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पूर्वांचल और बिहार के कारोबारी सरोकारों को माह भर निभाता है बलिया का ददरी मेला

ददरी मेले के पशुमेला में जहां हरियाणा पंजाब बिहार बंगाल तक के किसान व पशुपालक अपने पशुधन खरीदने बेचने आते हैं। वहीं दूर दराज से दुकानदार भी तरह-तरह के आइटम लेकर आते है। यह ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए बहुत बड़ा मेला है।

By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Wed, 04 Nov 2020 12:33 PM (IST)
मेले में दूर दराज से दुकानदार भी तरह-तरह के आइटम लेकर आते है।
बलिया, जेएनएन। भृग-दर्दर क्षेत्र में लगने वाले ददरी मेले के पशुमेला में जहां हरियाणा, पंजाब, बिहार, बंगाल तक के किसान व पशुपालक अपने पशुधन खरीदने बेचने आते हैं। वहीं दूर दराज से दुकानदार भी तरह-तरह के आइटम लेकर आते है। यह ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए बहुत बड़ा मेला है। इसमें सहारनपुर, बिजनौर, कानपुर, लखनऊ से लेकर देश के अन्य प्रदेशों से भी हस्तशिल्पी, दुकानदार अपने सामानों को लेकर आते हैं। गांव-गरीब किसान, मजदूर सहित अभिजात्य वर्ग सभी के लिए इस मेले में दुकानें सजती हैं। किसान परिवार के लोग अपने बिटियां की विदाई  के ज्यादातर सामान पलंग, सोफे, चादर, कपड़े, खिलौने, गृहस्थी बसाने के चकला- बेलन, चिमटा, तावा, रजाई, गद्दा सबकुछ यहीं से खरीदते हैं। लकड़ी खिलौने, सिरेमिक के कप प्लेट, बिंदी, चूडियां, सिंदूर, कंघी, रिबन सुहाग के सारे सामान यहां बिकने आते हैं ।

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ददरी मेले के आयोजन पर आए संकट से हस्तशिल्पियों, किसानों और दुकानदार सभी मायूस हैं। भृगुक्षेत्र बलिया में ऋषि परंपरा के पौराणिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक ददरी मेला जो बलिया के बागीपन व पहचान का प्रतीक व लोकपरंपरा का संवाहक रहा है। जहां भारतेंदु हरिश्चंद्र का प्रसिद्ध उदघोष हुआ। यहां के भारतेंदुमंच पर अपने कविता का पाठ करना हर कवि का सपना होता है। जहां भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशुमेला आयोजित होता है। - भानु प्रकाश सिंह बबलू, सचिव, ध्रुवजी सिंह स्मृति सेवा संस्थान, पूर।

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स्वयं भगवान विष्णु के द्वारा सराहे गए राजा बलि की उदारता और दानशीलता की अमिट स्मृतियों से अभिङ्क्षसचित बलिया,, आज मानो अपनी गौरवशाली परंपराओं एवं सांस्कृतिक धरोहरों को अपने ही हाथों नष्ट-भ्रष्ट करने पर तुल गई हो। इसकी सबसे दुखदाई मिसाल है यहां सदियों से महर्षि भृगु के यशस्वी शिष्य दर्दर मुनि के सम्मान में प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित 'ददरी' मेले के अस्तित्व को मिटाने के कुत्सित प्रयास।  विडंबना देखिए कि जो लोग कल तक इस पौराणिक मेले को राज्य स्तरीय मेले का दर्जा दिलवाने के लिए आरजू-मिन्नतें कर रहे थे। आज इस मेले के अस्तित्व को बचाने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं। पुरखों की साझी-विरासत और सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने की गुहार सुनने वाला भला कौन है।

- शशि कुमार सिंह 'प्रेमदेव', शिक्षक एवं साहित्यकार

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ऐतिहासिक ददरी मेले का आयोजन होना चाहिए। कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करते हुए मेले का आयोजन हर वर्ग के लिए आवश्यक है। मेला ही कोरोना काल में हुई आर्थिक मंदी से व्यापारियों को उबार जा सकता है। इस मेले का इंतजार लंबे समय से हम सभी को है।

-अफरोज अंसारी, पटरी दुकानदार, शहीद पार्क चौक।

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ददरी मेला व्यवसाय का प्रमुख केंद्र है। हर व्यापारी को साल भर इसके लगने का इंतजार रहता है। दूर दराज के व्यापारी भी अपनी दुकानें लेकर आते है। यह मेला पूरी तरह से गांव-देहात का है। ऐसे में इसके आयोजन पर ग्रहण लगना हम व्यापारियों के लिए उचित नहीं है। प्रशासन व नगर पालिका परिषद को सार्थक पहल करनी चाहिए। इसमें हर वर्ग के व्यापारी अपने दुकानें लगाते है।

-विजय कुमार वर्मा, फुटकर कपड़ा व्यवसायी, शहीद पार्क चौक।

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