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Archaeological Survey : 12वीं शताब्दी में बने वाराणसी के सारनाथ के कुमारदेवी से मिलती है अयोध्या की नक्काशी,

डा. मणि ने बताया कि उत्खनन में गुप्त काल के दो सिक्के मिले हैं। इसके पहले कभी गुप्त काल का अयोध्या से कोई संबंध नही मिला था। पाषाणों पर बनी नक्काशी और फाउंडेशन भी 12वीं शताब्दी में बने सारनाथ के कुमारदेवी से मिलती है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Wed, 10 Feb 2021 06:50 AM (IST)
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पाषाणों पर बनी नक्काशी और फाउंडेशन भी 12वीं शताब्दी में बने सारनाथ के कुमारदेवी से मिलती है।
वाराणसी, जेएनएन। अयोध्या उत्खनन में 1680-1320 ईसा पूर्व तक के अवशेष मिले हैं, जबकि अब तक लोग अयोध्या की संस्कृति को महज 700 साल प्राचीन ही मानते थे।  वर्ष-2003 के बाद से अयोध्या में विवादित स्थल पर हुई खोदाई के दौरान 17 सैंपल की कार्बन डेटिंग टेस्ट की गई थी जिसमें उत्तरी कृष्णामार्जित मृदभांड काल के अवशेष मिले। यह बात मंगलवार को सारनाथ स्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से एएसआइ की सभागार में आयोजित एक प्रेजेंटेशन में एएसआइ के पूर्व महानिदेशक डा. बीआर मणि ने कही। उन्होंने स्लाइड के माध्यम से यह भी बताया कि खोदाई में शुंग वंश, कुषाण काल, गुप्त व उत्तर गुप्त काल के अवशेष मिले, जबकि, मध्य युग में राजपूत, सल्तनत, मुगल व उत्तर मुगल काल के अवशेष मिले हैं।

उन्होंने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल की खोदाई उच्च न्यायालय के आदेश पर पहली बार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने किया। इस संबंध में लगभग 308 पेज की रिपोर्ट उच्च न्यायालय को सौंपी गई। बताया कि उस दौरान खोदाई के बारे में किसी से चर्चा करने व मिलने की भी मनाही थी। उच्च न्यायालय को 10 पाठ्यक्रम की एक गोपनीय रिपोर्ट सौंपी गई थी। इसमें खोदाई वाली साइट्स की 235 फोटो और 65 ड्राइंग शामिल थी।

मिले हैं गुप्त काल के सिक्के

डा. मणि ने बताया कि इसी उत्खनन में गुप्त काल के दो सिक्के मिले हैं। इसके पहले कभी गुप्त काल का अयोध्या से कोई संबंध नही मिला था। पाषाणों पर बनी नक्काशी और फाउंडेशन भी 12वीं शताब्दी में बने सारनाथ के कुमारदेवी से मिलती है। यहां 84 नक्काशीयुक्त मंदिर के खंभे मिले जो विवादित ढांचा के क्षेत्र से ज्यादा दूरी में फैले थे। प्लास्टरयुक्त दीवारें और अभिषेक का जल बहने के लिए विशेष प्रकार (तीन कोने) की नाली भी मिली। इससे प्रतीत होता है कि पूर्व में विशाल और भव्य मंदिर का निर्माण हुआ था। बाद में उसी स्थल को प्लेन कर मस्जिद बना दी गई।

चबूतरा हो गया ध्वस्त

खोदाई में एक चबूतरा मिला था जिसका निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था। छह दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वंस के साथ चबूतरा भी ध्वस्त हो गया। अध्यक्षता करते हुए अधीक्षण पुरातत्वविद नीरज सिन्हा ने कहा कि विवादित स्थल की खोदाई में 33 प्रतिशत मजदूर मुसलमान थे। वहीं सुबह आठ से शाम पांच बजे तक दो मजिस्ट्रेट तैनात रहते थे। इसमें से एक मजिस्ट्रेट भी मुस्लिम थे। संचालन डा. नितेश सक्सेना व धन्यवाद ज्ञापन सहायक पुरातत्वविद अब्दुल आरिफ ने किया। इस मौके पर अजय श्रीवास्तव, अभय जैन, प्रमोद पाल, शैलेंद्र श्रीवास्तव, अनुराग आदि उपस्थित थे।

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