साहित्य चोरी में फंसे सहायक प्रोफेसर की Phd उपाधि छिनी, BHU की समिति की सिफारिशों पर अकादमिक परिषद की मुहर
सहायक प्रोफेसर अशोक कुमार सोनकर को पीएचडी में अनुचित साधनों का प्रयोग और साहित्य चोरी का दोषी पाया गया। विश्वविद्यालय की स्थायी समिति ने जांच में आरोपों को सच पाया। अकादमिक परिषद ने उनकी पीएचडी की उपाधि छीन ली और उन्हें अपने नाम के आगे डाक्टर नहीं लिखने का निर्देश दिया। उन्हें नए सिरे से पीएचडी करने की अनुमति दी गई है।
संग्राम सिंह , जागरण वाराणसी। सामाजिक विज्ञान संकाय के इतिहास विभाग के सहायक प्रोफेसर अशोक कुमार सोनकर को पीएचडी करने में अनुचित साधनों का प्रयोग और साहित्य चोरी का दोषी पाया गया है। विश्वविद्यालय की स्थायी समिति ने जांच में आरोपों को सच पाया है।
अकादमिक परिषद ने उनकी पीएचडी की उपाधि छीन ली है और वह अपने नाम के आगे डाक्टर नहीं लिख सकेंगे। सामाजिक विज्ञान संकाय की डीन प्रो. बृंदा परांजपे ने इसकी शिकायत करते हुए कार्रवाई की सिफारिश की थी।
अशोक सोनवाकर को तीन वर्ष के बजाय दो वर्ष में नए सिरे से पीएचडी करने की छूट दी गई है। परिषद की बैठक में कार्रवाई की सिफारिशें पढ़ते हुए रजिस्ट्रार प्रो. अरुण कुमार सिंह ने यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि ''गढ़वाल वंश और उनका सांस्कृतिक अध्ययन" शोध प्रबंध अशोक सोनकर का नहीं है, इसलिए इसे निरस्त किया जाता है। मामले में विद्या परिषद उचित कार्रवाई करेगी। अशोक को अन्य लाभ (जैसे वार्षिक वेतन वृद्धि और पदोन्नति) मिलेंगे। वह इतिहास विभाग के संकाय सदस्य बने रहेंगे और पीएचडी की डिग्री के बिना सहायक प्रोफेसर के बराबर माना जाएगा। वह जब तक स्वयं पीएचडी की डिग्री प्राप्त नहीं कर लेते, उन्हें पीएचडी छात्र नहीं मिलेगा। अभी जो छात्र पीएचडी कर रहे हैं, उन्हें विभाग के अन्य प्रोफेसरों को हस्तांतरित किया जाएगा।
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बैठक में कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन ने कहा कि विभागीय शोध समिति को शोधार्थियों को पीएचडी की डिग्री प्रदान करते समय उच्च स्तर की ईमानदारी दिखानी चाहिए।
रजिस्ट्रार ने कहा कि अकादमिक परिषद ने मामले में समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी है। अशोक सोनकर की पीएचडी की डिग्री वापस ले ली गई है। अशोक कुमार सोनकर ने 2010 में "गढ़वाल वंश और उनका सांस्कृतिक अध्ययन" शीर्षक से शोध पूरा किया। इसके आधार पर वह बीएचयू में सहायक प्रोफेसर नियुक्त हुए।
इसे भी पढ़ें-17 दिन बैंड बाजा-बारात से मचेगा धमाल, फिर खरमास बाद गूंजेगी शहनाईबीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय इतिहास विभाग के सहायक प्रोफेसर अशोक कुमार सोनकर ने बताया कि 6 साहित्य चोरी का नियम 2018 में आया है, मैंने रिसर्च पेपर 2010 में जमा किया था। 2019 से शोध प्रबंध की जांच आकुंड साफ्टवेयर से की जाती है।
कहा कि 2020 में मेरे शोध का परीक्षण कराया गया था। अगर कापी मिलती भी है तो 10 प्रतिशत तक छूट है। मेरे मामले में सात प्रतिशत कापी मिली है फिर भी मेरी नहीं सुनी गई। वैसे ऐसा कृत्य आम है, लेकिन मेरे खिलाफ अनुसूचित जाति का होने के कारण कार्रवाई की गई है।
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