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काशी कह रही है : केंद्रीय मंत्री स्‍मृति इरानी की इच्छा शक्ति के फावड़े से काशी में गंदगी पर प्रहार

काशी कह रही है बीते दिनों केंद्रीय मंत्री स्‍मृति इरानी ने फावड़ा क्‍या उठाया काशी में गंदगी के ढेर पर इच्‍छा शक्ति का प्रहार हो गया। तय कार्यक्रम से अतिरिक्‍त महिला की शिकायत पर स्‍मृति इरानी का प्रयास खूब चर्चा में है।

By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Thu, 09 Jun 2022 02:25 PM (IST)
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Kashi kah rahi hai : स्‍मृति इरानी का काशी में सफाई का प्रयास इन दिनों चर्चा में है।
वाराणसी [प्रमोद यादव]। राजनीतिक दलों व नेताओं की ओर से स्वच्छता अभियान को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैैं। अपनी-अपनी सोच-समझ अनुसार इसके निहितार्थ बताए जाते रहे हैैं, लेकिन गंदगी को लेकर नाक-भौं सिकोडऩे वालों के लिए दो दिन पहले सिकरौल में चला अभियान सबक कहा जा सकता है। केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी काशी प्रवास के दूसरे दिन स्वच्छता अभियान पर थीं। इस बीच एक महिला ने बिटिया की शादी का हवाला देते हुए दरवाजे पर पड़ा गोबर-कूड़े का ढेर दिखाया। साथ चल रहे लोगों ने इसे हटवाने का भरोसा दिया, लेकिन केंद्रीय मंत्री ने दिल पर ले लिया। फावड़ा-बेलचा उठाया। यह लोगों का जमीर जगाने के लिए काफी था। कुछ देर में गोबर-कूड़ा हट गया और दरवाजा चमक गया। अब सवाल इस तरह के आयोजनों पर सवाल उठाने वालों की सोच पर था। जनप्रतिनिधियों की उस भरी-पूरी फौज पर था जो इसी बनारस के हैैं और यह जिम्मेदारी भी उनकी ही है।

चौराहे वाले बाबा को आपका इंतजार : पंच शक्ति के हौसले के बूते ज्ञान की वापी से बाबा क्या प्रकटे नाम कमाने की होड़ का भी प्राकट्य हो गया। अब जिसे देखो हाथ में पर्चा लहराता नजर आ रहा है। पहले से अर्जियों के बोझ से दबे न्याय मंदिर के दरवाजे की घंटी बजा रहा है, लेकिन कान-आंख इस तरह बंद कि उन्हें सड़क किनारे या चौराहे-तिराहे पर स्थित तमाम छोटे-छोटे मंदिरों का हाल नजर ही नहीं आ रहा। इनमें नियमित पूजा-आरती और भोग का इंतजाम तो दूर दिन-रात धूल का गुबार। इनमें कई का उल्लेख पुराणों तक में आता है। धर्म शास्त्रों के पन्ने ही इसके गवाह नहीं ज्ञाता कहा जाना वाला प्रबुद्ध समाज इसे गोष्ठियों में भी बड़े दावे के साथ बताता है। यह बात और है कि उनके ज्ञान, अपनी संस्कृति और जिम्मेदारी का भान सिर्फ उस सभागार तक सीमित रह जाता है। हां, बाबा को किसी जागरूक का इंतजार बरकरार रह जाता है।

16 साल बाद चैन की नींद : काशी को भुलाए न भूलेगी सात मार्च 2006 की वह शाम जब कैंट स्टेशन व संकट मोचन मंदिर रक्त रंजित हो गया था। बम का धमाका 18 परिवारों को जिंदगी भर न भूलने वाला दर्द दे गया था। न पूछिए कैसे आंसुओं को पीते दिन बिताए, रात आंखों में काटी और जब भी जख्म भरने को आए वो चेहरा याद आया जिसने इस हाल में पहुंचाया। अब 16 साल बाद आतंक के सौदागर को फांसी की सजा सुनाए जाने पर चैन की नींद आई। उस हादसे ने जो दर्द दिया उसकी भरपायी तो नहीं हो सकती, लेकिन संतोष इस बात का है कि अब और कोई बगिया न उजड़ेगी। इतने साल बाद भी सामने घाट निवासी विमलेश त्रिपाठी शरीर से बम के छर्रे निकलवा रहे। वलीउल्लाह को फांसी की सजा की सूचना मिलने पर चेहरा चमक उठा। कहा, अभी आपरेशन भले और कराने पड़ें लेकिन शायद दर्द उतना न होगा।

धरोहर के दुश्मन : काशी का कण-कण शंकर और पूरी नगरी को धरोहर का मान है। गंगा का किनारा इसी दृष्टि से संरक्षित क्षेत्र घोषित है। नए निर्माण पर रोक तो मरम्मत के लिए जांच-परख के बाद अनुमति का प्रविधान है। यह इसलिए कि शासन को अपनी थाती संरक्षण का ध्यान है, लेकिन जो बड़ी शान से इस शहर को अपना कहते हैं उन्हें ही इसका अहसास नहीं है। कह सकते हैं स्वार्थपरता का वास इसे पास फटकने नहीं देता। अंदाजा इससे ही लगा सकते हैं कि गंगा से 200 मीटर के दायरा तो छोडि़ए घाट किनारे तक भवन और गेस्ट हाउस तनते जा रहे हैं। यह बात और है कि दो कमरे की मरम्मत के लिए तमाम लोग वर्षों से न जाने कितने जूते घिसते जा रहे हैैं। विरासत की निगरानी के जिम्मेदार उन्हें नियमों की घुट्टी पिलाते हैं, लेकिन नए निर्माण के समय आंखों पर हरे पत्तों के पर्दे पड़ जाते हैं।

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