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Varanasi Air pollution: बनारस में हर वर्ष 10.2 प्रतिशत मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार, शोध में हुआ खुलासा

भारत के स्वच्छ वायु मानदंड WHO के 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के दिशा-निर्देश से चार गुना अधिक है। यही कारण है कि वायुप्रदूषण के लिहाज से बेहतर माने जाने वाले शहरों में भी लोगों की जान जा रही है। माना जाता है कि मुंबई बेंगलुरु कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में हवा अपेक्षाकृत साफ रहती है परंतु इन शहरों में भी प्रदूषण से मरने वालों की संख्या अधिक है।

By Sangram Singh Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 08 Aug 2024 08:07 AM (IST)
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काशी मेंप्रदूषण से लोगों की जा रही जान। जागरण

जागरण संवाददाता, वाराणसी। वायु प्रदूषण जिंदगी का गला घोंट रहा है। बनारस समेत देश के 10 शहरों में प्रति वर्ष 7.2 प्रतिशत यानी 33,527 लोगों की मौतों का कारण वायु प्रदूषण सामने आया है। बीएचयू ने विश्व के ख्यात शोध संस्थानों के विज्ञानियों के साथ एक दशक तक अध्ययन में यह दावा किया है।

रिसर्च को लंदन के अंतरराष्ट्रीय जर्नल लैनसेट ने जुलाई में प्रकाशित किया है। वायु प्रदूषण के कारण लोगों काे फेफड़ा संबंधित बीमारियां घेर रहीं हैं। छाती में जकड़न और कैंसर जैसी गंभीर समस्याओं के कारण लोगों की जानें जा रही हैं।

वर्ष 2008 से 2019 तक बनारस में पीएम 2.5 का स्तर मानक से कई गुना अधिक मिला है, इसके कारण प्रति वर्ष 831 लोगों की मौत वायु प्रदूषण के चलते हो गई। विज्ञानियों ने मौतों का यह आंकड़ा बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल, क्रोनिक रोग नियंत्रण केंद्र नई दिल्ली के अलावा जिले के कई सरकारी व निजी अस्पतालों से संग्रहित किया है।

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सर्वाधिक मौतें दिल्ली में 11.5 प्रतिशत रिकार्ड की गई हैं जबकि बनारस दूसरे स्थान पर रहा, यहांं प्रति वर्ष 10.2 प्रतिशत मौतें हुईं हैं। पीएम 2.5 (पार्टीकुलेट मैटर) 82.1 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रहा। शोध में साफ हवा का मानक अंतरराष्ट्रीय मानकों से चार गुना अधिक मिला है। वाहनों का काला धुआं पर्यावरण को जहरीला बना रहा है।

बीएचयू का सुझाव, प्रदूषण का जोखिम कम करने को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान जरूरी

पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान के प्रो. आरके मल्ल ने बताया कि यह अध्ययन विश्व स्तर पर पार्टीकुलेट मैटर के बढ़े हुए प्रभावों को दर्शाता है। देश में हर साल 7.2 प्रतिशत मौतें दैनिक पार्टीकुलेट मैटर के जोखिम के कारण होती हैं। अल्पकालिक पीएम का जोखिम भारत में मृत्यु के उच्च जोखिम से जुड़ा था।

वर्तमान भारतीय पीएम मानक से काफी कम सांद्रता पर भी है। इन बीते वर्षों में सरकार ने प्रदूषण में कमी लाने के लिए राज्य और शहर स्तर पर कई योजनाएं संचालित की हैं। वर्ष 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम शुरू किया गया है।

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प्रदूषण को कम करने के लिए बीएचयू की तरफ से भी कई सुझाव जारी हुए हैं। इसमें प्रमुख है, शहरों में उच्च जोखिम वाली घटनाओं से निपटने के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान तैयार किया जाना चाहिए।

शोध में यह प्रमुख संस्थान शामिल

बीएचयू के अलावा पर्यावरण चिकित्सा संस्थान करोलिंस्का इंस्टीट्यूट स्वीडन, बुद्धिमान समृद्धि संस्थान, विश्वविद्यालय ओटावा कनाडा, पर्यावरण, जलवायु और शहरी स्वास्थ्य प्रभाग न्यूयार्क, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय न्यूपोर्ट वेल्स यूके व पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आफ इंडिया नई दिल्ली, गुरियन विश्वविद्यालय इजराइल, पर्यावरण चिकित्सा और जलवायु विज्ञान विभाग माउंट सिनाई न्यूयार्क समेत कई संस्थान शामिल हैं।

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