BHU के 11 विज्ञानियों पर भारत बायोटेक ने पांच करोड़ की मानहानि का किया दावा, कोर्ट में पहुंचा मामला
बीएचयू के 11 वैज्ञानिकों और एक जर्नल के एडिटर पर भारत बायोटेक ने मानहानि का मुकदमा दायर किया है। कंपनी का आरोप है कि वैज्ञानिकों ने कोवैक्सीन के दुष्प्रभावों पर गलत शोध किया और उसे प्रकाशित करवाया। वैज्ञानिकों का कहना है कि कंपनी के आरोप बेबुनियाद हैं और उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से शोध किया है। इस मामले में अक्टूबर में सुनवाई होगी।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। कोवैक्सीन के दुष्प्रभाव पर शोध करने वाले बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के 11 विज्ञानियों और इसे प्रकाशित करने वाले न्यूजीलैंड के जर्नल ड्रग सेफ्टी के एडिटर नितिन जोशी पर वैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने पांच करोड़ रुपये की मानहानि का दावा किया है।
कंपनी ने पूरे शोध को ही गलत बताया है। जर्नल ने यह कहते हुए शोध को हटा लिया है कि इसमें लोगों को वैक्सीन से होने वाले नुकसान को गलत तरीके से बताया गया है। कंपनी ने बीते जुलाई में ही बीएचयू के विज्ञानियों को पांच करोड़ की मानहानि का नोटिस भेजा था।
विज्ञानियों ने भी 18 अगस्त को कंपनी के प्रत्येक आरोपों का बिंदुवार जवाब हैदराबाद के सिविल कोर्ट में दाखिल कर दिया। मामले में सुनवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में होगी। विज्ञानियों का कहना है कि कंपनी की ओर से कोर्ट में अध्ययन को लेकर दी गईं कई जानकारियां वैज्ञानिक रूप से गलत हैं।
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वैक्सीन लांच करने से पहले भारत बायोटेक ने महज एक सप्ताह तक 15-18 साल आयु के 176 लोगों पर शोध किया था। बीएचयू के विज्ञानियों ने 15 से 18 साल की आयु के 635 किशोरों और 291 वयस्कों पर एक वर्ष तक शोध किया था। लोगों से फोन पर बातचीत कर शोध पत्र तैयार किया गया था। 304 को सांस संबंधी दिक्कत थी। किशोरियों में मासिक धर्म में अनियमितता की बात भी आई थी।
उनका दावा है कि डब्ल्यूएचओ ने भी भारत बायोटेक के 18 वर्ष से कम आयु के लोगों को शोध में शामिल करने पर सवाल खड़े किए हैं। साथ ही कोवैक्सीन की उत्पादन प्रक्रिया में खामियां बताते हुए इसकी आपूर्ति पर रोक लगा चुका है।
भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन बनाने और बिक्री करने के लिए आइसीएमआर (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद) को करीब 170 करोड़ रुपये की रायल्टी दी थी। शोध के समर्थन में 600 डाक्टरों, विज्ञानियों, वकीलों के साथ सिविल सोसाइटी के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने आइसीएमआर के डायरेक्टर जनरल डा.राजीव बहल, भारत बायोटेक के मैनेजिंग डायरेक्टर और जर्नल के संपादक को पत्र लिखा है।इसमें कहा गया है कि विज्ञानियों पर इस तरह कानूनी दबाव बनाया गया तो भविष्य में किसी शोध में सही तथ्य सामने नहीं आ पाएंगे। यह शोध बीते लोकसभा चुनाव के दौरान आया था और राजनीतिक मुद्दा बन गया था।
इसे भी पढ़ें-प्रयागराज के स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल के डॉक्टर की संदिग्ध दशा में मौतआइसीएमआर ने शोध पर प्रतिबंध लगाने और विज्ञानियों से शोध में से आइसीएमआर का नाम हटाने को कहा था। यह शोध आइएमएस बीएचयू के फार्माकोलाजी और जीरियाट्रिक विभाग ने संयुक्त रूप से किया था।
बीएचयू आइएमएस के निदेशक प्रो. एसएन संखवार ने कहा कि आइसीएमआर की आपत्ति के बाद शोध को जर्नल ने हटा लिया है। हमारी जांच पूरी हो चुकी है और इसमें शोध को आधा अधूरा पाया गया था। कानूनी कार्यवाही शुरू होने की बात मेरी जानकारी में नहीं है।
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