Rangbhari Ekadashi: काशी में निकली बाबा की गौना बरात, बम बोल के बीच बरसे अबीर-गुलाल, रात तक गूंजी शहनाई
गौरा का मायका बने टेढ़ीनीम स्थित महंत निवास पर सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी थी। ब्रह्म मुहूर्त में शिव-गौरा का अभिषेक किया गया। बाबा और गौरा को बंगीय देवकिरीट खादी के राजसी वस्त्र धारण कराए गए। पं. वाचस्पति तिवारी ने वस्त्राभूषणों की विशेष पूजा की। पूरे दिन भक्त बाबा विश्वनाथ और मां गौरा को अबीर-गुलाल अर्पण करते रहे। चल प्रतिमाओं का दर्शन के लिए काशीवासी पहुंचे।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। मेघ गर्जन की भांति डमरुओं के डिम-डिम निनाद के बीच अलौकिक नाद लोक उत्पन्न हो रहा था, अयोध्या व मथुरा के गुलालों की बौछार, हर-हर महादेव व जय श्रीराम के उद्घोष के बीच मां गौरा का गौना कराकर बाबा विश्वनाथ अपने धाम पहुंचे। संपूर्ण काशीवासी उल्लसित हो उठे। मां गौरा व बाबा के राजसी स्वरूप का दर्शन करने को गौरा सदनिका (महंत निवास) टेढ़ीनीम से लेकर बाबा दरबार तक की गलियाें में समूची काशी उमड़ पड़ी।
बाबा विश्वनाथ धाम भक्तों की भीड़ से अटा पड़ा था तो उस ओर जाने वाली सभी सड़काें, गलियों में अपार भीड़ चल रही थी। हर ओर उल्लास छलक रहा था, गुलाल बरस रहा था। सभी आह्लादित बाबा की भक्ति की मस्ती में झूमते-नाचते, गाते, हर-हर महादेव का उद्घोष करते पहुंच रहे थे। बाबा धाम के आंगन में शिवार्चन के लिए बने मंडप में संगीतमय भजनों की सुर-सरिता बह रही थी, चौक पर सभी गुलाल उड़ाते युवा, बाल, वृद्ध स्त्री-पुरुष सभी भक्ति के उत्साह में नृत्य कर रहे थे। रंगभरी एकादशी पर पूरी काशी बम-बम बाेल उठी और वातावरण होलियाना हो गया।
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गौरा का मायका बने टेढ़ीनीम स्थित महंत निवास पर सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी थी। ब्रह्म मुहूर्त में शिव-गौरा का अभिषेक किया गया। बाबा और गौरा को बंगीय देवकिरीट, खादी के राजसी वस्त्र धारण कराए गए। पं. वाचस्पति तिवारी ने वस्त्राभूषणों की विशेष पूजा की। पूरे दिन भक्त बाबा विश्वनाथ और मां गौरा को अबीर-गुलाल अर्पण करते रहे। चल प्रतिमाओं का दर्शन के लिए काशीवासी पहुंचे। सांध्य बेला में डमरुओं की गर्जना बीच राजसी ठाट में बाबा, माता गौरा के साथ पालकी पर सवार हुए। महंत आवास के बाहर मुख्य गली से मंदिर के मुख्यद्वार के बाहर अयोध्या और मथुरा से आए विशेष प्राकृतिक गुलाल उड़ाए गए। मंदिर से अर्चकों का दल महंत आवास पहुंचा।
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कपूर से आरती के बाद पं. वाचस्पति तिवारी ने दोनों हाथों में जलतीं रजत मशाल दिखा कर पालकी उठाने का संकेत किया। महंत परिवार के सदस्यों द्वारा पालकी उठाते ही चारों तरफ से अबीर और गुलाब की पंखुड़ियां बरसने लगीं। शंखनाद से वातावरण गूंज उठा। डमरूदल और शहनाई दल के पीछे बाबा की पालकी विश्वनाथ मंदिर की ओर बढ़ी। नौ ग्रहेश्वर महादेव मंदिर से आगे बढ़ते ही गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा से जो क्रम आरंभ हुआ वह पूरे रास्ते जारी रहा। बाबा और मां पार्वती की चल प्रतिमाएं साक्षी विनायक और ढुंढिराज विनायक होते हुए विश्वनाथ मंदिर पहुंचीं।
विश्वनाथ धाम में भी निकली पालकी यात्राउधर, श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद की ओर से महादेव एवं मां गौरा की शोभायात्रा को कंधे पर लेकर पूरे परिसर में भ्रमण कराया गया। देर रात तक शहनाई की गूंज के बीच विविध अनुष्ठान जारी रहे। पद्मश्री डा. सोमा घोष समेत कलाकारों ने सुर लगाए।
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