बदल रहा बनारस… काशी की गलियों में पहुंचा स्टारबक्स, क्या सूनी हो जाएगी कचौड़ी गली? मिला हैरान करने वाला जवाब
एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे ओहदे पर कार्यरत विश्वमोहन मिश्रा अपने बच्चों के साथ लंका स्थित स्टारबक्स काफी हाउस से निकलते दिखे। ‘महादेव’ से अभिवादन होते ही बोल पड़े यही बच्चों की जिद थी स्टारबक्स की कॉफी पीने की तो इन्हें लेकर आना पड़ा। ‘क्या खासियत है इसकी’ सुनते ही बो पड़े ‘अरे गुरु शुरुआते 300 से है खासियत तो अपनी जगह’।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे ओहदे पर कार्यरत विश्वमोहन मिश्रा अपने बच्चों के साथ लंका स्थित स्टारबक्स काफी हाउस से निकलते दिखे। ‘महादेव’ से अभिवादन होते ही बोल पड़े, यही बच्चों की जिद थी, स्टारबक्स की कॉफी पीने की तो इन्हें लेकर आना पड़ा। ‘क्या खासियत है इसकी’, सुनते ही बो पड़े, ‘अरे गुरु, शुरुआते 300 से है, खासियत तो अपनी जगह’।
ट्रामा सेंटर के सामने रविदास गेट वाले रोड पर बीते महीने ही खुले टाटा एलायंस समूह की इस अंतरराष्ट्रीय कॉफी श्रृंखला में सप्ताहांत के दौर में दिखने वाली भीड़ बदलते बनारस के मिजाज को बताने के लिए काफी है।
‘आवा रजा, लस्सी भिड़ावल जाय..’ और ‘काहो भांग छनल की नाहीं..’ की मस्ती में जीने वाले बनारसियों की नई पीढ़ी इन बहुराष्ट्रीय खाद्य और पेय कंपनियों की भी दीवानी हो चली है। तभी तो कचौड़ी-जलेबी और घुघनी से खरमेटाव करने वाले बनारस में मैकडोनाल्ड, नेस्ले, पेप्सिको, कोका-कोला आदि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रेस्तरां, होटलों, आउटलेट्स की श्रृंखला खुलती जा रही हैं।
स्वाद के रसिक और चटोरेपन के लिए ख्यात खांटी बनारसियों की बात अभी न करें तो नई पीढ़ी की भीड़ भी यहां बखूबी देखी जा सकती है। ऐसे में ‘कचौड़ी गली सून होई का...’ के सवाल पर गीतकार केडी दुबे बोल पड़ते हैं, ‘ई रजा बनारस हौ, कचौड़ी गली कब्बों सून ना होई, हां इनके साथ ऊहो चलिहें।
अब बनारस में खाली बनारसिये त ना हउवन।’ उनकी बात में भी दम है। स्टारबक्स में ही देखा तो खांटी बनारसी इक्का-दुक्का लेकिन आईआईटियंस, बीएचयू के छात्र, मल्टीनेशनल कंपनियों में यहां कार्यरत बड़े अधिकारियों के परिजनों ही काफी दिखे।
कचौड़ी-जलेबी, लस्सी-पान, बनारस की शान
अलसाते, धौंसियाते, पुचकारते और गंगा में डुबकी लगाते सुबह-ए-बनारस की गलियों में जब स्वाद का जादू घुलता है तो बनारसी एकदम चउचक हो हो जाता है। बनारस की प्रचलित कहावत कि “खर मेटाव से जे कइलस परहेज, रोग ओके मिले दहेज।” दुनिया जब बेड टी ले रही होती है तब खांटी बनारसी दिव्य निपटान के बाद गरमा-गरम कचौड़ी और जलेबी लेकर टंच हो चुका रहता है।
वहीं अगर इसमें आलू की छोटकी कचौड़ी और झोलदार घुघनी मिल जाए तो फिर कहना ही क्या… गुरु नथुना फड़क जाता है स्वाद आत्मा तक पहुंच जाती है। पान, लस्सी, ठंडई, कचौड़ी जलेबी, चाट और चाय की अड़ियां बनारस की जान और बनारसीपन की पहचान हैं।
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