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Gyanvapi case Varanasi : अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने ज्ञानवापी को बताया था औरंगजेब द्वारा दी गई वक्‍फ की संपत्ति, अदालत ने किया खारिज

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से मुस्लिम पक्ष के वकील ने तमाम दलीलें देकर ज्ञानवापी को औरंगजेब द्वारा दी गई संपत्ति बताते हुए इसे वक्‍फ संपत्ति घोषित कर अदालत को सुनवाई का अधिकार न होने की बात अदालत में कही थी।

By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Mon, 12 Sep 2022 03:44 PM (IST)
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ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अदालत में मुस्लिम पक्ष ने तमाम दलीलें दी थीं।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी जो ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख कर रही थी उसकी ओर से तमाम वकीलों ने अदालत में जिरह कर इसे वक्‍फ की संपत्ति और औरंगजेब की संपत्ति बताने के साथ ही अदालत को इस प्रकरण की सुनवाई करने का अधिकार न होने की बात पर लंबी लड़ाई लड़ी है। अदालत की कार्यवाही के दौरान मुस्लिम पक्ष लगातार इस बात पर अडिग रहा कि अदालत को सुनवाई का अधिकार ही नहीं है, ऐसे में 12 सितंबर 2022 को इस मामले में पहला फैसला ही इस बात पर आया क‍ि अदालत को सुनवाई का अधिकार है अथवा नहीं। मुस्लिम पक्ष का प्रार्थना पत्र आखिरकार अदालत ने खारिज कर दिया।

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इस मामले में अदालत की ओर से स्थिति स्‍पष्‍ट होने के बाद ही ज्ञानवापी मस्जिद का भविष्‍य तय हो गया।ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी मामले में अदालत ने आखिरकार दोनों पक्षों को सुनने के बाद 12 सिंतबर के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिला जज की अदालत केस की सुनवाई को लेकर अब मुस्लिम पक्ष का प्रार्थना पत्र खारिज कर अपना फैसला सुना दिया है।

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हिंदू पक्ष की ओर से दलीलें पेश करने के बाद मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद को मुगल शासक औरंगजेब की जमीन पर बनी मस्जिद बताते हुए कई प्रमुख दलीलें पेश की हैं। सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के प्रमुख वकील अभयनाथ यादव के आकस्मिक निधन के बाद शमीम अहमद को अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से नियुक्‍त किया गया तो उन्‍होंने इसे वक्‍फ बोर्ड की जमीन के पक्ष में तमाम तर्क दिए। इस दौरान उन्‍होंने केस की सुनवाई वक्‍फ बोर्ड में किए जाने की वकालत की। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से मुस्लिम पक्ष के वकील ने अदालत में दलील दी कि -

1- हिंदू पक्ष की मांग के अनुसार श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन करने की मांग के प्रार्थना पत्र की प्रकृति एक जनहित याचिका जैसी है। इसमें दर्शन- पूजन नियमित करने का अधिकार पूरे हिंदू समाज के लिए किया गया है। इसलिए इसकी सुनवाई स्थानीय अदालत में किसी सूरत में नहीं हो सकती है।

2- अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से बताया गया कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। वक्फ एक्ट के तहत इसकी सुनवाई सिविल अदालत में नहीं हो सकती है। लिहाजा वक्‍फ अदालत में ही इसकी सुनवाई की जाए। 

3- पूर्व के दीन मोहम्मद बनाम भारत सरकार के 1936 के मुकदमे में अदालत ने ज्ञानवापी को मस्जिद माना है और उसमें नमाज का अधिकार मुस्लिम पक्ष को दिया है। उसी अनुरूप ही मस्जिद में नमाज और धार्मिक कार्य किए जा रहे थे। 

4- पूर्व  के दीन मोहम्मद केस में ज्ञानवापी आराजी संख्या 9130 के पैमाइश का बताया गया है। जमीन की पैमाइश एक बीघा नौ बिस्वा छह धुर मापी गई थी जो आज भी ज्ञानवापी मस्जिद का ही हिस्‍सा है।

5- सैकड़ों सालों से ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज लगातार होती आ रही है इसलिए इस पर प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू होता जिसके मुताबिक मुस्लिमों को वहां नमाज का अधिकार है। ऐसे में हिंदू पक्ष का यहां पर कोई अधिकार नहीं बनता है। 

6- ज्ञानवापी मस्जिद का मालिक मुगल शासक औरंगजेब था, निर्माण के समय उसका ही शासन था। उस समय की जो भी संपत्ति थी वह मुगल शासक औरंगजेब की ही थी, उसकी दी गई जमीन पर ही ज्ञानवापी मस्जिद बनी हुई है।

7- वक्फ की संपत्ति के लिए उसे हैंडओवर करने वाला कोई होना चाहिए। ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में इसे वक्फ में दर्ज कराने के लिए जो दस्तावेज दिया गया था उसमें आलमगीर का नाम दर्ज है। मुगल शासक औरंगजेब का नाम आलमगीर है।

8- वाराणसी जिले के वक्फ कमिश्नर की रिपोर्ट पर ज्ञानवापी को वक्फ बोर्ड में दर्ज कराते हुए 1944 में प्रदेश शासन ने गजट किया था। ऐसे में सरकारी दस्‍तावेजों में भी ज्ञानवापी मस्जिद का अस्तित्‍व रहा है।

9- उत्‍तर प्रदेश शासन की ओर से जारी किए गए सरकारी गजट में भी ज्ञानवापी मस्जिद का वक्फ संख्या 100 दर्शाया गया है।

10- श्री काशी विश्ननाथ मंदिर परिसर के विस्तार के लिए हिंदू पक्ष की ओर से जमीनों की अदला-बदली में भी ज्ञानवापी को मस्जिद के तौर पर ही स्वीकार किया गया है।

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