेगा टिटनेस-डिप्थीरिया का बूस्टर डोज, बीमारी बढ़ने के कारण उठाया जा रहा कदम; जरूर लगवाएं तीन खुराक

सीएमओ डॉ. संदीप चौधरी ने बताया कि डिप्थीरिया किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन 12 साल तक के बच्चों में इसके होने का खतरा अधिक होता है। जिन्हें इसका टीका नहीं लगता उन्हें किसी संक्रमित के संपर्क में आने पर खतरा अधिक हो जाता है। देश के कई राज्यों में 18 से 45 साल की उम्र में डिप्थीरिया के मामले पाए गए हैं।

By Jagran News Edited By: riya.pandey Updated: Sat, 27 Jan 2024 09:45 AM (IST)
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16-18 वर्ष वालों को भी लगेगा टिटनेस व डिप्थीरिया का बूस्टर डोज

जागरण संवाददाता, वाराणसी। इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक्स ने अपनी ताजा गाइडलाइन में टिटनेस और डिप्थीरिया की बीमारी से बचाने के लिए नया प्लान तैयार किया है। टीडी वैक्सीन 16 से 18 साल की उम्र के युवाओं को देने की सिफारिश की गई है। अभी तक बूस्टर खुराक के रूप में बच्चों को टिटनेस, डिप्थीरिया और काली खांसी का टीका टीडेप 10 साल की उम्र में लगाया जाता था।

सीएमओ डॉ. संदीप चौधरी ने बताया कि डिप्थीरिया किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन 12 साल तक के बच्चों में इसके होने का खतरा अधिक होता है। जिन्हें इसका टीका नहीं लगता उन्हें किसी संक्रमित के संपर्क में आने पर खतरा अधिक हो जाता है। देश के कई राज्यों में 18 से 45 साल की उम्र में डिप्थीरिया के मामले पाए गए हैं।

एक रिसर्च में पता चला कि 56 फीसदी बच्चों में डिप्थीरिया और 64 फीसदी बच्चों में टिटनेस से सुरक्षा वाली एंटी बाडी मौजूद थी। ऐसे में यह बूस्टर डोज को लेकर बदलाव किया जा रहा है। शासन के आदेश के क्रम में आगे की कार्रवाई की जाएगी।

बच्चों में जरूर लगवाएं तीन खुराक

जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. एके मौर्य ने बताया कि बच्चों में डिप्थीरिया और टिटनेस से बचाव के लिए जन्म के बाद तीन खुराक लगती है। इनमें डीपीटी का पहला टीका जन्म के छह माह बाद, दूसरी खुराक 10 माह बाद और तीसरी खुराक 13 माह बाद लगती है। किसी भी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर टीका लगवाया जा सकता है।

डिप्थीरिया में यह होती दिक्कत

डिप्थीरिया एक संक्रामक रोग है। कोरिनेबैक्टीरिया डिप्थीरिया बैक्टीरिया के कारण होता है। यह अत्यधिक संक्रामक है। यह सांस लेने, खांसने, बोलने और यहां तक कि हंसने के दौरान फैल सकता है। यह अक्सर गले में खराश, बुखार और गले पर स्यूडोमेम्ब्रेन नामक झिल्ली के विकास से जुड़ा होता है। बैक्टीरिया एक्सटाक्सिन भी पैदा करता है जो ह्रदय, फेफड़े, गुर्दे और तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है।

ये हैं लक्षण

  • सांस लेने में कठिनाई
  • गर्दन में सूजन
  • ठंड लगना
  • बुखार
  • गले में खराश
  • खांसी

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