Gyanvapi Masjid case : हिंदू पक्ष की वह दलीलें जिसके आधार पर ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आया अदालत का फैसला
Gyanvapi Masjid Varanasi हिंदू पक्ष ने तमाम दलीलों के जरिए ज्ञानवापी मस्जिद परिसर को हिंदू देवी देवताओं का पूजा स्थल सिद्ध करने के लिए प्रमाण दिए थे। पूर्व में यहां पूजन अर्चन के करने वाले गवाहों के साक्ष्य सहित तमाम दस्तावेज अदालत को देकर फैसला अपने हक में किया।
By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Mon, 12 Sep 2022 04:21 PM (IST)
वाराणसी [देवेन्द्र नाथ सिंह]। देश के बहुचर्चित विवादास्पद ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अहम फैसला आ गया। ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी प्रकरण में राखी समेत पांच हिंदू महिलाओं की ओर से दाखिल प्रार्थना पत्र पर मुकदमा अदालत द्वारा सुनने योग्य पाया गया है। इसी के साथ मुस्लिम पक्ष का प्रार्थना पत्र अदालत ने खारिज कर दिया।
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अदालत में दाखिल प्रार्थना पत्र के जरिए हिंदू पक्ष ने पुराणों के साथ मंदिर के इतिहास से लेकर उसकी भौतिक संचरना तक का जिक्र अपनी मांग में किया किया है। इस बात ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित शृंगार गौरी और अन्य देवी देवताओं के विग्रहों को 1991 की पूर्व स्थिति की तरह ही हिंदुओं के लिए नियमित दर्शन- पूजन के लिए सौंपे और सुरक्षित रखे जाने की मांग की थी।
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अदालत में हिंदू पक्ष की ओर से दायर प्रार्थना पत्र के अनुसार दशाश्वमेध घाट के पास आदिविशेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग है और पूर्व में एक भव्य मंदिर यहां पर मौजूद था, जिसमें आज भी हिंदुओं की आस्था है। इसे लाखों सालों पूर्व त्रेता युग में स्वयं भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था। इस समय यह ज्ञानवापी परिसर प्लाट संख्या 9130 पर स्थित है। यहां पुराने मंदिर परिसर में ही मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, हनुमान, नंदी, दृश्य और अदृश्य देवी देवता हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने वर्ष 1193-94 से कई बार इस मंदिर को नुकसान पहुंचाया। हिंदुओं ने उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कर मंदिर को पुनर्स्थापित किया है।
सन 1585 में जौनपुर के तत्कालीन राज्यपाल राजा टोडरमल ने अपने गुरु नारायण भट्ट के कहने पर उसी स्थान पर भगवान शिव का भव्य मंदिर बनवाया। वह स्थान जहां मंदिर मूल रूप से अस्तित्व में था यानी भूमि संख्या 9130 पर केंद्रीय गर्भगृह से युक्त आठ मंडपों से घिरा हुआ था। इस क्षेत्र में मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 ईस्वी में मंदिर को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया था। भगवान आदि विशेश्वर के प्राचीन मंदिर को आंशिक रूप से तोड़ने के बाद, वहां 'ज्ञानवापी मस्जिद' नामक एक नया निर्माण किया गया था।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास और संस्कृति विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डा. एएस अल्टेकर ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ बनारस' में मुसलमानों द्वारा प्राचीन काल में बनाए गए निर्माण की प्रकृति का वर्णन किया है। औरंगजेब ने उक्त स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए कोई वक्फ नहीं बनाया था। इसलिए मुसलमानों से संबंधित किसी भी धार्मिक कार्य के लिए भूमि का उपयोग करने का अधिकार नहीं है। भूमि संख्या 9130 पांच क्रोश भूमि के साथ पहले से ही देवता आदिविशेश्वर में लाखों साल पहले ही निहित हो चुकी थी और देवता मालिक हैं।
वर्ष 1780-90 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने भगवान शिव का एक मंदिर बनवाया। पुराने मंदिर और भगवान शिव के शिव लिंगम के बगल में एक शिव लिंगम की स्थापना की। सुविधा के लिए रानी अहिल्याबाई द्वारा निर्मित मंदिर को "नया मंदिर" और श्री आदि विशेश्वर मंदिर को 'पुराना मंदिर' कहा जा रहा है। कथित ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पीछे प्राचीन काल से मौजूद देवी श्रृंगार गौरी की छवि है और उनकी लगातार पूजा की जाती है। स्कंदपुराण के अनुसार भगवान विश्वनाथ की पूजा का फल प्राप्त करने के लिए मां देवी श्रृंगार गौरी की पूजा अनिवार्य है।
वर्ष 1936 में दीन मोहम्मद की ओर से ज्ञानवापी को लेकर दाखिल मुकदमें में परिसर की पैमाइस एक बीघा नौ बिस्वा छह धूर बताई गई है। इस मुकदमे के गवाहों ने देवी मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और दृश्य और अदृश्य देवताओं की छवियों उसी स्थान पर होने दैनिक पूजा करने को साबित किया है। उत्तर प्रदेश काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 के तहत मंदिरों, मंदिरों, उप मंदिरों और अन्य सभी छवियों की पूजा करने के अधिकार हिंदुओं को प्राप्त है। मां श्रृंगार गौरी की पूजा को वर्ष में केवल एक बार प्रतिबंधित करने का कोई लिखित आदेश पारित नहीं किया है।
मांग किया कि ज्ञानवापी परिसर (आराजी संख्या 9130 ) में मौजूद मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान, नंदी जी और अन्य दृश्य और अदृश्य देवताओं के दैनिक दर्शन, पूजा, आरती, भोग का अधिकार वादियों को है इसलिए उन्हें ऐसा करने में बाधा पहुंचाने वालों को रोका जाए। साथ ही उन्हें किसी तरह की क्षति पहुंचाने से रोका जाए। वहां सुरक्षा के लिए शासन व जिला प्रशासन को निर्देश दिया जाए।
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