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BHU के वनस्पति वैज्ञानियों ने दिखाई नई राह, फंगस से फसल की पैदावार 70 प्रतिशत तक बढ़ाने में मिलेगी मदद

आज भारत वैश्विक कृषि महाशक्ति बन गया है। इसके बावजूद भारतीय किसानों को तमाम परेशानियों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। किसानों की चुनौती में एक समस्या मिट्टी में नमक का शामिल होना भी है। नमक प्रभावित खेत फसल पैदावार को भी प्रभावित करते हैं। लेकिन अब इस समस्या का भी समाधान बीएचयू के शोधकर्ताओं ने ढूंढ़ निकाला है।

By Jagran News Edited By: Riya Pandey Updated: Mon, 08 Jul 2024 07:57 PM (IST)
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फंगस संग बीज के प्रयोग से उपजाऊ बनेगी नमक प्रभावित धरती

संग्राम सिंह, वाराणसी। 1960 के दशक की शुरुआत से खाद्य की कमी और आनाज के आयात पर निर्भर एक राष्ट्र से आज भारत वैश्विक कृषि महाशक्ति बन गया है। इसके बाद भी भारतीय कृषि और हमारे किसान तमाम परेशानियों और चुनौतियों का सामना करने पर विवश हैं। इनमें एक समस्या खेत या मिट्टी के नमक प्रभावित होना है।

खेत का नमक प्रभावित होना या खारापन उत्पादकता को प्रभावित करने वाले सबसे क्रूर पर्यावरणीय कारकों में एक है। अधिकांश फसलीय पौधे मिट्टी में नमक के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं और इससे प्रभावित भूमि का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है।

किसानों को भुगतना पड़ रहा नमक प्रभावित भूमि का खामियाजा

उत्तर प्रदेश में ही 13.70 लाख हेक्टेयर जबकि गुजरात में 22.30 लाख हेक्टेयर भूमि नमक से प्रभावित है। जाहिर है इसका खामियाजा वहां के किसानों को भुगतना पड़ रहा है।

बीएचयू के वैज्ञानिकों ने दिखाई नई राह

पूर्वांचल में भी जौनपुर, आजमगढ़ और प्रतापगढ़ समेत दर्जनों जिलों में नमक से प्रभावित खेत किसानों की चिंता का सबसे बड़ा कारण बन गए हैं। पर्याप्त खाद-पानी और अच्छे बीजों के इस्तेमाल के बाद भी खेती का लागत निकलना मुश्किल हो गया है। ऐसे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानियों ने नई राह दिखाई है।

70 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकेगी फसलों की पैदावार

वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो. आरएन खरवार के नेतृत्व में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि बीज के साथ एस्परगिलस मेडियस और क्लैडोस्पोरियम पैराहेलोटोलरेंट नामक फंगस (कवक) का इस्तेमाल किया जाए तो नमक प्रभावित खेत भी उर्वराशील हो जाएंगे और 70 प्रतिशत से पैदावार बढ़ाई जा सकती है। फसलों की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।

गेहूं के बीच पर प्राथमिक अध्ययन हुआ पूरा

प्रो. खरवार ने बताया कि दोनों कवक नमक सहिष्णु गेहूं से निकाले गए हैं। वैसे यह बीज, मिट्टी, पौध और नमक प्रभावित मिट्टी में भी पाए जाते हैं। विभाग की प्रयोगशाला में गेहूं के बीज पर प्राथमिक अध्ययन पूरा हो चुका है। दोनों कवक नमक के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने में कारगर सिद्ध हुए हैं।

नवंबर से फरवरी के बीच हुआ था प्रयोग

कवक मिश्रित बीज की बोआई किए जाने पर पैदावार बेहतर होती है। यह प्रयोग नवंबर से फरवरी के बीच ग्लास हाउस चैंबर में हुआ था। आठ समूह डिजाइन किए गए। गेहूं के बीजों को एंडोफाइट बीजाणु के साथ भिगोया गया, फिर उन्हें हवा में सुखाया। कवक-लेपित बीजों को छिद्रित गमले में बोया गया।

एक सप्ताह बाद सोडियम क्लोराइड के साथ उपचार किया गया। पौधों की सप्ताह में दो बार नियमित सिंचाई की गई। इस अध्ययन को एल्सेवियर के जर्नल माइक्रोबायोलाजिकल रिसर्च ने प्रकाशित किया है।

गेहूं की वृद्धि व उपज पर लवणता से नकारात्मक प्रभाव 

इस अध्ययन में शामिल शोधार्थी प्रियंका ने बताया कि गेहूं की वृद्धि और उपज लवणता से नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। मानव आबादी में निरंतर वृद्धि ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर दबाव बढ़ाया है। 2050 तक दुनिया की खाद्य आपूर्ति को 70 प्रतिशत बढ़ाने की जरूरत है।

गेहूं को अनाजों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि 36 प्रतिशत आबादी इसी पर निर्भर है। गेहूं से ही 20 प्रतिशत कैलोरी व 55 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट प्रदान किया जाता है।  

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