Acharya Hazari Prasad Dwivedi Death Anniversary : रवींद्रनाथ टैगोर के विश्वभारती को छोड़ हिंदी के उत्थान लिए बीएचयू आए हजारी प्रसाद
बीएचयू में हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में आचार्य द्विवेदी का कार्यकाल स्वर्णयुग से कम नहीं रहा। जहां इतने बडे़-बड़े साहित्य की सेना तैयार की तो वही बीएचयू के हिंदी विभाग में पहले से चली आ रही पाठ्यक्रम की परंपरा को तोड़कर कुछ नई चीजें भी शामिल कीं।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। ज्योतिषी आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (जन्म - 19 अगस्त, 1907, बलिया, निधन - 19 मई, 1979, दिल्ली) एक ऐसे साहित्यकार, जिन्होंने बीएचयू में हिंदी के प्रोफेसर रहते हुए आजादी के बाद देशवासियों को हिंदी की ताकत का अहसास कराया। निबंध में अशोक के फूल, हिंदी आलोचना साहित्य में कबीरदास को तुलसीदास के समकक्ष देखना या फिर बाण भट्ट की आत्मकथा जैसे उपन्यास साहित्य जगत में सदैव प्रकाशमान रहेंगे। आजादी के बाद देश में उन्होंने साहित्यकारों की एक पौध तैयार कर दी, जिनके पुष्प पचासों वर्ष से आज तक अपना सौरभ दुनिया भर में बिखेर रहे हैं।
केदारनाथ सिंह, नामवर सिंह, शिव प्रसाद सिंह और विश्वनाथ त्रिपाठी, काशीनाथ सिंह जैसे मूर्धन्य साहित्यकार द्विवेदी जी की छत्रछाया में हिंदी की सेवा की। यहीं नहीं बीएचयू में हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में आचार्य द्विवेदी का कार्यकाल स्वर्णयुग से कम नहीं रहा। जहां इतने बडे़-बड़े साहित्य की सेना तैयार की तो वही बीएचयू के हिंदी विभाग में पहले से चली आ रही पाठ्यक्रम की परंपरा को तोड़कर कुछ नई चीजें भी शामिल कीं। इसमें एमए के पाठ्यक्रम में निराला की कविता तुलसीदास और बीए के कोर्स में प्रेमचंद को शामिल की विधिवत कक्षाएं चलाईं।
पहले आलोचक जिन्होंने भक्ति काल को समाहित किया
बीएचयू में हिंदी विभाग के शिक्षक प्रो. रामाज्ञा राय के अनुसार आचार्य द्विवेदी ने अपने आलोचना साहित्य में अनार्य, द्रविड़, नाथ और बौद्ध को सामने लाया। वे पहले आलोचक थे, जिन्होंने भक्ति काल के भी साहित्यकारों पर लेखन किया। द्विवेदी जी अपने शुरूआती लेखन में कबीर को तो वहीं अंत में तुलसीदास जी को अपने साहित्य का आधार बनाते हैं। काशी में रहकर तुलसीदास ने अपने जीवन में जो दुख-विरह झेले हैं कुछ उसी तरह से आचार्य हजारी प्रसाद के भी साथ हुआ। बचपन असहाय में गुजरा, तो संघर्ष के दिनों में उन्हें काशी के कर्मकांडी ब्राह्मणों से काफी क्षति पहुंची। गरीब का सबसे बड़ा शत्रु उसका पेट होता है, दूसरा दुश्मन उसका सिर जो झुकना नहीं चाहता।
गोविंद मालवीय के अनुराेध पर आए बीएचयू
महामना के पुत्र गोविंद मालवीय के अनुरोध पर वह रविंद्रनाथ टैगाेर के विश्वभारती को छोड़कर वर्ष 1950 में कलकत्ता से बीएचयू आए और हिंदी के विभागाध्यक्ष बनाए गए। चूंकि उनका अध्ययन भी बीएचयू में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के मार्गदर्शन में हुआ था तो हिंदी को दोबारा से वैश्विक स्वरूप दिलाने में लगे रहे।
महामना से मिले थे रूइया छात्रावास में
आचार्य द्विवेदी 1930 में अपने शिक्षा काल में रूइया छात्रावास में रहते थे। एक बार छात्रावास का दौरा करने बीएचयू के संस्थापक महामना मदन माेहन मालवीय उनके कमरे आए और काफी तारीफ की थी। कहा कि आप बराबर मिलते रहिएगा।
वहीं वर्ष 1923 में वह बनारस आए और कमच्छा स्थित रणवीर संस्कृत पाठशाला से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने बीएचयू से हाईस्कूल, 1929 में इंटरमीडिएट व संस्कृत साहित्य में शास्त्री की परीक्षा पास की इसके बाद वर्ष 1930 में उन्हें ज्योतिष विषय में आचार्य की भी उपाधि मिली।